रायपुर। भारत देश के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में छत्तीसगढ़ की भूमिका कितनी रही इसके बारे में कोई स्पष्ट बादिता और सार्थकता क्रमबद्ध ढंग से शायद ही विवेचित रही हो। पर छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में सोनाखान के जमीदार शहीद वीर नारायण सिंह के नाम से यहां का जन -जन परिचित है। राज्य की राजधानी रायपुर के बीचोबीच स्थापित जय स्तंभ चौक वही जगह है जहां अंग्रेजों ने 10 दिसंबर अट्ठारह सौ सत्तावन को वीर नारायण सिंह को फांसी दी थी।
अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति की रणभेरी केवल दिल्ली, लखनऊ, ग्वालियर, इंदौर, सतारा या नागपुर में ही नहीं गूंजी थी, वरन छत्तीसगढ़ के पहाड़ी अंचल में स्थित सोनाखान जमीदारी में भी आदिवासी किसानों और आम लोगों ने अपने लोकप्रिय नेता जमीदार क्रांतिवीर नारायण सिंह के नेतृत्व में आजादी का घोष बुलंद किया था।
यहां के इतिहासकारों का मत है कि 1819 में छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के बलौदा बाजार तहसील में स्थित सोनाखान नाम की एक छोटी से जमींदारी के जमींदार आदिवासी रामराय ने स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत की थी। वे शहीद वीर नारायण सिंह के पिता थे, पर उनका विद्रोह सीमित संसाधन और अंग्रेजों की क्षमता के आगे लंबे समय तक नहीं चल सका। जनश्रुतिओं में यह माना जाता रहा है अंग्रेजी सत्ता उनसे डरती थी। उनका इतना प्रभाव था कि लोग अंग्रेजी सत्ता का तो तिरस्कार कर सकते थे पर रामराय का नहीं। उनकी लोकप्रियता को अंग्रेजों ने आतंक का नाम दिया था। सन 1819 में अंग्रेजों ने सोनाखान पर आक्रमण कर दिया था और वृद्ध रामराय को पराजित होना पड़ा था। इसके बाद कोई संधि के बहाने अंग्रेजों ने सोनाखान की जमींदारी की बहुत सारी जमीन हड़प लिया और अधिकार भी छीन लिए। नारायन सिंह के पिता फत्तेनारायन सिंह की बेबसी और वीरता के बारे में रामराय अपने पोते नारायन सिंह को बताते रहे और यहीं से उनके मन में स्वतंत्रता की भावना हिलोर मारते रही।शहीद नारायन सिंह बिंझवार का जन्म सन 1795 ईसवीं में हुआ था। अपनी वीरता, दयालु स्वभाव प्रजा के प्रति अगाध प्रेम की वजह से वे बेहद लोकप्रिय रहे।
उल्लेखनीय है कि अट्ठारह सौ 57 की क्रांति के पीछे एक बड़ा कारण अंग्रेजों की कंपनी सरकार का भारतीय किसानों, व्यापारियों और स्वाभिमानी जमीदारों के दमन की नीति रही है। अंग्रेजों ने राजस्व कानूनों के नाम पर इन्हें बुरे तरीके से प्रताड़ित किया था। इससे पैदा हुई विद्रोह की आवाज को दबाने के लिए अट्ठारह सौ सत्तावन में ईस्ट इंडिया कंपनी ने कानून के जरिए अखबारों पर सेंसर भी लगा दिया था। कंपनी सरकार की नीति , रीति दमन और शोषण की वजह से समूचे देश में बदहाली और बेचैनी थी। छत्तीसगढ़ में ग्रामीणों के समक्ष रोजी रोटी का संकट विकराल था और आजादी की भावना ने आमजन के मन में एक विराट झंझावात पैदा कर दिया था। ऐसे ही लोगों ने स्वधर्म और स्वराज की भावना से प्रेरित होकर अट्ठारह सौ सत्तावन में आदिवासी जमींदार नारायन सिंह के नेतृत्व में अंग्रेज सरकार के खिलाफ हथियारबंद संघर्ष किया। राज्य के पिथौरा और कसडोल के मध्य स्थित गांव सोनाखान इसी वजह से आज भी क्रांति का तीर्थ स्थान माना जाता है।