बालोद- कहते है शिक्षक एक मोमबत्ती की तरह होता है। जो खुद जलकर विद्यार्थी जीवन को रौशन करता है। लेकिन जरा सोचिए अगर किसी शिक्षक के जीवन में ही अंधकार हो, बचपन से ही उसकी आँखों की रौशनी ही चली गई हो। उसे कुछ न दिखता हो। ऐसे हालात में वह एक उजाले की तरह शिक्षा की अलख जगाकर बच्चों के जीवन को रौशन कर रहा है। जिन्होंने औरों के लिए एक मिशाल पेश की है। बालोद जिले में एक ऐसे ही दिव्यांग शिक्षक हैं बालमुकुंद कोरेटी। जो बचपन से ही दोनों आँखों से दिव्यांग है। इनके जुनून और आत्मविश्वास के आगे सफलता ने भी घुटने टेक दिए हैं।
14 सालों से दे रहे अपनी निरंतर सेवा-
बालोद जिले के जंगल और पहाड़ों के बीच बसा एक छोटा सा गांव देवपांडुम। जो कि आदिवासी बाहुल्य ब्लॉक डौंडी के अंतर्गत आता है। यहां के प्रायमरी स्कूल में सहायक शिक्षक के पद पर पदस्थ दिव्यांग शिक्षक बालमुकुंद कोरेटी। जो कि दोनों आखों से दिव्यांग है। बचपन में एक हादसे की वजह से धीरे धीरे इनके आँखों की रौशनी चली गई। बालमुकुंद मूलतः गांव देवपांडुम के ही रहने वाले है। शासन ने इन्हें गांव के ही प्रायमरी स्कूल में पदस्थापना दे दी। बालमुकुंद बचपन से ही देख नही पाते है। 2008 में व्यापम परीक्षा के जरिये इन्होंने सफलता हासिल की और उन्हें यहां खुद के ही गाँव मे पोस्टिंग मिल गई। बीते 14 साल से ज्यादा से बालमुकुंद यहां के प्रायमरी स्कूल में अपनी निरंतर सेवाएं दे रहे है। बच्चों को भी इनसे खासा लगाव है। घर से स्कूल और स्कूल से घर ये बच्चो के साथ ही आया जाया करते है। यू कहे कि बच्चे अपने शिक्षक की लाठी है। बालमुकुंद ब्रेनलिपि पुस्तक के माध्यम से बच्चो को पढ़ाते है। बालमुकुंद बताते है कि बच्चो को पढ़ाने के बाद वे बीच बीच में उनसे सवाल भी करते है। की जो उन्होंने पढ़ाया है, वह समझ आ रहा है या नही…? स्थानीय होने की वजह से बच्चों के साथ तालमेल भी काफी अच्छा है। उन्हें बच्चो को पढ़ाने में दिक्कत नही होती। उनके द्वारा पढ़ाये गए सभी चीज़ों को बच्चे बड़े ही आसानी से समझ जाते है।
पढ़ाई के अलावा भी कराते है अन्य गतिविधियां-
बच्चो को भी बालमुकुंद द्वारा पढ़ाये गए सभी विषय आसानी से समझ आ जाते है। बच्चो को भी मालूम है कि वे आँखों से देख नही सकते। जिसकी वजह से बच्चे पूरी शिद्दत से पढ़ाई करते है। वही प्रभारी प्राचार्य उमेश कुमार ठाकुर की माने तो बालमुकुंद अपना पूरा अध्यापन कार्य ब्रेनलिपि पुस्तक के जरिये करते है। बच्चे भी उनके पढ़ाने के तरीके से बेहद खुश है। उनके द्वारा कहे गई बातों को आसानी से समझते है। पढ़ाई के अलावा बालमुकुंद अन्य गतिविधियां जैसे नैतिक शिक्षा, खेलकूद और चित्रकला भी बच्चों को कराते है। बालमुकुंद स्कूल कार्य के प्रति बड़े ही निष्ठावान है। समय पर स्कूल आना और स्कूल से जाना… इनकी दिनचर्या में है।
अधिकारी भी तारीफ करते नही थकते-
बालमुकुंद की कार्यशैली से हर कोई प्रभावित है। डीईओ से लेकर बीईओ एवं समूचा जिला शिक्षा विभाग। डीईओ प्रवास बघेल ने कहा कि अपने दोनों आंखों की रौशनी नही होने के बावजूद अपने अंदर आत्मविश्वास पैदा कर ज्ञान रूपी दिए को बालमुकुंद ने कभी बुझने नही दिया। शायद यही कारण है कि आज बच्चे भी उनसे बेहद लगाव रखते हैं। बीईओ कमलकांत मेश्राम कहते है कि अपनी जिंदगी से निराश हुए व्यक्तियों के लिए बालमुकुंद एक प्रेरणा है।