वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मंच पर हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संबोधन हुआ। आर्थिक शक्तियों को एक मंच पर लाने में इस फोरम की भूमिका महत्वपूर्ण है। इस मंच पर होने वाली परिचर्चा से वैश्विक पटल पर भावी आर्थिक गतिविधियों की दशा और दिशा निर्धारित होती है। चीन ने जहां इस मंच से महामारी से लड़ने की दिशा में वैश्विक सहयोग का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, वहीं मानवता को बचाने के लिए सभी शक्तियों को एकजुट होने की भी अपील की। हालांकि इस बात पर आज भी असमंजस कायम है कि कोरोना की उत्पत्ति में चीन का कितना सहयोग है। अनेक मायनों में चीनी राष्ट्रपति के संबोधन को दार्शनिकता के पुलिंदे से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता।
जापान के प्रधानमंत्री ने देश में जारी आर्थिक सुधारों की रणनीति को प्रमुखता से रखा। उन्होंने राष्ट्रीय पूंजीवाद की खामियां गिनाते हुए अमीरी और गरीबी के बीच बढ़ती दूरी को कम करने के प्रति जापान की प्रतिबद्धता को विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया। यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है, क्योंकि तृतीय औद्योगिक क्रांति के बीच, मानवीय श्रम की घटती आवश्यकता के कारण रोजगार सृजन एक बड़ी चुनौती सिद्ध होने वाला है। इस दृष्टि से भारत जैसे विकासशील देश को युवाओं को तैयार करने के लिए कमर कसनी होगी।
इसी मंच से संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की दृष्टि से वर्तमान महामारी को मानवता और पृथ्वी के लिए एक गंभीर संकट बताया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी वैश्विक आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि विश्व की अर्थव्यवस्था अपने गर्त से निकलने को छटपटा रही है। परंतु आर्थिक गतिविधियां अभी भी संवेदनशील बनी हुई हैं। महामारी, टूटती सप्लाई चेन, कामगारों का असमंजस एवं बढ़ती महंगाई जैसी चुनौतियां विश्व आर्थिकी पर गहरा संकट बनकर छाई हुई हैं। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जताई कि बढ़ता राजनीतिक गतिरोध अर्थव्यवस्था में सुधार के मार्ग का सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के मुखिया का संबोधन इस मायने में भी महत्वपूर्ण था कि इसमें प्रगति के मार्ग पर सबको साथ लेकर चलने की बात प्रमुखता से कही गई।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उद्बोधन में विश्व अर्थव्यवस्था में भारतीय नवोन्मेष की सकारात्मक भूमिका समाहित थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोविड रोधी वैक्सीन के निर्माण में भारतीय फार्मा उद्योग की भूमिका उल्लेखनीय रही है। भारत ने देश में डेढ़ सौ करोड़ से अधिक वैक्सीन लगाने का लक्ष्य हासिल किया, वहीं अन्य कई देशों को भी इसे उपलब्ध कराया। वैश्विक सहयोग की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इस पर प्रत्येक भारतीय को अवश्य गर्व होना चाहिए। आने वाले समय में सस्टेनेबल डेवलपमेंट की दृष्टि से ‘थ्रो अवे कल्चर’ को सकरुलर इकोनामी में परिवर्तित करने की आवश्यकता पर भी भारतीय प्रधानमंत्री ने बल दिया। विश्व मंच पर इस प्रकार का विचार विकसित देशों की उपभोगी मानसिकता पर करारा प्रहार है।
यह देश में बढ़ती उपभोक्तावादी मानसिकता के लिए भी नसीहत है। वहीं प्रो-प्लेनेट-पीपल (टिपल पी) का विचार प्रस्तुत करके भारत ने अपनी दूरदर्शिता का ही परिचय दिया है। अन्य देशों के संबोधन में ऐसे विचार की प्रधानता नदारद थी। हालांकि इसे यदि वैश्विक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया जाता तो निश्चित रूप से पृथ्वी के प्रति सामाजिक उत्तरदायित्व की भूमिका को रेखांकित किया जा सकता था। क्योंकि प्रो-प्लेनेट-पीपल का भाव वास्तव में पूंजीवाद को संबोधित करता प्रतीत होता है। जैसे कह रहा हो- जलवायु संतुलन को ध्यान में रखते हुए लोगों के लिए उत्पादन करें।