हलचल… 35 प्रतिशत कांग्रेसी विधायकों की टिकट कटेगी?

मार्केटिंग का जमाना, आंकडों ने खोली पोल

जंगल विभाग के एक अफसर के लिए लोगों के बीच यह धारणा बनाई गई कि साहब को परफारमेन्स बेस पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है। लेकिन वास्तव में यह मार्केटिंग मात्र है। जिस विभाग में परफारमेन्स के कारण शीर्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई वहां के आकडे कुछ और ही बयां कर रहे हैं। पूर्व सीएम ने जो आंकड़ा जनता के सामने रखा वह चौकाने वाला है। आकडे के अनुसार 2017 में 17 लाख मानक बोरे का तेदूपत्ता संग्रहण और 1176 करोड का कुल भुगतान हुआ है। और वहीं 2021 में 13 लाख मानक बोरा, मात्र 630 करोड के भुगतान पर सिमट गया है। वास्तव में यदि यह आंकड़े सत्य हैं, तो यह कैसा परफारमेन्स है? जिसकी गूंज दूर-दूर तक सुनाई देती है। हैरत तो इस बात की है कि अभी भी आदिवासियों के जीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला यह विभाग प्रभार में चल रहा। अब तो विभाग के अफसर भी कहने लगे हैं कि सब मार्केटिंक का जमाना है।

पुलिस की धमक खत्म ?

राजधानी रायपुर में एक ऐसा वाक्या देखने को मिला जो सबको चिंतन-मंथन करने पर विवष कर रहा है। दलअसल में पूर्व में राज्य के गृहमंत्री रहे वरिष्ठ आदिवासी विधायक विधानसभा सत्र के दौरान कहीं जा रहे थे उसी दरम्यान कुछ ऐसी घटना घटी कि एक अज्ञात व्यक्ति ने पूर्व मंत्री की गाड़ी को ओवरटेक करके उनके वाहन के सामने अपनी गाडी अडा दी। कहते है कि वह व्यक्ति वाहन के सामने विधायक का नेम प्लेट लगा देखकर भी तनिक नहीं हिचकिचाया पूर्व मंत्री के सुरक्षा अधिकारी से गाली-गलौच किया। पूर्व गृह मंत्री से भी अभद्रता की गई। बाद में मामला थाने पहुंचा। जहां आरोपी को गिरफ्तार किया गया। अब माननीय आपस में खुसर-फुसर कर रहे हैं कि राजधानी में हम ही सुरक्षित नहीं, तो भला आम इंसान के क्या हालात होगें। कुल मिलाकार यह कहा जा रहा है कि पुलिस की धमक आम आदमी के बीच खत्म हो चुकी है।

कोल का बेखौफ खेल

छत्तीसगढ़ में ईडी कोल स्कैम-मनी लांड्रिग मामले की जांच कर रही है। तकरीबन आधा दर्जन अफसर और कारोबारी इस मामले में सलाखों के पीछे हैं। लेकिन इसके बाद भी कोल का खेल खत्म हुआ क्या? यह एक बडा सवाल है। एक आईएएस कोल के खेल में पिछले 6 माह से जेल में बंद है। लेकिन तब भी इस खेल की डिमांड किसी ओलंपिक से कम नहीं है। कहते हैं कि एक कप्तान इन दिनों सिर्फ कोल की गाडियों के पीछे दौडने में रुचि रखते हैं। वैसे तो इस वर्ग का सपना होता है कि उन्हें एक बार छत्तीसगढ़ के खनिज प्रधान जिलों की कमान मिल जाए। लेकिन अब कप्तान को समझ आ गया की गाडी कहीं भी लोड हो, उनके इलाके से भी कुछ गाडियां गुजरती हैं। पिछले 3 माह के दौरान एक ट्रांसपोर्टर और एक कारोबारी से इनकी जुगत बन गई। गाडी को सीधा ईडी को सौंपने बात कहकर डर पैदा किया गया। क्योंकि डराना जरुरी है। लेकिन कप्तान साहब को भली-भांति पता है कि डर के आगे जीत है।

बाघ और वनभैंसे से परेशान शहंशाह

बाघ और वन भैंसे ने इन दिनों शहंशाह के नाक में दम कर रखा है। पहले विधानसभा में बाघ के पीछे 183 करोड़ के खर्च और घटते आकडों से जमकर फजीहत हुई। अब राजकीय पशु वन भैंसों के मामले में भी शंहशाह की खूब फजीहत हो रही है। कहते हैं कि शहंशाह की सेना पूरे दल-बल से असम वन भैंसा लेने निकली थी, इधर एक वन्यजीव प्रेमी की याचिका में हाईकोर्ट ने वनभैंसा ले आने में रोक लगा दी है। कहा जा रहा है कि वन्यप्राणियों की जिम्मेवारी सम्भाल रहे सेनापति के कुप्रबंधन से शहंशाह खफा हैं। यह आशंका जाताई जा रही है कि 2022 के राष्ट्रीय आंकड़े जारी होने पर बाघों की संख्या में और कमी हो सकती है। कुल मिलाकर बाघ और भैंसा शहंशाह का पीछा नहीं छोडेगें। अब इसके लिए नई तरकीब पर विचार चल रहा है। शहंशाह को भी समझ आ रहा है कि आने वाले समय में बाघ और भैसा जमकर शोर मचाएगें। इसलिए इनके देखभाल के लिए एक मजबूत व अनुभवी सेनापति को ही कमान सौपना उचित होगा।

स्काई वॉक का चुनावी फायदा कितना ?

पिछले चार साल से राजधानी रायपुर के सीने में खडे बंजर स्काई वॉक के लिए गठित जांच समिति की रिर्पोट सामने आई है। जिसको लेकर यह कहा गया है कि इसे बनाना ही बेहतर होगा। हटाने में 50 करोड खर्च होगें लोक धन का दुरुपयोग होगा। जांच रिर्पोट सामने आते ही भाजपा ने इस मुद्दे को लपक लिया। कांग्रेस पिछले चार साल से कहती रही कि यह भाजपा के भ्रष्टाचार की स्मारक है। इसको लेकर ईओडब्ल्यू जांच कर रही है। लेकिन पिछले चार साल में भ्रष्टाचार की बात सामने नहीं आ सकी और न ही इस मामले पर कोई अधिकारी या नेता दोषी करार दिए गए। बल्कि जांच कमेटी ने स्काई वॉक का निर्माण किया जाना ही बेहतर समझा है। अब स्काई वॉक को लेकर राजनीतिक माईलेज लेने की होड लगी है। लेकिन पिछले चार साल से रायपुरवासियों को इस बंजर स्काई वॉक ने खूब रुलाया। कमेटी की बात सामने आते ही भाजपा नेता राजेश मूणत ने मुद्दे को लपक लिया। मूणत ने पहले ही चुनौती दी थी कि पूरी फाइल आपके पास हैं यानि कि सरकार के पास है किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार हुआ हो तो दोषियों को जेल भेज दें। या स्काई वॉक का निर्माण कराएं। स्काई वॉक की रिपोर्ट ने मूणत को संजीवनी प्रदान कर दी है। मूणत ने दावा ठोंका है कि भाजपा की सरकार आने पर स्काई वॉक का निर्माण जल्दी से जल्दी पूरा किया जाएगा।

संतराम की बेवाकी सबको भाई

केशकाल से आदिवासी विधायक संतराम नेताम ने विधानसभा उपाध्यक्ष की जबाबदारी को बखूबी निभाया। पहली दफा आसंदी में विराजमान संतराम के बेवाकी को देखबर सत्तापक्ष, विपक्ष सब फैन बन गए। नेताम की बेवाकी सबको भाई। बजट सत्र में प्रश्नकाल के बाद जादातर कार्यवाही का संचालक बतौर विधानसभा उपाध्यक्ष संतराम नेताम ने संभाली। हालांकि इस सत्र के दौरान विपक्षी सदस्यों के साथ-साथ सत्ता पक्ष के सदस्यों ने भी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोडी। सदस्यों की बातों को संतराम नेताम गंभीरता से सुनते भी और विभागीय मंत्री को बेवाकी से जबाव देने को भी निर्देशित करते। विपक्ष को भी संतराम की निष्पक्षता खूब भाई। कहते हैं कि विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरण्दास महंत यह चाहते थे कि संतराम को जादा सें जादा समय दिया जाए ताकि वह पूरी कार्यवाही को बेहतर तरीके से समझ सकें। वहीं संतराम नेताम आंसदी की भूमिका में शत प्रतिशत खरे उतरे।

35 प्रतिशत कांग्रेसी विधायकों की टिकट कटेगी?

इन दिनों कांग्रेसी विधायक काफी पेरशान हैं। हालही में राजधानी के एक प्रमुख समाचार पत्र ने खबर प्रकाशित किया जिसमें 35 प्रतिशत कांग्रेसी विधायकों की टिकट काटने की बात का जिक्र किया गया है। यह समाचार पत्र पूरे प्रदेश में अपनी विश्वासनीयता के लिए जाना जाता है। खबर प्रकाशित होने के बाद से कांग्रेसी विधायक काफी उलझन में हैं। कांग्रेस से वर्तमान में 75 विधायक हैं। यदि 35 प्रतिशत उम्मीदवारों की टिकट काटी जाती है तो तकरीबन दो दर्जन से अधिक विधायक आगामी विधानसभा चुनाव की रेश से बाहर होने वाले हैं। उनके जगह नए चेहरे मैदान में उतारे जाएगें। कहा जा रहा है कि इनमे से प्रथम बार चुनकर आये विधायकों की जादातर टिकट कट सकती है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी खराब परफारमेन्स वाले विधायकों को लगातार चेताते आए हैं। सीएम ने साफ तौर पर कहा है कि यदि स्थिति सुधर जाएगी तो टिकट काटने की आश्यकता नहीं पडेगी। पर क्या वास्तव में कांग्रेसी विधायकों के पास इतना समय बचा है कि वह जनता के बीच अपनी स्थिति सुधार सकें। आज से ठीक 6 माह बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। पिछले साढे चार साल में यदि यह विधायक जनता के बीच अपनी छवि नहीं बना सके, तो महज 6 माह में यह अपनी स्थिति सुधारने में कैसे कामयाब होगें?

सूचना देने वाले विभाग के चंगू-मंगू को किसका संरक्षण

सूचना प्रदान करने वाले विभाग के कारनामे इन दिनों खूब चर्चा में है। पूरे प्रदेश के हितग्राहियों को सही समय पर सूचना मिल सके, इसके लिए यह विभाग न्यायालय की भूमिका निभाता है। विभागों द्वारा-अधिकारियों द्वारा समय पर सूचना प्रदान की जाए, इसके लिए भारत सरकार ने अधिनियम बनाया है। समय-सीमा का भी निर्धारण किया गया है। कहते हैं कि समय पर सूचना न देने पर, सही जानकारी न देने पर जब मामला यहां पहुंचता है, तो विभाग के चंगू-मंगू संबंधित अधिकारियों को फोन के माध्यम से नमस्कार करते हैं। इन दोनों चंगू-मंगू की खूब चर्चा है, कहा जा रहा है कि इन चंगू-मंगू को नोटिस जारी किया गया है। और यह पता लगाया जा रहा है कि यह किसके इशारे पर अफसरों को नमस्कार करते थे।

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