हलचल…नये सिंडिकेट का उदय

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नये सिंडिकेट का उदय

छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक गलियारों में इन दिनों गुप्ता सिंडिकेट की धमक है। हालांकि यहां सिंडिकेट बनाकर काम करना कोई नई बात नहीं है। पिछली सरकार में चौरसिया सिंडिकेट चल रहा था। अब गुप्ता सिंडिकेट पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। दरअसल राज्य के एक ताकतवर मंत्री के निवास से लेकर उनके विभागों में गुप्ता सिंडिकेट हावी है। यहां इस सरनेम का अधिकारी भले ही छोटे पद पर विराजमान हो, लेकिन वह अपने बॉस का भी बॉस होता है। गुप्ता सिंडिकेट के इसारे पर इस विभाग में ठेकेदारों को काम दिया जाता है। मंत्री जी को पता है कि नहीं यह तो वही जाने लेकिन गुप्ता सिंडिकेट सिर्फ गुप्ता अफसर से ही बात करता है। उसके बाद गुप्ता सिंडिकेट अपने बॉस का बॉस बनकर बताता है कि बंगले से अमुक व्यक्ति को काम देने को कहा गया है। खैर भारतीय लोकतंत्र की एक बड़ी खूबसूरती रही है। यहां पाई-पाई का हिसाब होता है। छत्तीसगढ़ में इसके अनेकों उदाहरण हैं यहां सिंडिकेट चलाने वाले लोग सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं। जिसमें चौरसिया सिंडिकेट सबके सामने उदाहरण के तौर पर मौजूद है। सवाल यह उठता है कि एक जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि के उपर यह सिंडिकेट हॉवी क्यों हो जाता है? खैर सिंडिकेट का क्या वह तो माल समेटकर निकल जाता है, ज्यादा समेटा तो जेल की हवा खाता है। लेकिन जनप्रतिनिधि का कैरियर दागदार हो जाता है। अब मंत्री जी को ही तय करना है कि इस सिंडिकेट को उनके विभागों में हावी होने देना है या नियंत्रण में रखना है।

जवाबदेही किसकी?

ये शराब चीज ही ऐसी है जिसके लिए कोई भी जेल की हवा खाने को तैयार है। कई शराब मामले में जेल जा चुके हैं, कई जाने को बेताब हैं। दरअसल पुरानी सरकार ही नहीं बल्कि इस सरकार में भी राज्य में अवैध शराब बिक्री का मामला सर चढ़ कर बोल रहा। यह हम नहीं कह रहे बल्कि भाजपा सरकार के मंत्री खुलेआम चीख-चीख कर बयां कर रहे। हालांकि अवैध शराब बिक्री को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी सख्त तेवर दिखा चुके हैं। लेकिन इसमें कहीं कोई सुधार नहीं दिख रहा। यदि सुधार होता तो मंत्री टंकराम वर्मा को आबकारी अफसर और पुलिस अफसरों को चेतावनी नहीं देनी पड़ती। दरअसल समाधान शिविर के दौरान राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा का वीडियो इन दिनों जमकर वायरल हो रहा है। जिसमें मंत्री टंकराम आबकारी विभाग और पुलिस अफसरों को यह कहते नजर आ रहे हैं कि जगह-जगह अवैध शराब बिक्री की शिकायतें मिल रही हैं, ये सब बंद कर दें, नहीं तो हम आपको बंद कर देंगे। खैर अवैध शराब बेचने वालों के लिए बंद-चालू कोई बड़ा विषय नहीं है। सवाल यह उठता है कि आखिर अवैध शराब बिक्री रोकने की जिम्मेदारी किसकी है? आखिर इन्हें कौन पनाह देने का काम कर रहा है, इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए।

डीजीपी के बाद अब सीएस भी

राजनीति का चरित्र ही कुछ ऐसा होता है, अतीत में कही गई बातों को राजनेता पल भर में भुला देते हैं। राज्य की भाजपा सरकार अब डीजीपी के बाद सीएस का भी सेवा विस्तार करने जा रही है। दरअसल विपक्ष में रहते हुए तमाम भाजपा नेता कानून व्यवस्था पर सवाल उठाते रहे। और सत्ता में आने के बाद उसी डीजीपी का सेवा विस्तार कर दिया गया। अशोक जुनेजा के डीजीपी रहते हुए कानून व्यवस्था के क्या हाल रहे, यह भाजपाई नेताओं से बेहतर कौन जानता है। फिर भी उन्हें सेवा विस्तार का तोहफा दिया गया? नक्सल मामलों में जुनेजा के कार्यकाल से ज्यादा सफलता अरुणदेव गौतम को मिली। अरुण देव गौतम के कार्यकाल में बसव राजू जैसा खुंखार नक्सली सरगना ढेर हो गया। तब यह भ्रम क्यों की अमुक अफसर ही बेहतर काम कर सकता है। यहां अनेकों विकल्प हैं फिर भी सेवा विस्तार की परंपरा क्यों? निश्चित ही सीएस अमिताभ जैन व्यक्तिगत रुप से काफी सुलझे हुए और सरल स्वाभाव के अफसर हैं। लेकिन क्या यह पर्याप्त है? इस पर भाजपा नेताओं को मंथन करना चाहिए। क्या भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की याददाश्त इतनी कमजोर है कि अमिताभ जैन के सीएस रहने के दौरान ही राज्य में जमकर प्रशासनिक आतंक रहा। क्या इसमें उनकी मौन स्वीकृति नहीं थी? क्या शांत और चुप रहना ही अफसरशाही के बेहतर होने का मापदंड है? खैर यह सरकार का विशेषाधिकार है वह सीएस की सेवा विस्तार करें या न करें। लेकिन भाजपा कार्यकर्ता इन दिनों दबे जुबान यह कहते घूम रहे हैं कि आखिर बदला क्या? सीएस वही, वनबल प्रमुख वही, डीजीपी को सेवा विस्तार? अब सीएस को भी सेवा विस्तार?

फिर होंगे सचिव स्तर के अफसरों के विभाग में फेरबदल

राज्य सरकार एक बार फिर सचिव स्तर के अफसरों के विभाग में फेरबदल कर सकती है। दरअसल 2004 बैच के आईएएस अफसर अलबंगन पी. और उनकी पत्नी अलरमेलमंगाई डी. को केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति मिल गई है। अलबंगन पी. वर्तमान में पर्यटन विभाग के सचिव की जिम्मेदारी सम्भाल रहे हैं। वहीं अलरमेलमंगाई डी. श्रम विभाग की सचिव हैं। केन्द्र सरकार में अलबंगन पी. को कृषि मंत्रालय में संयुक्त सचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वहीं अलरमेलमंगाई डी. की नियुक्ति आयुष मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर की गई है। दोनों अधिकारियों को राज्य सराकर जल्द ही रिलीव कर सकती है। ऐसे में सचिव स्तर के अफसरों में एक बार फिर फेरबदल होना तय है।

युवाओं का सपना चकनाचूर

छत्तीसगढ़ सरकार निश्चित ही कुछ दिशा में सकारात्मक प्रयास कर रही है। लेकिन राज्य में युवाओं का सरकारी नौकरी का सपना बार-बार चकनाचूर हो रहा है। यहां सरकारी शिक्षक भर्ती का विधानसभा में सरकार ने ऐलान तो किया, लेकिन फंड के अभाव में भर्ती न हो सकी। अब युवाओं को एक आस और जागी, राज्य में वनरक्षक के 1484 पदों में भर्ती की जानी थी, उसमें भी लीपा-पोती हो गई है। जिसके कारण वनरक्षक भर्ती प्रक्रिया भी पचड़े में फंस चुकी है। दरअसल 1484 पदों के लिए मेसर्स टाईमिंग टेक्नोलॉजी को फिजिकल मापदंड की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन बीच में इस भर्ती को मैनुअल कर दिया गया। अब इसको लेकर बखेड़ा खड़ा हो गया है। दरअसल इस भर्ती में कुल 4,32,841 आवेदन पात्र पाये गए। जिसमें से उक्त अवधि में 1,51,593 अभ्यर्थी शराीरिक दक्षता परिक्षण के लिए उपस्थित हुए। जिनका शारीरिक परीक्षण मेसर्स टाईमिंग टेक्नोलॉजी के माध्यम से किया जाना था। लेकिन 41,773 अभ्यर्थियों की लंबी कूद मैनुअली करा दी गई। वहीं 6979 अभ्यर्थियों का परीक्षण भी कृतिम प्रकाश में करा दिया गया, जो भर्ती मैनुअल के विपरीत है। भर्ती सम्पन्न होने के बाद इसके लिए शासन से विभाग ने अनुमोदन मांगा, जिसमें शासन ने कड़ी आपत्ति की है। अब इसके लिए जवाबदेही तय करने की बात कही जा रही है। लेकिन कुल मिलाकर राज्य के युवाओं का सरकारी नौकरी का सपना बार-बार चकनाचूर हो रहा है।

रेत का खेल

राज्य में रेत का खुलेआम खेल चल रहा है। लेकिन इस खेल में अफसर खासे परेशान हैं। दरअसल रेत के खेल में ज्यादातर स्थानीय जनप्रतिनिधियों का सीधा दखल है। यहां कोई परमिट हो या न हो नेता जी के लोग होने चाहिए, सब काम हो जाता है। प्रशासन करे तो करे क्या? यह समस्या कोई एक जिले की नहीं है, सभी जिलों में रेत के कारोबार से अफसर खासे परेशान है। खनिज विभाग में नीचे से लेकर उपर तक के अफसरों ने अवैध खनन को लेकर साफ तौर से चेतावनी दी है। पर रेत है कि मुट्ठी से फिसल ही जाती है। दरअसल सरकार यदि वास्तव में अवैध रेत खनन को रोकना चाहती है, तो प्रशासन की नहीं बल्कि संगठन की बैठक बुलाकर जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही तय करनी चाहिए। संगठन यदि विधानसभावार नेताओं को अवैध रेत खनन रोकने की जिम्मेदारी सौंप दें तो राज्य में अवैध रेत खनन का मामला खुद ब खुद समाप्त हो जाएगा।

अगला कदम क्या?

कोल लेवी मामले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ओएसडी रही सौम्या चौरासिया तकरीबन ढ़ाई साल बाद जेल से रिहा हुई। उनके साथ निलंबित आईएएस रानू साहू और समीर बिश्नोई की भी रिहाई हो गई है। 22 दिसम्बर 2022 को सौम्या की गिरफ्तारी हुई थी। समीर, सौम्या और रानू ईडी की गिरफ्त में ऐसे फंसे की लाख कोशिशों और बड़े से बड़े वकीलों की दलीलें काम नहीं आईं और यह तीनों अफसरों ने दो साल से अधिक का समय सलाखों के पीछे बिताये। बहरहाल सौम्या, रानू, समीर सहित 6 आरोपियों को सशर्त जमानत दी गई है। कुल मिलाकर इन लोगों के लिए मानसून राहत भरा दिखाई दे रहा है। रिहाई के बाद एक चर्चा बड़े जोरों पर है। माना जा रहा है कि रिहा होने वाले अफसरों में एक अफसर की राजनीति में धमाकेदार एंट्री हो सकती है। वैसे तो आईएएस अफसरों की पहली च्वाइस भाजपा होती है। अब यह अफसर कौन सी पार्टी ज्वाइन करेंगे, इसका निकट भविष्य में खुलासा हो जाएगा।

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