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अभिजीत की छुट्टी?
आचार संहिता समाप्त होते ही राज्य सरकार ने सबसे पहले कांकेर कलेक्टर अभिजीत सिंह की छुट्टी कर दी। कहा यह जा रहा है कि कांकेर लोकसभा का चुनाव फंसा हुआ था, इस लोकसभा सीट में कांग्रेस के बीरेश ठाकुर और भाजपा के भोजराज नाग के बीच कांटे की टक्टर थी, बहुत ही कठिनाई में भाजपा को कांकेर में विजयश्री मिली। दरअसल में इस सीट की कमान स्वयं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सम्भाले हुए थे। काउंटिंग के दौरान दोनों प्रतिद्वंदियों के बीच मुकाबला रोचक व नजदीकी रहा। राज्य के तमाम बड़े नेता कांकेर लोकसभा की ओर टकटकी लगाए हुए थे। इस बीच बैलेट पेपर की गिनती में देरी को लेकर भी नाराजगी की बात सामने आई है। बहरहाल किसी तरह से भाजपा के भोजराज नाग कांकेर लोकसभा सीट 1974 वोटों से जीतने में सफल रहे। लेकिन कांकेर कलेक्टर अभिजीत सिंह चुनावी गुस्से के शिकार हो गए। आचार संहिता खत्म होने के आदेश के साथ ही राज्य सरकार ने अभिजीत की विदाई कर दी।
विक्रम उसेण्डी बनेंगे मंत्री ?
विक्रम उसेण्डी कांकेर लोकसभा में आज भी सबसे मजबूत और सरल नेता माने जाते हैं। भोजराज नाग की पृष्ठभूमि अंतागढ़ है, वहीं विक्रम उसेण्डी भी इसी क्षेत्र से आते हैं। दरअसल में कांकेर लोकसभा सीट में भाजपा का जनाधार खिसकते हुए दिख रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी भाजपा यहां सबसे कम मतों 6840 से जीतने में सफल हुई थी। पूरा तंत्र झोकने के बाद भी इस लोकसभा चुनाव में कांकेर भाजपा के हाथ से जाते-जाते बचा है। कहते हैं कि इस क्षेत्र में भाजपा की खोई जमीन फिर मजबूत करने के लिए विक्रम उसेण्डी को विष्णु सरकार में मंत्री बनाने पर विचार किया जा रहा है। विक्रम उसेण्डी डॉ. रमन सिंह के दूसरे कार्यकाल में वन मंत्री रह चुके हैं। कहा यह भी जा रहा है कि यदि विक्रम को मंत्री बनाया गया तो उन्हें वन या फिर ट्राइबल विभाग की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
सरकारी जमीनों की लूट
राज्य में भूपेश सरकार के आने बाद से सरकारी जमीनों की खुली लूट शुरु हो गई जो आज भी चल रही है। भले ही गर्मी के दिनों पानी के लिए त्राहि-त्राहि मचा हुआ है। लेकिन इन दिनों तालाबो, नहरों और नालों को भी भू-माफिया नहीं छोड़ रहे। शहर से लगे आधा से अधिक तालाब, नालों की जमीने कब्जा हो चुकी हैं। जहां नहर थी उसे समतल कर दिया गया है। लेकिन इसकी सुध कोई नहीं ले रहा, जहां नाला था वहां बेखौफ बिल्डिंगों का निर्माण किया जा रहा। दरअसल में पुरानी सरकार में सरकारी जमीन लूटने की आदत अभी तक नहीं छूटी, यही हाल रहा तो शहर के आस-पास आने वाले दिनों में कोई तालाब दिखाई नहीं देगा। चारों ओर हो रहे बेतहासा कब्जा से नाले, तालाब गायब हो रहे। बरसात के समय रायपुर का हश्र अन्य महानगरों की तरह होने जा रहा है। चारों ओर नालों में कब्जा हो चुका है जिससे बरसाती पानी शहर से बाहर नहीं निकल सकेगा। अभी भी समय है नालों, तालाबों और नहरों की जमीनों का चिन्हांकित कर इसे बचाया जा सकता है।
महंत लीडर
छत्तीसगढ़ की 11 और मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों पर सिर्फ एक सीट कोरबा को कांग्रेस जीतने में सफल रही, बाकी 39 सीटों में कांग्रेस धराशयी हो गई। भूपेश है तो भरोसा है का नारा बुलंद करने वाले कका भी अपनी सीट नहीं बचा पाये। मध्यप्रदेश में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह जैसे कद्दावर नेता धराशयी हो गए। लेकिन महंत ने यह साबित कर दिया कि वह जनाधार वाले नेता हैं। न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर के सिद्धान्तों पर राजनीति करने वाले महंत को जनता हमेशा तवज्जो देती रही है। वह विषम परिस्थितियों में भी चुनाव जीतते रहे हैं। इस बार भी उन्होंने अपनी धर्मपत्नी को चुनाव जिताकर यह साबित कर दिया कि महंत वास्तव में लीडर हैं। हालांकि महंत के सामने चुनौतियां कम नहीं थीं, अमित शाह से लेकर पूरे भाजपा का कोरबा में विशेष फोकस था फिर भी ज्योत्सना महंत चुनाव जीत गईं। महंत एक जीवट राजनेता हैं, लोकसभा चुनाव के दौरान जहां छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के ज्यादातर प्रत्याशी भाजपा प्रत्याशियों के सामने हथियार डालते दिखे, वहीं दूसरी ओर महंत ने इस चुनाव में सभी संसाधनों को झोंक दिया। कोरबा में महंत का मैनेजमेन्ट भाजपा से 19 नहीं था, वह ताकत से लड़े और जीते। जीतकर उन्होंने यह साबित कर दिया कि महंत वास्तव में लीडर हैं।
अफसरशाही को था पूर्वाभास
कुछ लोगों की बात छोड़ दें तो महानदी से लेकर इंद्रावती भवन में बैठे ज्यादातर अफसरों को चुनावी मूड का पहले से ही पता लग जाता है। यूपी के संदर्भ में ऐसे ही परिणाम का पूर्वाभास राज्य की अफसरशाही को था। राजनीति में रुचि रखने वाले अफसर दबी जुबान में यह कहते नजर आते थे कि इस बार उत्तर प्रदेश में माहौल वैसा नहीं है। और यदि कोई यूपी के संदर्भ में बात छेड़ दे तो वह पूरा समीकरण बता देते थे। खैर मोदी का इंटिलीजेंस यूपी में फेल रहा, लेकिन छत्तीसगढ़ के अफसरों का आंकलन एकदम सटीक दिख रहा है। वैसे भी यहां के अफसरों की राजनीति में खासी रुचि है। 2018 में जब पूरा मीडिया रमन सरकार को विधानसभा चुनाव जीतने का दावा कर रहा था, तब राज्य की अफसरशाही को आभास हो चुका था कि इस बार शायद ही भाजपा यहां बहुमत जुटा सके। राज्य की भूपेश सरकार के लिए भी आंकलन कुछ इसी प्रकार था। जबकि सभी एक्जिट पोल और मीडिया रिपोर्ट में भूपेश सरकार की वापसी बताई जा रही थी। कुल मिलाकार अफसरशाही को नजीतों का पूर्वाभास तेजी से होता है। यह बात अलग है कि वह बड़े-बड़े एग्जिट पोल और दावों के बीच खामोश दिखते हैं।
कुट्टी पार्ट -2
गर्मी की छुट्टियों के बीच कुट्टी पार्ट -2 की चर्चा छिड़ी हुई है। छुट्टी में कुट्टी ने खूब मनमर्जी की। कहते हैं कि एक समय काम तो दूर कुट्टी के मर्जी के बगैर अफसरों की छुट्टी तक नहीं होती थी। कुट्टी ने छत्तीसगढ़ की मिट्टी में खूब मनमर्जी की। खैर अब तो कुट्टी की छुट्टी हो चुकी है। लेकिन इस बीच कुट्टी पार्ट-2 की धूम चारों ओर सुनाई देने लगी है। हालांकि पार्ट -2 वाले कुट्टी का स्वाभाव छुट्टी वाले कुट्टी की तरह नहीं है। देखने में यह बिलकुल सहज और सरल हैं, लेकिन काम का तरीका कुट्टी से भी तगड़ा है। खैर कुट्टी पार्ट-1 ने तो सरदार की लुटिया डुबो दी, अब पार्ट -2 में क्या होता है, यह तो आने वाले दिनों में ही पता चल सकेगा।
निशाने में श्याम बिहारी
कोरबा प्रत्याशी सरोज पांडे को मनेन्द्रगढ़ इलाके में बढ़त न मिलने के कारण मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल को राजनीतिक रुप से निशाने में लिया जा रहा है। जबकि कोरबा सीट ही नहीं महासमुंद, बिलासपुर और राजनांदगांव जैसी सीटों पर भी बाहरी प्रत्याशियों को जनता ने नकार दिया। इन सीटों पर कहीं न कहीं बाहरी प्रत्याशी होना एक बड़ा मुद्दा रहा। यदि ऐसा मूल्यांकन किया जाए लोरमी से उपमुख्यमंत्री अरुण साव भी तोखन साहू को कोई खास लीड नहीं दिला पाए, यहां से भाजपा को तरीबन 400 मतों की ही बढ़त मिली। कवर्धा से उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा भी राजनांदगांव प्रत्याशी संतोष पांडे को कोई खास बढ़त नहीं दिला सके। कुल मिलाकार चुनावी परिणाम के बीच मंत्री श्याम बिहारी जासयवाल को राजनीतिक रुप निशाने पर लिया जा रहा है। जबकि दुर्ग से बाहर निकले सभी नेताओं को जनता ने इस चुनाव में खारिज कर दिया। फिर चाहे वह भूपेश बघेल हों, देवेन्द्र यादव हों, ताम्रध्वज साहू हों या फिर भाजपा की सरोज पांडे ही क्यों न हों। जनता ने बाहरी प्रत्याशी को सिरे से खारिज करते हुए लोकल उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है।
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