साहित्यकार अवधेश अवस्थी ने साझा की जन्मदिन मनाने की पुरातन पध्यति

कहा जन्मदिन मे परिवार के बुजुर्गो का आशीर्वाद लेकर करें दिन की शुरुवात
एक समय था गीदम में घर _ घर बसगठ (जन्मदिन) हुआ करती थी.नाउन बुलउआ देने जाती थी। गांव भर की महिलाओ को अमूमन सभी बच्चों की जन्म तिथि पंचांग के अनुसार याद होती थी.बसगठ में विधि विधान से पाटा (पीढ़ा) लगता था, चौक पूरी जाती थी, एक डोरी में दूब से गांठ अजिया लगाती थी.और गांठ गिन कर आयु की गणना होती। दूध बुआ अजिया अपने हाथों से पिलाती थीं.भक्ति भजन का प्रारंभ चाची के विशिष्ट सुर से प्रारंभ होता सुंदर ढोलक सुंदरा दीदी के हाथों से बजती और सीखने वाली पीढ़ी के हाथों में मंजीरा होता।
घर पूरा भक्ति संगीत से सराबोर हो जाता.गांव की बुजुर्ग महिलाएं स्नेह प्रदान करने पहुंचती.. नई उम्र की बहुएं व लड़कियां इस परंपरा को सीखने समझने उपस्थित होती.घर में सब के सब जमीन में बैठते.. उन दिनों नमस्ते से नहीं राम राम और पैर छूने से ही अभिवादन होता था.महिलाओ की उपस्थिति के मध्य घर के भीतर बाबा, बाबू और चाचा अंदर नहीं आते. पुरुषों की बैठक घर के दरवाजे में होती थी, और एक बात बसगठ (वर्षगांठ) में आगंतुक महिलाएं पचास पैसे / एक रूपये न्योछावर भी करती.अब यह परंपरा भी बन्द सी हो चुकी है। बसगठ की स्मृतियों पर न्योछावर होने का दिन आ गया अवधेश…बदल गया मेरा गांव मेरा देश! ठाकुर घर गुप्ता समाज के साथ सम्पूर्ण गीदम की यह स्वस्थ उत्तम पावन हमारी पुरातन सात्विक परंपरा लुप्त होने की कगार में है।

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