शिक्षक दिवस (विशेष आलेख)–लेखक- डॉ सुमित कुमार गर्ग, वर्तमान में जांजगीर-चांपा जिले में डिप्टी कलेक्टर के पद पर पदस्थ हैं
“गुरुर ब्रह्मा ,गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरः।गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
अर्थात गुरु- ब्रह्मा सृष्टिकर्ता के समान है,गुरु -विष्णु संरक्षक तुल्य है ,गुरु प्रभु महेश्वर सृष्टि विनाशक के समान है।सच्चा गुरु जो कि आंखों के समक्ष है उन एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करता हूं
वर्ष 1994 में यूनेस्को द्वारा शिक्षकों के सम्मान में 5 अक्टूबर को विश्व भर में शिक्षक दिवस मनाने की घोषणा की थी, परंतु भारत में 5 सितंबर को प्रतिवर्ष भारतीय गणराज्य के द्वितीय राष्ट्रपति एवं महान शिक्षक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के अवसर पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है,एक विद्यार्थी जीवन के पूर्ण विकास में शिक्षकों का विशेष महत्व है। एक विद्यार्थी अथवा एक छात्र एक कच्ची मिट्टी के टुकड़े के समान होता है जिसे सांचे में डालकर मूर्त रूप देना ही शिक्षकों का कर्तव्य है, शिक्षक ही वह कड़ी है जो कि माता-पिता के पश्चात विद्यार्थियों के जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा उनमें आत्म अनुशासन ,देश प्रेम,संयम ,कर्तव्य परायणता, नेतृत्व, सहयोग , परोपकार इत्यादि गुणों के विकास में अपना योगदान देता है। एक विद्यार्थी के शारीरिक ,मानसिक व चारित्रिक गुणों का विकास कर शिक्षक राष्ट्र निर्माण में महती भूमिका का निर्वहन करता है। एक शिक्षक साधारण व्यक्तियों की तरह अलग-अलग परेशानियों से गुजरता है मगर अपनी सभी परेशानियों को दरकिनार कर अपने छात्र छात्राओं को उचित शिक्षा प्रदान करता है
भारतीय संस्कृति में अपने शिक्षकों व गुरुओं का आदर सम्मान करना कण- कण में बसा हुआ है। अर्जुन के प्रत्येक लक्ष्य मैं आप गुरु द्रोणाचार्य को, कृष्ण में गुरु सांदीपनी को तथा राम में गुरु वशिष्ठ को पहचान सकते हैं ।इस शुभ अवसर पर प्रत्येक वर्ष स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के सम्मान हेतु विभिन्न प्रकार के समारोहों का आयोजन किया जाता है ।आधुनिक इंटरनेट युग में व्हाट्सएप ,फेसबुक, इंस्टाग्राम इत्यादि सोशल मीडिया के माध्यम से भी शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं को अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाया जाता है ।छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इस शुभ अवसर पर प्रत्येक वर्ष “शिक्षक सम्मान समारोह “का आयोजन किया जाता है जिसमें उत्कृष्ट कार्य करने वाले शिक्षकों का सम्मान किया जाता है
इस अवसर पर कबीर का एक प्रसिद्ध दोहा स्मृति पटल पर अंकित है जो कि निम्नानुसार प्रस्तुत है-गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय,बलिहारी गुरु आपने ,गोविंद दियो बताए,कबीर दास जी ने भी इस दोहे के माध्यम से गुरु की ही महिमा का वर्णन किया है ।वे कहते हैं कि जीवन में कभी भी ऐसी परिस्थिति प्रकट हो जब गुरु और गोविंद अर्थात साक्षात ईश्वर साथ साथ खड़े हो तब पहले किन्हे प्रणाम करना चाहिए। चूकि गुरु ने ही गोविंद से हमारा परिचय कराया है,इसीलिए गुरु का स्थान गोविंद से भी ऊंचा है