हलचल….., साहू कार्ड खेलेगी भाजपा?

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न काहू से बैर, न काहू से दोस्ती,
तो फिर सिंहदेव से………?

वैसे तो डॉ. चरणदास महंत बेहद संतोषी, सरल और नम्र स्वभाव के नेता हैं। राजनीति में नट की तरह संतुलन साधकर चलने वाले महंत इन दिनों किसी ओर झुकते दिख रहे हैं। दांव-पेच में महंत किसी नेता से कम नहीं हैं। न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर के सिद्वान्तों पर राजनीति करने वाले महंत का सिंहदेव की ओर झुकाव के आखिर क्या मायने हैं? आम जीवन में महंत कबीर दास जी के विचारों का अनुसरण करते हैं। यही कारण है कि उन्होंने सिंहदेव और भूपेश के सीएम पद की लड़ाई के दौरान राज्य से बाहर जाने की इच्छा जताई थी, वह राज्य सभा जाना चाहते थे। उन्होंने सार्वजनिक रुप से कहा था लड़े से टरे बने। लेकिन राजनीति तो दांव-पेंच का खेल है। अब एक बार डॉ. चरणदास महंत फिर से फ्रंट फुट पर खेलने के मूड में दिखाई दे रहे हैं।

साहू कार्ड खेलेगी भाजपा?

भाजपा आने वाले विधानसभा चुनाव में साहू कार्ड खेलने जा रही है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव के बढ़ते कद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले दिनों में भाजपा की ओर से साहू सामाज का नेता ही सीएम पद का दावेदार होगा। छत्तीसगढ़ में ओबीसी वोटरों में सबसे ज्यादा साहू समाज की संख्या लगभग 22 से 23 प्रतिशत है। इसलिए आदिवासी अंचल को साधने के बाद अब भाजपा का पूरा फोकस साहू समाज के वोटरों पर है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान अपने भाषण में खुलकर कहा था कि मै गुजरात का तेली हूं, यदि छत्तीसगढ़ के साहू गुजरात में होते तो मोदी कहलाते, राजस्थान में होते तो राठौर कहे जाते और साउथ में होते तो बनियार कहलाते। दरअसल में भाजपा के परम्परागत वोटर कहलाने वाला साहू समाज पहली बार 2018 के विधानसभा चुनाव में विभिन्न मुद्दों के बदौलत भाजपा से बाहर जाकर कांग्रेस को वोट किया। लेकिन 2019 में मोदी को यह बात समझ आ चुकी थी। उन्होनें 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर पांसा पलट दिया। और लोकसभा चुनाव में भाजपा की जबरजस्त वापसी हुई। छत्तीसगढ की 11 सीटों में से 9 लोकसभा सीटों को भाजपा जीतने में कामयाब रही। वहीं विधानसभा चुनाव में रिकार्ड 68 सीट जीतने वाली कांग्रेस को महज 2 सीटों में संतोष करना पडा।

सरकार के प्रवक्ता खामोश ?

छत्तीसगढ सरकार ने अपनी बातों को आम जन के सामने रखने के लिए दो विद्वान कहे जाने वाले मंत्रियों को सरकार का प्रवक्ता नियुक्त कर रखा है। जिसमें सर्वप्रथम सीनियर मंत्री रविन्द्र चौबे तथा कानून और संसदीय मामलों की जानकारी रखने वाले मंत्री मोहम्मद अकबर के नाम शामिल है। यह दोनों मंत्री तत्परता से आम जन के समक्ष सरकार का पक्ष रखने मौजूद रहते थे। लेकिन पिछले कुछ माह से इन दोनों मंत्रियों ने पूरी तरह से दूरी बना ली है? इसके पीछे क्या कारण है यह तो स्वयं अकबर और चौबे ही जानेंगे। लेकिन इन दिनों मंत्रियों द्वारा दमदारी से सरकार का पक्ष नहीं रखा जा रहा। कथित शराब घोटाले में सरकार के अधिकारी समेत अन्य को आरोपी बनाया गया है। लेकिन सरकार की ओर से इन दोनों मंत्रियों के द्वारा कोई वक्तव्य नहीं आया। न ही दस्तावेजों के आधार पर कोई प्रतिकार किया गया। आम जन में यह सवाल उठने लगा है कि चौबे और अकबर आखिर खामोश क्यों हैं?

हवा-हवाई आरोप, शुक्ला को नहीं मिला साथ?

छत्तीसगढ में ईडी मनी लांड्रिग मामले की जांच कर रही है। पहले कोल स्कैम और अब शराब घोटाले की गूंज चारों ओर सुनाई दे रही है। अधिकारियों की मिली भगत से 2000 करोड के घोटाले की बात सामने आई है। शराब मामले में आबकारी विभाग के सचिव एपी त्रिपाठी समेत कई कारोबारियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। वहीं कोल मामले में माइनिंग डायरेक्टर रहे आईएएस समीर विश्नोई सहित कई कारोबारी और व्यापारी पिछले 7 माह से सालाखों के पीछे हैं। लेकिन कांग्रेस के तमाम बड़े नेता इन घोटालों से दूरी बना ली है? इस बीच संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनन्द शुक्ला ने 2000 करोड़ के शराब घोटाले पर भाजपा को घेरने की कोशिश की। उन्होंने भाजपा शासनकाल में 4000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले का सनसनीखेज आरोप लगाया। मामले में शुक्ला को किसी भी कांग्रेसी नेता का साथ नहीं मिला, जिसके कारण आरोप हवा-हवाई साबित हो गया।

करण, अर्जुन

राज्य में सीनियर अफसरों का टोटा है। ज्यादातर अफसर डेपुटेशन में दिल्ली जा चुके हैं। सरकार के पास कुछ ही सीनियर अफसर बचे हैं। कोई भी सीनियर अफसर अवकाश में जाता है। तो सरकार इन्हीं दो अफसरों को प्रभार सौंप देती है। कुछ हद तक मजबूरी भी है। यही कारण है कि इन दोनों अफसरों को अब करण और अर्जन कहा जाने लगा है। दोनो ही अफसर सरल और ईमानदार प्रवृत्ति के हैं। बेहद सुलझे हुए इन अफसरों की खासियत है कि सरकार के नजदीक होते हुए भी किसी को एहसास नहीं होने देते कि वह खास हैं।

पप्पू ढि़ल्लन और एपी त्रिपाठी का दुर्ग कनेक्शन?

त्रिलोक ढि़ल्लन उर्फ पप्पू और एपी त्रिपाठी का दुर्ग कनेक्शन ढूढऩें में ईडी जुटी हुई है। वैसे तो शराब के कारोबार में पप्पू ढि़ल्लन से बड़े-बड़े कारोबारी हैं। लेकिन ढि़ल्लन को ही ईडी ने क्यों गिरफ्तार किया? इस बात पर लोग मंथन कर रहे हैं। 15 साल के भाजपा राज में भी इन्हीं चुनिंदा कारोबारियों और एपी त्रिपाठी का आबकारी विभाग में बोल-बाला था। कभी दुर्ग में टेलीफोन का वायर कबाड़ करने वाले एपी त्रिपाठी, और 1990 के दशक मे बालीबुड स्टारों के इवेन्ट आयोजक रहे ढि़ल्लन ने यह नहीं सोचा रहा होगा कि वह इतनी बारीकी जांच के शिकार हो जाएंगे। खैर ईडी की जद में आए इन कारोबारियों और अफसरों का दुर्ग कनेक्शन खोजा जा रहा है।

editor.pioneerraipur@gmail.com

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