हलचल… वो चाउर वाले, ये धान वाले

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वो चाउर वाले, ये धान वाले

छत्तीसगढ़ की राजनीति चांवल और धान के इर्द – गिर्द घूमते रही है। क्या वास्तव में यही सत्ता है? इस पर आम जनता को मंथन की आवश्यकता है। पहले डॉ रमन सिंह 2008 से 2018 तक की यात्रा चांवल से तय की। वह चाउर वाले बाबा बने रहे। अब सीएम भूपेश बघेल 2018 के बाद 2028 की यात्रा पर निकल पड़े हैं। भूपेश के हांथ में चावल की जगह अब धान है। दोनों नेताओं को यह भली भांति मामूल है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता का सुखद सफर धान और चांवल के छांव में ही तय हो सकता है। रमन सिंह ने पहले 3 रुपये प्रति किलो छत्तीसगढ़ की जनता को चावंल दिया, बाद में उसे कम करके 1 रुपये कर दिया। डॉ. रमन चांवल के बदौलत 15 वर्षों तक यहां राज करते रहे। अब सीएम भूपेश बघेल धान लेकर 2028 की यात्रा पर निकल चुके हैं। इसको लेकर लोग अब कह रहे हैं कि रमन चाउर वाले थे, भूपेश धान वाले कहलाने लगे।

नोटों का ढेर और पानी, कांग्रेसी विधायक की कहानी

वैसे तो कांग्रेसी विधायक रामकुमार यादव सरल विधायक के रुप में जाने जाते हैं, लेकिन नोटों ने उनकी तस्वीर और तकदीर ही बदल दी। विगत सप्ताह कांग्रेसी विधायक रामुकमार यादव का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें उनके सामने नोटों का ढेर लगा हुआ दिखाई देता है। वीडियो में कुछ लोग हिसाब-किताब की बातें करते दिखाई और सुनाई देते हैं। लेकिन विधायक जी की सादगी देखिए उन्होंने नोटों की तरफ नजर उठाकर नहीं देखा, हां नोटों के सामने बैठकर उन्होंने एक गिलास पानी जरुर पिया। नोटों का ढेर देखकर आरोप-प्रत्यारोप तो लगना स्वाभाविक है, रामकुमार के उपर भी लगे। लेकिन रामकुमार यादव ने यह नहीं कहा कि यह वीडियो कूटरचित है, या उनके खिलाफ षडयंत्र है, उन्होंने कहा रेलगाड़ी के सामने बैठने से रेलगाड़ी उनकी थोड़ी न हो जाएगी। इससे एक बात तो तय है कि रामकुमार ने अपने बीच के विभीषण की पहचान कर ली है। अब आयकर विभाग उनके खिलाफ मोर्चा खोले उससे पहले वह उनके नाम को सार्वजनिक कर सकते हैं। क्योंकि उन्होंने नोटों को नहीं देखा, लेकिन नोटों के ढेर सें उन्होंने इनकार नहीं किया। कहते हैं कि रामकुमार नोटों को भले नहीं जानते, लेकिन नोट लेकर बैठे लोगों से उनकी खासी प्रगाढ़ता है, उनको वह भलीं -भांति जानते हैं, वर्ना एक गिलास पानी के लिए नोटों के ढेर पास जाने की जरुरत क्या थी?

भाजपा की राह चली कांग्रेस

2018 के विधानसभा चुनाव परिणाम में रमन सरकार के 8 दिग्गज मंत्री चुनाव हार गये थे, जिसमें से प्रेमप्रकाश पांडे, अमर अग्रवाल, केदार कश्यप, राजेश मूणत, रामसेवक पैकरा, भइयालाल रजवाड़े, दयालदास बघेल, महेश गागड़ा, के नाम शामिल हैं। वैसे अमर अग्रवाल प्रेमप्रकाश, राजेश मूणत और केदार कश्यप जैसे मंत्रियों के पास चुनावी प्रबंधन का खासा अनुभव है, लेकिन 2018 के चुनाव परिणाम में जनता के सामने इन दिग्गजों का कोई प्रबंधन काम नहीं आया। भाजपा ने उस दरम्यान किभी भी मंत्री का टिकट काटने का साहस नहीं दिखाया था। सिर्फ रमशीला साहू अलग-थलग पड़ी रहीं । इसलिए उन्हें रेस से बाहर होना पड़ा। 2023 में भी टिकट वितरण को लेकर कांग्रेस में कमोवेश यही दृश्य दृश्य दिखाई दे रहा है। कांग्रेस भी रमशीला साहू की तरह प्रेमसाय सिंह टेकाम को छोड़कर लगभग सभी मंत्रियों को फिर चुनावी मैदान में उतारने जा रही है। हालांकि 2018 और 2023 के विधानसभा चुनाव में बहुत फर्क है। रमन सरकार ने 15 साल तक मंत्रियों को नहीं बदला, सिर्फ उनके विभागों को बदलते रहे, इस लिहाज से देखा जाए तो कांग्रेस सरकार के यह मंत्री अभी सिर्फ 5 साल का कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। अब जनता इनके पक्ष में क्या निर्णय लेगी यह तो आने वाले दिनों में ही स्पष्ट हो सकेगा। लेकिन टिकट वितरण को लेकर कांग्रेस भाजपा की राह चलने वाली है।

राजधानी का रोमांच

राजधानी के चारों सीटों पर मुकाबला बहुत ही नजदीकी होने के आसार हैं। रायपुर की चारों सीटों पर भाजपा और कांग्रेस की ओर से प्रत्याशी लगभग तय हैं। हलांकि उत्तर सीट पर अभी भी पेंच फंसा हुआ है। कहा जा रहा है कि धमतरी से इस बार फिर गुरुमुख सिंह होरा, और बेमेतरा से आशीष छाबड़ा की टिकट फाइनल हो चुकी है, ऐसे में कुलदीप जुनेजा की स्थित अभी तक स्पष्ट नहीं हो पा रही है। वहीं भाजपा ने भी इस सीट पर अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं। बाकी तीन सीटों पर नाम लगभग तय हैं, रायपुर दक्षिण में बृजमोहन अग्रवाल के सामने सन्नी अग्रवाल या मेयर एजाज ढेबर मैदान में उतर सकते हैं। वहीं रायपुर के विकास की लड़ाई के साथ मूणत और उपाध्याय के बीच फिर घमाशान होने जा रहा है। हलांकि पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से कुछ दिन पहले तक मीनल चौबे का भी नाम चल रहा था, लेकिन भाजपा में मूणत के नाम पर सहमति बनते दिख रही है। दूसरी ओर रायपुर ग्रामीण से कांग्रेस के सीनियर विधायक सत्यनारायण शर्मा ने चुनाव लडऩे से इनकार कर दिया है, ऐसे में उनके पुत्र युवा प्रत्याशी पंकज शर्मा चुनावी मैदान में उतरने जा रहे हैं, पंकज के सामने भाजपा ने भी युवा चेहरे भायुमो के अध्यक्ष रहे अमित साहू को टिकट देने का मन बना लिया है। कुल मिलाकार रायपुर ग्रामीण में दो युवाओं की भिड़ंत होने के आसार दिख रहे हैं। ऐसे में राजधानी की चारों सीटों पर चुनावी मुकाबला बेहद ही रोमांचक होगा।

एशिया के सबसे बड़े जंगल सफारी की सैर
और पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ गायब?

कहते हैं कि जी 20 के आयोजन में पधारे अतिथि नवा रायपुर स्थित एशिया के सबसे बड़े जंगल सफारी की सैर पर निकले, अतिथि तो सफारी देखने पहुंचे लेकिन वाइल्ड लाइफ पीसीसीएफ गायब रहे। ऐसे में हेड आफ फारेस्ट व्ही श्रीनिवास राव ने मोर्चा सम्भाला। कहते हैं कि वनबल प्रमुख राव और और पीसीसीएफ वन्यप्राणी सुधीर के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा। इसके पहले भी नवा रायपुर के एक रिसार्ट में आयोजित कार्यक्रम से पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ सुधीर अग्रवाल ने दूरी बनाई थी।

बेखौफ अपराधी

राज्य में इन दिनों अपराधी बेखौफ हैं, पहले दिन -दहाड़े रायगढ़ की एक बैंक में डकैती डालकर करोड़ों की लूट हो जाती है, उसके दूसरे दिन राजधानी में एक पुलिस अधिकारी के कार्यलय के पास सामुहिक दुष्कर्म की घटना सामने आती है। दुर्ग जिले में हिन्दुस्तान जिंदाबाद बोलने पर गाजर- मूली की तरह एक युवा को काट दिया गया। रक्षाबंधन के दिन मंदिर हसौद में हुए सामुहिक दुष्कर्म का मामला सामने आया। आखिर क्या कारण है कि अपराधियों के बीच खाकी की धमक खत्म हो रही है। अपराधी बेखौफ होकर लगातार वारदातों को अंजाम दे रहे।

थके-हारे चेहरों से कैसे होगा परिवर्तन

भाजपा की परिवर्तन यात्रा की कब शुरुआत हुई और कब खत्म होने जा रही इसकी किसी को भनक ही नहीं लगी। दरअसल में इसके लिए भाजपा खुद ही जिम्मेदार है। अभी तक के चुनावी प्रबंधन को देखकर कहा जा सकता है कि भाजपा के पास छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए कोई ठोस प्लान नहीं है। इसका ताजा उदाहरण भाजपा की परिवर्तन यात्रा है। भाजपा ने परिवर्तन यात्रा की शुरुआत तब की जब यहां का किसान धान, खेत और खाद में व्यस्त है। भरी बरसात में भाजपा परितर्वन यात्रा लेकर निकली है, जिसके कारण उनके आयोजन में भीड़ तक नहीं जुट पा रही। दूसरी ओर परिवर्तन यात्रा में थके हारे नेताओं को छत्तीसगढ़ भेजा जा रहा है। हाल ही में झारखण्ड के पूर्व सीएम रघुवर दास परिवर्तन यात्रा में शामिल हुए। रघुवर दास जैसे अन्य कई नेता भी इस यात्रा में कब शामिल हुए और कब वापस चले गए किसी को पता तक नहीं, छत्तीसगढ़ की जनता के बीच ऐसे नेताओं की कितनी उपयोगिता है? इस पर भाजपा के शीर्ष नेताओं को मंथन की आवाश्यकता है। दूसरी ओर भाजपा के पास योगी आदित्यनाथ जैसे लोकप्रिय नेता हैं, उनको मोदी और अमित शाह सिर्फ यूपी तक सीमित रखना चाहते हैं? पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र में नितिन गडकरी जैसे कद्दावर और लोकप्रिय नेता हैं, देवेन्द्र फडनवीस जैसे युवा नेता हैं, स्मृति ईरानी जैसी लोकप्रिय नेत्रियां हैं। फिर भी भाजपा छत्तीसगढ़ में थके- हारे नेताओं को लेकर परितर्वन यात्रा में निकली है?

editor.pioneerraipur@gmail.com

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