हलचल… छत्तीसगढ़ में नितिन नबीन की दखल, तो बिहार देवेन्द्र के हवाले ?

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दही हांडी लूट, अब माखन-मिश्री की बारी?

हाल ही में दही हांडी लूट का एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें करोड़ों रुपये खर्च किए गए, बड़े-बड़े राजनेता इस कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे। जहां धर्म की बात हो वहां राजनेता आसानी से उपलब्ध हो ही जाते हैं, भले ही आयोजकों का पार्टी और जनता से कोई सरोकार न हो। वैसे तो दही हांडी लूट के बाद माखन-मिश्री खाने का नम्बर आता है। यहां भी कमोवेश वही उद्देेश्य नजर आ रहा है। लेकिन रायपुर में मोहन पहले से ही मिश्री-माखन खा रहे हैं, पता नहीं बसंत का नम्बर कब आयेगा? खैर यह कार्यक्रम देख एक भाजपा नेता के दिल में क्या गुजर रही होगी, किसी ने नहीं सोचा होगा। एक समय था जब आयोजक ने साजा के इस भाजपा नेता का भरे मंच में तमाशा बना दिया था। खैर इस बार तो साजा में ईश्वर का प्रताप रहा, जिसके सामने कोई टिक नहीं पाया। लेकिन साजा में तमाशा बने इस भाजपा नेता की जरुरत पार्टी को आगे नहीं पड़ेगी? इस पर मंथन और चिंतन करने की जरुरत है।

अपनों की परवाह नहीं?

15 साल छत्तीसगढ़ में राज करने के बाद बेलगाम अफसरशाही के कारण भाजपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में सम्मानजनक हार भी नशीब नहीं हुई थी। लेकिन कहते हैं कि वक्त बीतते ही सब कुछ भुला दिया जाता है। अफसरशाही के हालात कमोवेश फिर वैसे ही दिखने लगे है। भाजपा सरकार के 8 माह बीतते ही अफसरशाही का दर्द अब फिर छलकने लगा है। अफसरशाही के दर्द को खुद भाजपा विधायक उद्धेश्वरी पैकरा भरे मंच में चीख-चीखकर बयां कर रही हैं। विधायक का दर्द कुछ हद तक वाजिब भी है। क्या जिले और उनके निर्वाचन क्षेत्र के अफसरों को प्रोटोकॉल की जानकारी नहीं है? या फिर राज्य के अफसर विधायकों को कुछ भी नहीं मान रहे? भाजपा विधायक मंच से यह कहती नजर आ रही हैं कि उनके निर्वाचन क्षेत्र में अफसर उन्हीं को नहीं पूछ रहे। सवाल यह उठता है कि जब विधायक को कार्यक्रम में बुलाना उचित नहीं समझा जा रहा, तो भला जनता और जनप्रतिनिधि की समस्याओं पर अफसर कितना अमल करते होंगे? बहरहाल अफसरशाही के दर्द को महसूस कर यह जरुर कहा जा सकता है कि भाजपा को अपनों की परवाह नहीं है।

छत्तीसगढ़ में नितिन नबीन की दखल, तो बिहार देवेन्द्र के हवाले ?

बलौदाबाजार आगजनी कांड के आरोप में जेल में बंद देवेन्द्र यादव को भाजपा ने आखिरकर हीरो बना ही दिया। देवेन्द्र को बिहार जैसे बड़े राज्य का सचिव बना दिए गया है। बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में यादवों की संख्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता है कि आरोपों से घिरे देवेन्द्र यादव ने जेल में बंद रहते हुए बड़ी राजनीतिक छलांग लगाई है। बलौदाबाजार आगजनी कांड के बाद देवेन्द्र यादव को राष्ट्रीय स्तर पर चिंन्हाकित कर लिया गया है। दरअसल में इस निर्णय का ताल्लुकात छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सांसद रंजीत रंजन और उनके सांसद पति पप्पू यादव से है। पप्पू यादव वर्तमान में निर्दलीय सांसद है, पप्पू यादव की सदस्यता को ध्यान में रखते हुए देर-सबेर रंजीत रंजन को बिहार में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। कुल मिलाकार बिहार के नितिन नबीन की छत्तीसगढ़ भाजपा में धमक है, सम्भवत: इसीलिए कांग्रेस ने भी छत्तीसगढ़ के देवेन्द्र को बिहार भेज दिया। अब देवेन्द्र बिहार में अपनी कितनी धमक बना पाते हैं, यह तो आने वाले दिनों में ही स्पष्ट हो सकेगा।

पाठक का दर्द

आमतौर पर आईएएस जनक पाठक शांत और सरल स्वभाव के अफसर हैं। लेकिन पूर्व की कांग्रेस सरकार में पाठक जमकर प्रताडि़त हुए। उन्हें पांच साल तक लूप लाइन में रखा गया। कहा तो यह भी जाता है जांजगीर में घटित हुई घटना के पीछे कुछ नेताओं का हाथ रहा है, जिसके कारण पाठक की चरित्रहनन की कोशिश भी की गई, खैर सच क्या है? यह तो जनक ही जानेंगे। लेकिन अब निजाम बदल चुका है फिर भी जनक पाठक प्रताडि़त ही दिख रहे हैं? जनक पाठक एक ऐसे आईएएस हैं जिनका दो-चार माह के अंतराल में ट्रांसफर कर दिया जा रहा। पाठक को पहले चिकित्सा शिक्षा का आयुक्त बनाया गया कुछ ही माह में वहां से हटाकर उच्च शिक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई। फिर अचानक 2 माह के अन्दर उनका ट्रांसफर कर दिया गया। जनक पाठक को बिलासपुर का नया सम्भागायुक्त बनाया गया। दो घंटे बाद ही रात को 11 बजे फिर उनका आदेश निरस्त कर दिया गया। आखिर जनक पाठक के साथ ऐसा क्यों हो रहा है? धर्म, कर्म में रुचि रखने वाले जनक पाठक कांग्रेस शासनकाल के बाद अब भाजपा सरकार में भी प्रताडि़त क्यों हैं?

जेजेएम का विवादों से नाता

केन्द्र सरकार की महती योजना जल जीवन मिशन छत्तीसगढ़ में शुरु से ही विवादित रही। यहां 15000 करोड़ के घोटालों के आरोपों के चलते प्रदेशभर में जेजेएम के पूरे टेन्डर निरस्त कर दिए गए थे। कहते हैं कि इसमें कई ठेकेदारों के करोड़ों रुपये डूब गए। फिर किसी न किसी तरह से इस योजना की गाड़ी आगे बढ़ी। कहते हैं कि अधिक मुनाफा के चक्कर में ठेकेदार निविदा मिलने से पहले ही 10 प्रतिशत की राशि एडवांस के रुप में कमीशन दे देते हैं, उसके बाद पेमेन्ट के समय उतनी ही राशि फिर दी जाती है। खैर सच क्या है ? यह तो जेजेएम में काम कर रहे ठेकेदार, अफसर और नेता ही जानेंगे। लेकिन भ्रष्टाचार के कारण राज्य में यह योजना काफी पिछड़ गई, वहीं इस दौरान राज्य में सरकार भी बदल गई। अब करोड़ों का काम करके जेजेएम ठेकेदार दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।

रोहित, रजत और कटारिया की छत्तीसगढ़ वापसी

आईएएस डॉ. रोहित यादव, रजत कुमार और अमित कटारिया की छत्तीसगढ़ वापसी होने जा रही है। 2002 बैच के अफसर डॉ. रोहित यादव वर्ष 2018 से दिल्ली में हैं। वहीं रजत कुमार 2019 में प्रतिनियुक्ति में चले गए थे। माना जा रहा है कि सितम्बर के पहले सप्ताह रजत कुमार मंत्रालय में अपनी उपस्थिति दर्ज करा देंगे। वहीं केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति में गए अमित कटारिया के भी पांच वर्ष पूरे हो चुके हैं, ऐसे में कटारिया की भी राज्य वापसी हो सकती है। भूपेश सरकार के दौरान राज्य में सीनियर अफसर की कमी हो गई थी। भाजपा सरकार आने के बाद कई अफसर छत्तीसगढ़ वापस आ चुके हैं। ऐसे में अब अफसरों की पर्याप्त उपलब्ध्ता रहेगी।

सीनियर आईएफएस की केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति में जाने की चर्चा

इन दिनों एक सीनियर आईएफएस अफसर की केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति में जाने की चर्चा है। दरअसल में यह चर्चा इसलिए है कि उन्होंने केन्द्र में एम्पैनलमेन्ट के लिए आवेदन किया है। जबकि जानकारों का मानना है कि वह छत्तीसगढ़ छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। बहरहाल सभी दरवाजे खोलकर रखना ही होशियारी होती है। वैसे भी यह अफसर अपने कुशल मैनेजमेन्ट क्षमता के लिए जाने जाते हैं। शायद इसी कारण पूर्व की सरकार में भी इन्हें भरपूर तवज्जो दी गई, वर्तमान सरकार ने भी हाथों-हाथ ले लिया गया है।

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