हलचल… मुरगा लड़ाई और गोल-गोल रानी का खेल

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मुरगा लड़ाई और गोल-गोल रानी का खेल

कांग्रेस जहां पिछड़े, अगड़े और न जाने किसकी-किसकी बात करती है, वहीं देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अक्सर यह कहते नजर आते हैं कि देश की सबसे बड़ी जाति अगर कोई है तो वह है ‘गरीब’। मोदी कहते हैं कि वह हर गरीब के साथ खड़े हैं चाहे वह अगड़ा हो या पिछड़ा। नरेन्द्र मोदी यह भली-भांति जानते हैं कि भारत देश में गरीबों की संख्या काफी तादात में हैं। यदि यह सच नहीं होता तो 70 करोड़ लोगों को मुफ्त में आनाज देने की नौबत नहीं रहती। खैर हम व्यक्तिगत तौर पर इसके पक्षधर हैं। रोटी, कपड़ा और मकान में सबका अधिकार है। और सरकार की यह जिम्मेदारी भी है कि वह अपनी जनता को रोटी, कपड़ा और मकान उपलब्ध कराये। इसके विपरीत यहां अमीरों की संख्या मुट्ठीभर है। नरेन्द्र मोदी चालाक राजनेता हैं, वह जानते हैं कि गरीब साथ है तो अमीर के द्वारा गलत तरीके से अर्जित किया हुआ धन कभी भी आसानी से निकाला जा सकता है। फिर जाहे वह किसी दल का नेता हो या करोबारी। शायद यही कारण है कि मोदी सीना ठोंककर बोलते नजर आते हैं, कि जेल तो जाना पड़ेगा, जेल की रोटी खाना पड़ेगा। मोदी ने कईयों को जेल पहुंचा भी दिया। यह बात अलग है कि इसमें उनके पार्टी के नेताओं और पार्टी से जुड़े व्यापारियों की संख्या काफी कम है। खैर राजनीति में सभी खेल जायज हैं। इधर कांग्रेसी मुरगा लड़ाई का खेल खेल रहे हैं, तो वहीं नरेन्द्र मोदी और भाजपा गोल-गोल रानी इतना-इतना पानी का खेल खेलते दिख रहे हैं।

निहत्थे बघेल, चक्रब्यूह में फंसा दुर्ग

जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है, चुनावी रण में दम दिखने लगा है। छत्तीसगढ़ की पांच सीटों पर मुकाबला रोचक होने जा रहा है। परिणाम जो भी हों, लेकिन राजनीतिक पैंतरे जमकर चले जा रहे हैं। अन्य सीटों की अपेक्षा दुर्ग, राजनांदगांव, कोरबा, कांकेर और सरगुजा में मुकाबला काफी रोचक और नजदीकी हो सकता है। दरअसल में भाजपा ने इस बार विजय बघेल को निहत्थे चुनावी युद्ध में झोंक दिया है। हालांकि पिछला चुनाव विजय बघेल ने तकरीबन 3 लाख 50 हजार से भी अधिक मतों से जीता था। भाजपा को इस चुनाव में भी विजय बघेल से बड़ी आस है। लेकिन इस बार विजय बघेल निहत्थे दिख रहे हैं। वह चुनावी युद्ध में तीर छोड़ते तो नजर आ रहे हैं, लेकिन तरकश में मोदी नामक अस्त्र के आलावा कुछ भी दिख नहीं रहा। विजय बघेल ने पांच साल में अच्छा राजनीतिक प्रदर्शन किया, उन्होंने लोकसभा के आलावा विधानसभा चुनाव में भी अपने प्रतिद्वंदी पूर्व सीएम भूपेश बघेल को जमकर टक्कर दी, लेकिन विजय बघेल की सांसद के रुप में कोई बड़ी उपलब्धि जनता को नहीं दिख रही है। भाजपा ने उन्हें हर मोर्चे पर धकेला, पर उन्हें सत्ता या संगठन में कोई बड़ा पद, या जिम्मेदारी नहीं दी गई। अब दुर्ग की जनता के सामने विश्वास का संकट दिख रहा है। आम जनता के मन में सवाल उठ रहा कि विजय फिर चुनाव जीतते हैं, तो क्या भाजपा बृजमोहन अग्रवाल, सरोज पांडे जैसे नेताओं को किनारे कर विजय बघेल को जिम्मेदारी देगी? भाजपा के अभी तक के रवैया से दुर्ग की जनता में निराशा है। उन्हें यह लग रहा कि विजय बघेल आगे भी सिर्फ सांसद बनकर रह जाएंगे। वहीं दूसरी ओर जातिगत अस्त्र से भी विजय लहू-लुहान होते दिख रहे हैं। कुल मिलाकर इस चुनावी रण में विजय निहत्थे और दुर्ग चक्रव्यूह में फंसता दिख रहा है।

इधर कुआं, उधर खाई

सरगुजा से टीएस सिंहदेव का बड़ा लगाव है। कहते हैं कि हाथी मर भी जाए तब भी सवा लाख का होता है। सिंहदेव भले ही चुनाव हार गए, लेकिन उनकी शक्तियों का परीक्षण करना ठीक नहीं है। और जब मामला ईगो का हो तो और खतरनाक होता है। उदाहरण आपके समाने हैं, कभी कांग्रेस की कब्जे में रही सरगुजा की 14 सीटों पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा है। सिंहदेव का ईगो हर्ट करने वाले बृहस्पति सिंह के हाल सब देख रहे हैं। सभी नेताओं की धड़ाधड़ कांग्रेस में वापसी हो रही है, लेकिन बृहस्पिति मंगलग्रह चले गए हैं। अपने मित्र बृहस्पति का हश्र देख, गिरते-परते चिंतामणि महराज ने भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने चिंतामणि महराज को टिकट देकर फिर सिंहदेव की चिंता बढ़ा दी है। अब मामला एक बार फिर ईगो का है, इसलिए सिंहदेव फिर ताकत दिखाना शुरु कर दिए हैं। कभी बृहस्पति सिंह की टोली में रहे चिंतामणि महराज की सरगुजा महाराज से आज भी छत्तिस का आकड़ा है। जिसके चलते महाराज चुनावी मैदान में सेना समेत उतर गए है। वहीं इस बीच चिंतामणि के खिलाफ एक आरोप पत्र जारी किया गया है, जो सोशल मीडिया में जमकर वायरल हो रहा है। कहते हैं इस आरोप पत्र के पीछे भाजपा के स्थानीय नेताओं का हाथ है, बहरहाल यह सब जांच का विषय है। लेकिन चिंतामणि महराज को इधर स्थानीय भाजपा नेताओं का छुपा विरोध और उधर सिंहदेव के खुले विरोध का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में चिंतामणि महराज के लिए इधर कुआं, उधर खाई वाली स्थिति निर्मित होते दिख रही है।

संतोष पर निगाहें

छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव रोचक हो चुका है। राजनांदगांव राज्य की सबसे हाई प्रोफाइल सीट मानी जा रही है। यह सीट इसलिए हाई प्रोफाइल हो चुकी है क्योंकि यहां से कांग्रेस ने पूर्व सीएम और कद्दावर नेता भूपेश बघेल को मैदान में उतारा है। दरअसल में रमन युग की शुरुआत भी कुछ इसी तरह हुई थी। 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा को राजनांदगांव से सरल और सहज छवि के नेता डॉ. रमन सिंह ने चुनाव हराया था। वोरा को चुनाव हराने के कारण रमन पार्टी ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में एक बड़ा चेहरा बनकर उभरे थे। वोरा को चुनावी मैदान में पटकनी देने के बाद रमन सिंह को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री बनाया गया था। अब ठीक वैसी ही चुनौती राजनांदगांव के संतोष पांडे के सामने हैं। जहां भूपेश और पांडे के बीच कड़ी टक्कर बताई जा रही है। संतोष पांडे भी सहज और सरल नेता माने जाते हैं। ऐसे में संतोष यदि कांग्रेस के कद्दावर नेता पूर्व सीएम भूपेश बघेल को चुनावी मैदान में पटकनी देने में सफल होते हैं, तो उन्हें केन्द्र में बड़ी जिम्मेदारी मिलने की सम्भावना है।

दो-दो भोजराज

रोमांचक मुकाबले वाली सीटों में इन दिनों जमकर पैंतरे चले जा रहे हैं। भाजपा ने कांकेर लोकसभा चुनाव में पूर्व विधायक भोजराज नाग को मैदान में उतारा है।
एक ओर भोजराज नाग आरोपों में घिरते दिख रहे हैं। वहीं इस चुनाव में दिवंगत नेता अजीत जोगी का दांव भी खेला जा रहा है। दरअसल में यहां से एक और भोजराज नाम के प्रत्याशी को मैदान में उतारा गया है। हालांकि इससे भाजपा के भोजराज का कितना नुकसान होगा, यह फिलहाल कहा नहीं जा सकता। लेकिन दूसरे भोजराज ने बीजेपी की चिंता जरुर बढ़ा दी है। कांकेर लोकसभा क्षेत्र में मुकाबला पिछले बार भी काफी रोमांचक और नजदीकी रहा। देश में घोर मोदी लहर के बाद भी यहां से भाजपा के मोहन मंडावी महज 6914 वोटों से ही जीत हासिल करने में सफल हुए थे। अब एक बार कांग्रेस ने फिर बीरेश ठाकुर पर भरोसा जताया है। यहां के वोटरों के सामने दो-दो भोजराज हैं। निश्चित ही कम साक्षरता वाले इलाकों में इसका नुकसान भाजपा को हो सकता है। दरअसल में इसे हमने जोगी का पैंतरा इसलिए कहा क्योंकि 2014 में अजीत जोगी ने भाजपा के चंदूलाल साहू के सामने तकरीबन आधा दर्जन चंदूलाल साहू नाम के निर्दलीय प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा था।

400 करोड़ का नुकसान, जबाबदेही किसकी?

छत्तीसगढ़ के इतिहास में आगजनी की इतनी बड़ी घटना घटित हो गई, मीडिया रिपोर्ट की माने तो तकरीबन 400 करोड़ रुपये की आर्थिक क्षति का अनुमान लगाया जा रहा है। सीएसपीडीसीएल का पूरा डिपो ही जलकर खाक हो गया। यहां इंश्योरेंस तक नहीं था। राजधानी में अफरा-तफरी मची रही। आग इतनी भयावह थी कि तीन दिन तक, इसे बुझाने में पूरा तंत्र लगा रहा। 400 करोड़ रुपये किसी एक विभाग का वार्षिक बजट होता है। लेकिन यहां कोई इस विषय पर बात करने को तैयार नहीं है। आगजनी से जनता के करोड़ों रुपये बर्बाद हो गए, कई विद्युत यंत्र तबाह हो गए, लेकिन अब तक इसकी जांच रिपोर्ट नहीं आई। आखिर जबाबदेही किसकी है।

editor.pioneerraipur@gmail.com

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