हलचल… रमन की राह चले भूपेश

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तो क्या पीएम मोदी भी मार्गदर्शक मण्डल में?

17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 75 वर्ष का आकड़ा पार कर जाएंगे। पीएम मोदी के केन्द्रीय राजनीति में आने बाद लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे कई दिग्गज नेता 75 पार का आकड़ा पार करते ही मार्गदर्शक मण्डल में चले गए। तो क्या अब पीएम मोदी का नम्बर है? दरअसल में कहा जा रहा है कि भाजपा और संघ के बीच इन दिनों कुछ ठीक नहीें चल रहा है। सम्भवत: इसीलिए अभी तक भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष पर मुहर नहीं लग पाई है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि 17 सितम्बर के बाद ही भाजपा का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाएगा। सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में मोदी मार्गदर्शक मण्डल में चले जाएंगे? सुब्रमण्यम स्वामी के बयान के मायने क्या हैं? गडकरी अपने ही सरकार के प्रति इतने मुखर क्यों हैं? 21 अगस्त को सुब्रमण्यम स्वामी ने ऐसा क्यों कहा –  ‘If Modi does not, as committed to RSS Pracharak’s sanskar, announce his retiring to Marg Darshan Mandal after his 75th birthday on September 17th, then he will lose his PM chair by other methods.’ बहरहाल इन तामाम सवालों का जबाब अब 17 सितम्बर के बाद ही मिल सकेगा।

हम किसी से कम नहीं

‘हम किसी से कम नहीं’ छत्तीसगढ़ में इन दिनों यही चल रहा है, जनता के हितों के लिए चुनी गई सरकार में अफसर अपना दम दिखाने से पीछे नहीं हट रहे हैं। क्या करें कुर्सी की प्रतिस्पर्धा में सब कुछ करना पड़ता है। बीते सप्ताह राजधानी के एक बड़े होटल में केन्द्रीय मंत्री समेत कई राज्यों के अफसरों का जमावाड़ा कर एक बड़ा आयोजन किया गया। कहते हैं कि इस आयोजन में 75 लाख से जादा की राशि खर्च की गई। अब उससे भी बड़े आयोजन की तैयारी की जा रही है, जिसमें सीधा राष्ट्रपति को बुलाने की योजना है। इसके लिए प्रस्ताव भी भेजा गया है। वैसे तो यह आयोजन रोटेशन पर होता है, इससे पहले राज्य में 2019 में आयोजित हुआ था। लेकिन अफसरशाही में नई सरकार के सामने नम्बर बढ़ाने की होड़ मची है, इसलिए इस आयोजन को फिर से लपक लिया गया। निश्चित तौर पर स्पोर्टस में रुचि रखने वाले अफसरों में इसको लेकर उत्साह होगा, लेकिन हर विभाग में राशि की कटौती करने वाले जिम्मेदार फिलहाल ऐसे आयोजनों में खामोशी बनाकर चल रहे हैं?

गांजा की गूंज शाह तक

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान नक्सल मामलों को लेकर हाईलेवल मीटिंग रखी गई। शाह ने नक्सल मोर्चे पर हुए अब तक के कामों के लिए छत्तीसगढ़ की विष्णु सरकार की सराहना भी की। दूसरे दिन गजेंडिय़ों ने केन्दीय गृह मंत्री अमित शाह का ध्यान खींच लिया। दरअसल में छत्तीसगढ़ में गांजे का नशा राष्ट्रीय औसत से जादा है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गांजे की नशाखोरी को लेकर चिंता जाहिर की। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के क्षेत्रीय कार्यालय के उद्घाटन के समय यह जानकारी छनकर समाने आई। छत्तीसगढ़ में 4.98 प्रतिशत गांजे का उपयोग नशे के लिए किया जाता है, जो राष्ट्रीय औसत 2.83 प्रतिशत से अधिक है। शाह ने राज्य में हो रहे व्यापक पैमाने पर गांजे की खपत को लेकर चिंता जाहिर की। बहरहाल इस गांजे के चक्कर में भूपेश सरकार ने डीजीपी बदल दिया था। गांजे को लेकर पूर्व सरकार में कई बार बैठकों का दौर चला, पर गंजेडिय़ों पर सरकार लगाम नहीं लगा सकी। अब शाह तक गांजे की गूंज पहुंच चुकी है, देखना यह है कि सुशासन वाली विष्णु सरकार गांजे पर कितना लगाम लगा पाती है।

रमन की राह चले भूपेश

विपक्ष में रहते हुए डॉ. रमन सिंह अफसरों को जमकर धमकाते नजर आते थे। डॉ. साहब ने तो एक बार भाषण के दौरान दुर्ग में साफ तौर पर कहा था कि अफसर बोरिया बिस्तर बांध लें, उलटी गिनी शुरु हो चुकी है। वैसे तो रमन सिंह के कार्यकाल में अफसर कमफर्ट जोन में रहे। लेकिन विपक्ष में आने के बाद डॉ. रमन सिंह एकमात्र ऐसे नेता थे, जो अफसरों के खिलाफ जमकर आक्रामक नजर आते थे। अब पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी रमन की राह चलते हुए दिख रहे हैं, रमन सिंह की तरह भूपेश बघेल भी अफसरों को आड़े हाथ लेने से परहेज नहीं कर रहे। यह बात अलग है कि भूपेश राज में कुछ अफसरों ने जमकर मलाई खाई। बीते दिन पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने दुर्ग एसपी को निशाने पर लिया, बघेल ने कहा कि सबसे बड़ा गुंडा दुर्ग में एसपी बन गए हैं। बड़े-बड़े तुर्मखान से एप्रोच लगाकर आये, लेकिन इनको पता नहीं बड़े-बड़े तुर्मखान बोरिया बिस्तर बांधकर चले गए। कुल मिलाकार विपक्ष में आते ही भूपेश बघेल को भी रमन की राह भाने लगी है।

झांकी, कांट्रैक्टर, मेट, टिकट कलेक्टर के चर्चे

कुछ अफसरों ने सरकार के मंत्रियों के कामकाज के तौर-तरीकों को भांपकर उनका नामकरण कर दिया है। जिसमें झांकी, कांट्रैक्टर, मेट बाउंसर, पटवारी और टिकट कलेक्टर आदि के नाम से इशारे-इशारे में संबोधित किया जाता है। कहते हैं कि कांट्रैक्टर और झांकी के कामों की इन दिनों जमकर चर्चा है। जादा फेंकने वाले नेता जी को झांकी का तबका दिया गया है। वहीं बांउसर की हाईट कम बताई जा रही है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इन्ही नाम से इशारे-इशारे में सूचना का अदान-प्रदान कर अफसर अलर्ट हो जाते हैं।

आबकारी अफसरों पर कार्रवाई क्यों नहीं?

ईडी ने राज्य में हुए 2000 करोड़ से अधिक के शराब घोटाले में कई आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। मामले में नकली होलोग्राम से लेकर वाइन फैट्रियों पर अवैध शराब खपाने के आरोप हैं। हालंाकि अभी तक भ्रष्टाचार में लिप्त कई आबकारी अफसरों के खिलाफ अपराध दर्ज नहीं किए गए हैं? जबकि ईडी के द्वारा जांच के दौरान गड़बड़ी सामने आने के बाद तत्कालीन आबकारी आयुक्त ने विभाग के अफसरों से संलिप्तता को लेकर जबाब तलब किया था। जानकारों का मानना है कि आरोपों के अधार पर आबकारी अफसरों पर भी अपराध दर्ज किए जाने चाहिए थे। बहरहाल अफसरों ने विभाग को क्या जबाव दिया अभी तक इसका खुलासा नहीं हो पाया है। लेकिन इतने बड़े सिंडीकेट में कई आबकारी अफसरों की संलिप्तता की आशंका होने के बाद भी वो आज सीना चौड़ा करके काम कर रहे हैं।

जीपी सिंह का क्या?

कांग्रेस सरकार में 1994 बैच के आईपीएस जीपी सिंह को विशेष सेवानिवृति प्रस्ताव भेजा गया था, जिसमें केन्द्र सरकार ने मुहर लगा दी थी। सेवानिवृति के खिलाफ जीपी ने कैट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें उन्हें बड़ी राहत मिली। उसके बाद अब जीपी सिंह को दिल्ली हाईकोर्ट से भी राहत मिली है। बता दें कि कैट के फैसले के विरोध में भारत सरकार ने ही दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया है। हालांकि भारत सरकार के पास अभी सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता बचा हुआ है। वहीं यदि सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं की जाती है तो आईपीएस जीपी सिंह की बहाली होने की पूरी संभावना दिख रही है। हालांकि राज्य सरकार के 8 माह बीतने के बाद अब जीपी के प्रति कोई खास रुचि नहीं दिख रही है। बहरहाल आगे क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।

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