तुम जैसा नहीं बनना है-स्त्री विमर्श पर एक जागरुक पहल,पुस्तक समीक्षा- दयानंद अवस्थी

सक्ति-डॉक्टर राजू पाण्डे के स्त्री विमर्श पर प्रकाशित लेखों का यह संचयन समसामयिक विषयों में सर्वाधिक ज्वलंत है,जिन विषयों पर सर्वाधिक चर्चा की आवश्यकता है, वही विषय समाज में किस तरह प्राथमिकता में नीचे धकेल दिए जाते हैं, यह तुम जैसा नहीं बनना है के प्रकाशन के पश्चात काफ़ी हद तक स्पष्ट हो जाता है,नारी की दशा पर जिन गम्भीर कोशिशों की आवश्यकता है, वह मात्र लेखों व निबन्ध तक सीमित हो चला है।सबरीमाला के प्रकरण पर राजू पाण्डे ने इंगित किया है कि किस तरह से न केवल जाति समीकरण वरन लिंग भेद का कारक धर्मस्थलों पर हावी है,और उसमें सामाजिक जागरूकता की स्थिति बड़ी दयनीय है

मीटू जैसे प्रकरणों का सामने आना पुरुष वादी स्त्रीभोग्या सोंच का उदाहरण है, यद्यपि यह आरोप उन लोगों ने अधिक लगाए हैं जो इस आरोप को लगाने से पहले पीड़ित बने हैं तथा जब उनके साथ ज्यादती हुई तभी वे सीधे समाज को इस गतिविधि से अवगत कराने में सक्षम रही हैं । इसमें स्वार्थ परकता के पुट अधिक दिख रहे हैं। हालाँकि इस विषय से वास्तविक मूल पीड़ित व शोषित प्रेरित होकर अपने अधिकारों के प्रति जागरुक अवश्य हुई हैं,पुस्तक में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संदर्भों को सजीवता प्रदान करता हुआ लेख “सरोजनी को नापसंद था नारीवादी कहलाना” के माध्यम से प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरोजनी नायडू के नारीवाद की पाश्चात्य तरीक़े और भारतीय तरीक़ों को स्पष्ट किया गया है। वे भारत में पृथक नारीवादी आंदोलन की आवश्यकता नहीं महसूस करती थी। और न ही स्त्री और पुरुष के मध्य किए गए एकतरफ़ा और मनमाने कार्य विभाजन में उनका विश्वास था।सरोजनी नायडू के भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के विचारों के माध्यम से राजू पाण्डे ने यह संदेश भी देने का प्रयास किया है की पाश्चात्य संस्कृति एवं भारतीय संस्कृति में स्त्री विमर्श को सदैव अलग नज़रिए से देखा गया है। हालाँकि भारत के पुरातन सांस्कृतिक मायथोलोजिकल काल में विदुषियों लोपामुद्रा, विद्योत्तमा, अपाला, घोषा ,गार्गी ,सिक्ता रत्नावली आदि के विचारों को लेखों के संकलन में स्थान नहीं प्राप्त हुआ है

 

पुस्तक “तुम जैसा नहीं बनना है “ में विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित 22 लेखों का संकलन है। जिसे अगोरा प्रकाशन से प्रकाशित व मुद्रित किया गया है।अनुप्रिया का आवरण चित्र स्त्री की मनोदशा को बेहतर चित्रण करने में सफल रहा है,यद्यपि राजू पाण्डे ने मुझसे इस सम्बंध में यथार्थपरक चित्र मुखपृष्ठ में डालने की मंशा की थी किंतु कालांतर में प्रकाशक अपर्णा से इस सम्बंध में कुछ बात हुयी होगी जिससे इसमें परिवर्तन किया गया है,यह आलेखों के पिटारे से समाज को कितना मार्गदर्शन प्राप्त होगा यह तो समय ही बताएगा, अलबत्ता डॉक्टर राजू ने इस पर लेखकीय के माध्यम से लिखा है कि- सम सामयिक घटनाओं को आधार बना कर लिखे गए यह आलेख दरअसल स्त्री- विमर्श से सम्बंधित जटिल दार्शनिक प्रश्नों से टकराते हैं। यदि पाठक इन आलेखों में किसी समाधान की आशा या किसी वैकल्पिक मूल्य मीमांसा की तलाश करेंगे तो उन्हें शायद निराशा ही होगी , किंतु पिर्तुसत्या के षड्यंत्रों को समझने और उजागर करने की एक ईमानदार कोशिश अवश्य इन आलेखों में की गयी है|

पुस्तक तुम जैसा नहीं बनना स्त्री विमर्श पर एक सारगर्भित रिफ़्रेंस बुक है इसका लाभ पाठक जागरूकता के लिए उठा सकते हैं, यह पुस्तक अमेजन पर भी उपलब्ध है,समीक्षा लेखक- दयानंद अवस्थी

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