विगत 23 जुलाई से 29 जुलाई तक प्रदेश के समस्त शासकीय अधिकारी और कर्मचारी सामूहिक अवकाश लेकर अपनी दो सूत्रीय मांग को लेकर 5 दिवसीय हड़ताल में थे। इस हड़ताल से सरकार की पूरी व्यवस्था चरमरा गई थी, चूंकि किसी भी सरकार की रीढ़ उसके अधिकारी कर्मचारी ही होते हैं, परंतु कांग्रेस सरकार को सत्ता मिल जाने का अहंकार उनके मुख्यमंत्री के सिर चढ़कर बोल रहा है।
राज्य के कर्मचारी केंद्र के अनुपात में महंगाई भत्ते में वृद्धि की मांग कर रहे हैं परंतु मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उनकी मांगों पर सहानुभूति और विवेकपूर्ण विचार करने की बजाय इसे अपने सम्मान का विषय बना लिया है ।
कर्मचारियों के सामूहिक अवकाश को अस्वीकृत कर उसे ब्रेक इन सर्विस मानना इस सरकार के अहंकार का प्रदर्शन है, मुख्यमंत्री अपने इस तानशाही निर्णय से कर्मचारी फेडरेशन को धमका कर उसका मनोबल गिराना चाहते हैं, जबकि मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार ने वहां के कर्मचारियों की इसी मांग को हरी झंडी दे कर स्वीकार कर लिया है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस ने प्रदेश का खजाना पूरी तरह खाली कर दिया है, मुख्यमंत्री बिना विधानसभा में चर्चा के अपना और मंत्रियों का मानदेय दुगुने से भी ज्यादा कर चुके हैं, पर कर्मचारियों की मांग पर वो तानशाही रवैये का प्रदर्शन कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी सदैव ही, कर्मचारियों के साथ खड़ी रही है और आज भी वो कर्मचारियों की मांगों के समर्थन खड़ी हुई है।
प्रदेश की संपदा को दस जनपथ की निजी संपत्ति बना देने वाले मुख्यमंत्री को कर्मचारियों के साथ किए जा रहे अन्याय का जवाब देना ही होगा, मैं मुख्यमंत्री जी को स्मरण करवाना चाहता हूं की सत्ता पर उनका अधिकार स्थाई नहीं है न ही देश का लोकतंत्र दस जनपथ के इशारों से चलता है, जल्द ही भारतीय जनता पार्टी और ये अधिकारी कर्मचारी जनता के साथ मिलकर आपको कुर्सी से उखाड़ फेंकेंगे।