हलचल….. चुनावी सर्वे का सच?

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चुनावी सर्वे का सच?
छत्तीसगढ़ में आगामी 6 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा-कांग्रेस दोनों ही पार्टियां चुनावी तैयारी में जुट गई हैं। इस बीच न्यूज चैनलों और समाचार पत्रों के चुनावी सर्वे आना शुरु हो गये हैं। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में सर्वे की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग चुका है। 2018 के सर्वे में ज्यादातर न्यूज चैनल, अखबारों ने छत्तीसगढ़ में भाजपा को बढ़त मिलना बताया था, लेकिन परिणाम एकदम विपरीत आये। अब एक बार फिर चुनाव नजदीक है, चुनावी सर्वे आना शुरु हो चुके हैं। पिछले माह एक राष्ट्रीय चैनल ने अपने सर्वे में भाजपा को अधिकतम 39 सीट वहीं कांग्रेस को 47 से 52 सीट मिलने की संभावना जताई हैं। कहते हैं कि चैनल ने सभी 90 विधानसभा सीटों में सर्वे किया। इस सर्वे में 27000 लोगों की राय ली गई। सर्वे में मार्जिन ऑफ एरर प्लस-माइनस 3 फीसदी है। वास्तव में यदि यह सर्वे सच साबित होता है तो भाजपा को रिकार्ड बढ़त यानि 15 से सीधा 39 सीट मिलने की संभावना बताई गई है, वहीं कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने में कामयाब होते दिख रही है। हालांकि अभी सर्वे का दौर खत्म नहीं हुआ, हाल ही में प्रदेश के एक सबसे लोकप्रिय सामाचार पत्र ने आने वाले समय के चुनावी मूड को समझने के लिए राज्यभर से 8382 लोगों की राय ली। कहा जाता है कि यह सर्वे ओटीपी आधारित था जिससे सर्वे की विश्वनीयता पर कोई प्रश्नचिन्ह न लग सके। सर्वे में बताया गया कि 79 प्रतिषत लोग मानते हैं कि फ्री के चुनावी वादे सही नहीं हैं। सर्वे में कहा गया है कि 90 सीटों में से 63 प्रतिशत लोग अपने विधायकों से संतुष्ट नहीं हैं। पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने कहा कि पिछले वादे पूरे नहीं हुए। यह दौर यहीं खत्म नहीं हुआ अब राज्य के एक और अखबार ने चुनावी सर्वे का फार्म प्रकाशित किया है। इसमें कांग्रेस की ओर से सीएम भूपेश बघेल का फेस हैं, तो भाजपा की ओर से रमन सिंह का फेस सामने रख चुनावी सर्वे किया जा रहा है। पहला सवाल कांग्रेस से सीएम के रुप में किसे सबसे जादा पसंद किया जा रहा है इसको लेकर है। सर्वप्रथम भूपेश बघेल तथा दूसरे नंबर पर टीएस सिंहदेव तथा तीसरे क्रम में ताम्रध्वज साहू का नाम रखा गया है। हालांकि सर्वे को बहुत ही पारदर्शी बनाने की कोशिश की गई है। अभी तक के सर्वे रिपोर्ट को देखा जाए तो आगामी विधानसभा चुनाव में बहुत ही करीबी मुकाबला होने जा रहा है। लेकिन वास्तव में सर्वे का सच तो मतदाता ही तय करता है। जो आने वाले चुनाव परिणाम के बाद ही सामने आ सकेगें।

बैस के कोटे से कौन?

रायपुर से कई बार सांसद रहे रमेश बैस इन दिनों सीमावर्ती राज्य महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। स्वाभाविक है एक बार दो बार प्रत्यासी पार्टी के सिंबल पर चुनाव जीत सकता है, लेकिन 7 बार चुनाव तो अपनी काबिलियत पर ही जीते जाते हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि बैस का प्रभाव रायपुर की सीटों में रहेगा। हालांकि बैस अभी संवैधानिक पद पर हैं वह सक्रिय राजनीति से बाहर हैं। लेकिन बैस के प्रभाव से रायपुर की एक सीट में उनके परिवार के किसी सदस्य को जगह दी जा सकती है।

पंकज और अमित करेंगे दो-दो हाथ ?

राजधानी रायपुर की चारों सीटों में आगामी विधानसभा चुनाव बहुत ही रोचक होने जा रहा है।रायपुर ग्रामीण से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सत्यनारायण शर्मा वर्तमान  में विधायक हैं। कहते हैं कि सत्यनारायण शर्मा आगामी चुनाव में अपने पुत्र पंकज शर्मा को कांग्रेस का प्रत्यासी बनाना चाहते हैं। पंकज शर्मा युवा और सुलझे हुए नेता हैं। इसलिए संभवत: मंत्रीमण्डल में जगह न दिए जाने के कोरम को पूरा करते हुए पंकज शर्मा को कांग्रेस उम्मीदवार घोषित कर दे। वहीं कांग्रेस यदि पंकज को आगे करती है, तो भारतीय जनता पार्टी भी जातिगत समीकरण को साधते हुए युवा प्रत्याशी को मैदान में उतार सकती है। अंदरखाने में यह चर्चा चल रही है कि यदि कांग्रेस पंकज शर्मा को उम्मीदवार बनाती है तो, भाजपा अमित साहू के नाम को आगे बढ़ा सकती है। अमित साहू भाजयुमो के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। युवा होनें के साथ वह समाज में भी काफी सक्रिय हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि आगामी समय में रायुपर ग्रामीण में युवा प्रत्यासी दो-दो हाथ करते नजर आयेंगे।

अभी नहीं तो कभी नहीं

राज्य में पहली बार पीसीसीएफ पद के लिए इतना उथल-पुथल देखने को मिल रहा है। दरअसल में राज्य सरकार ने 7 सीनियर आईंएफएस अफसरों को दरकिनार करते हुए कैम्पा के सीइओ वी श्रीनिवास राव को प्रभारी पीसीसीएफ नियुक्त कर दिया है। कहते हैं कि राकेश चतुर्वेदी के रिटायर होते ही श्रीनिवास राव ने पांसा फेंक दिया था, लेकिन संजय शुक्ला का भी प्रभाव कम नहीं था जिसके कारण संजय शुक्ला हेड ऑफ फारेस्ट की कुर्सी तक पहुंच गये। लेकिन अब राव को पता है बाकी अफसरों का अप्रोच उतना नहीं कि वह राव के सामने टिक सकें। श्रीनिवास राव यह भली-भांति जानते हैं कि कैम्पा सीईओं के पद पर रहते ही उनकी मांगे पूरी हो सकती हैं, उसके बाद कुछ नहीं होना है। यही कारण है कि राव अभी नहीं तो कभी नही के फार्मूले के साथ बिना किसी सीनियर अफसर की परवाह किये अपने नाम को बढ़ाने के लिए अड़ गए। और सरकार को उन्हें मजबूरी में प्रभारी पीसीसीएफ बनाना पड़ा। राव का चला पांसा एकदम फिट है, अभी प्रभारी पीसीसीएफ और कुछ माह बाद पीसीसीएफ का फुल आर्डर। श्रीनिवास राव को भले ही गे्रड मिल गया हो लेकिन वास्तव में डीपीसी न होने तक वह एपीसीसीएफ हैं। 1 मई से संजय शुक्ला का पद रिक्त हो जाएगा और अगामी समय मे आशीष भट्ट के रिटायर होते ही दो पद रिक्त हो जाएंगे। ऐसे मेें तुरंत डीपीसी कर अनिल साहू और वी श्रीनिवास राव को पीसीसीएफ प्रमोट कर फुल आर्डर जारी कर दिये जाएगें। वैसे भी अगस्त में कैम्पा के सीईओं के रुप में काम करते राव को पांच साल पूरे हो रहे हैं। ऐसे में कोई भी आपत्ति आती है तो राव के हटने के पूरे आसार रहेगें। इसलिए राव का चला पांसा एकदम फिट है अभी नहीं तो कभी नहीं।

टूटेजा को राहत से औरों को कितनी राहत ?

चर्चित आइएएस अनिल टूटेजा को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने की खबर इन दिनों सुर्खियों में है। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं द्वारा पीएमएलए के तहत धारा 50 व धारा 63 को चुनौती दी थी। दरअसल में ईडी ने इस धारा के तहत छापेमार की कार्रवाई की थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि किस आधार पर कार्रवाई की गई है। यह नहीं बताया गया। वहीं ईडी की ओर से कहा गया कि यह एक गम्भीर स्कैम है। कोर्ट ने ईडी को कहा कि यह प्रक्रियागत त्रुटि है। आगे इस पर ध्यान दें। सुप्रीम कोर्ट ने आईएएस अनिल टूटेजा, उनके पुत्र यश टूटेजा दोनों का राहत देते हुए गिरफतारी पर रोक लगा दी है। वहीं याचिकाकर्ता ईडी को जांच में सहयोग करते रहेंगे। टूटेजा की राहत से वास्तव में कितनी राहत इसको लेकर सवाल उठ रहे हैं? आईएएस अनिल टूटेजा 20 मई को रिटायर हो जाएंगें। ऐसे में यह जांच चलते रहेंगी। याचिकाकर्ताओं ने साफ -तौर पर कहा है कि वह ईडी की जांच में सहयोग करते रहेंगे। वास्तव में सुप्रीम कोर्ट ने मामले में कुछ हद तक अनिल टूटेजा, और यश टूटेजा को राहत दे दी है। लेकिन इस राहत से औरों को कितनी राहत मिलेगी यह अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।

 

 

 

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