सास-ससुर ने विधवा बहू की घर बसाया, पुनर्विवाह कराया

जगदलपुर/बिलासपुर। हिंदू समाज में मान्यता रही है कि बेटी बाबुल की चौखट से विदा होती है, तो उसकी अर्थी ससुराल से निकलती है। भारतीय समाज में पति के स्वर्गवास के बाद पत्नी को जो वैधव्य पीड़ा भोगनी पड़ती है, उसका अहसास सिर्फ उसी को होता है। बिलासपुर के देवांगन समाज के सीता-श्यामलाल देवांगन ने अपनी विधवा पुत्रवधू गायत्री का पुनर्विवाह करवाकर सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने की दिशा में भगीरथ प्रयास किया है। नगर में उनके इस कदम की सराहना की जा रही है।

श्यामलाल देवांगन के इकलौते बेटे पारस देवांगन का विवाह रायगढ़ के चुन्नी हरिलाल देवांगन की पुत्री गायत्री के साथ हुआ था। कोरोना काल में पारस की मौत हो गई और गायत्री विधवा हो गई। सीता-श्यामलाल देवांगन जब भी घर में अपने पुत्र की तस्वीर व उसकी विधवा पत्नी को देखते, तो उनकी आंखें भर आती थीं। विधवा गायत्री सास-ससुर की सेवा में लीन थी। उसकी हर संभव कोशिश थी कि सास-ससुर को बेटे के जाने के सदमे से वह उबार ले। गायत्री ने बेटी की तरह दोनों की सेवा की। इस बीच सीता-श्यामलाल देवांगन ने ठान लिया कि पुत्रवधू का जीवन वैधव्य में नष्ट नहीं होने देंगे।

उन्होंने बहू को बेटी समझ कन्यादान का निश्चय किया। उन्होंने उसके लिए रिश्ता तलाशना शुरू किया। समाज के शिक्षित युवक आशीष ने गायत्री का हाथ थामने पर सहमति दी। सामाजिक रीति-रिवाज से उसका विवाह आशीष से कर दिया गया। सास-ससुर ने अश्रुपूरित आंखों से बहू रूपी बेटी का कन्यादान कर उसे अपनी दहलीज से विदा किया।

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