‘मैदान तुम चुनो’…केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को दी खुली चुनौती, सियासी पारा चढ़ा

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव से पहले देश में सियासत गरमा गई है. इस बीच केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को खुली चुनौती दी है कि वो एनडीए और यूपीए दोनों के दस सालों पर बहस करें.

स्मृति ईरानी ने उन्हें चुनौती देते हुए कहा कि राहुल गांधी मैदान तुम चुनो, कार्यकर्ता हम चुनेंगे. उन्होंने दावा किया कि अगर युवा मोर्चा के किसी कार्यकर्ता ने उनके सामने बोलना शुरू कर दिया तो वे बोलना भूल जाएंगे.

स्मृति ने नागपुर में ‘नमो युवा महासम्मेलन’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राहुल गांधी को बहस के लिए इनवायट करते हुए कहा कि अगर मेरी आवाज राहुल गांधी तक पहुंच रही है तो उन्हें कान खोलकर सुनना चाहिए. आइए, इस पर बहस कर लें कि किसके दस साल बेहतर हैं. मैदान तुम चुनो, कार्यकर्ता हम चुनेंगे.

स्मृति ने कहा कि जब देश में अंधेरा था, तब सिर्फ गांधी परिवार में रोशनी थी. अहंकार आज भी बरकरार है. जब राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी, तब उन्हें भी आमंत्रित किया गया था. लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया. रस्सी जल गई लेकिन अकड़ नहीं गई. राहुल गांधी मैदान तुम चुनो, कार्यकर्ता हम चुनेंगे. हो जाएं तुम्हारे दस साल और हमारे दस साल की बहस.

उन्होंने कहा कि INDI के एक चोर ने कहा कि मोदी का कोई परिवार नहीं है, लेकिन हम हैं मोदी का परिवार. हाल ही में राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के तहत अमेठी की यात्रा की थी, जहां से उनके दिवंगत चाचा संजय गांधी, दिवंगत पिता राजीव गांधी और मां सोनिया गांधी सांसद रही हैं. 2004 में राहुल गांधी ने अमेठी से राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी और भारी वोटों से जीत हासिल की थी. हालांकि 2014 के लोकसभा चुनावों में ये अंतर काफी कम हो गया था, क्योंकि अमेठी में जोरदार प्रचार अभियान हुआ और वहां तत्कालीन पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने अपनी बहन स्मृति ईरानी के लिए वोट करने की भावनात्मक अपील की थी.

भारत जोड़ो न्याय यात्रा जब अमेठी से निकली, तब भी इस बात पर अस्पष्टता थी कि राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ेंगे या नहीं. वहीं, राहुल गांधी के आलोचकों का मानना है कि वह चुनाव हारने के बाद शायद ही कभी अमेठी के दौरे पर आए हों और अमेठी के लोगों तक पहुंचने का प्रयास किया हो. हालांकि चुनाव के नतीजे आने तक कुछ भी कहना मुश्किल है कि जनता किस पर भरोसा करेगी और ऊंट किस करवट बैठेगा.

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