World Dog Day: बालोद जिले के ग्राम खपरी में हैं ऐतेहासिक कुकुर देव मंदिर, जहां वफादार कुकुर की हैं समाधि, इस मंदिर से हैं लोगों की आस्था, जलाई जाती है वफादारी की ज्योत… देखें वीडियों

बालोद- आज अंतर्राष्ट्रीय डॉग डें है। ऐसे में हम बात कर रहे है। बालोद जिला के एक गाॅव में स्थित ऐतिहासिक पुरातत्व कुकुर देव मंदिर की। जहाॅ स्थापित भगवान शिव जी की मूर्ति के पास स्वामी भक्त कुत्ते की प्रतिमा भी स्थापित है, जो कि लोगो के लिये आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इस मंदिर की विभिन्न किवंदतियां हैं। वास्तव मे यह एक स्मृति स्मारक है जो कि भगवान शिव जी को समर्पित है। क्षेत्र सहित दूर दूर से लोग यहाॅ श्रद्वापूर्वक आते है। माना जाता है यहाॅ सच्चे मन से मांगी गई मुरादे पूरी होती है। लोगो की अटूट आस्था इस स्थल के प्रति बनी हुई हैं। नवरात्रि के अवसर पर यहाॅ भक्तो के द्वारा मनोकामना जयोतिकलश भी प्रज्वलित किये जाते है। जिसे कई लोग वफादारी कलश भी कहते हैं।

स्वामी भक्त कुत्ते की स्मुति में बनाया गया दफन स्थल-
बालोद जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम खपरी जहाॅ कुकुर देव मंदिर है और इसी मंदिर की वजह से यह गाॅव आज समूचे राज्य मे प्रसिद्व है। इस ऐतिहासिक व पुरातत्वीय मंदिर का निर्माण फणी नागवंशीय शासको द्वारा 14वी-15वी शताब्दी के मध्य कराया गया है। गर्भ गृह मे जलधारी योनिपीठ पर शिवलिंग प्रतिष्ठापित है। ठीक उसी के पास स्वामी भक्त कुत्ते की प्रतिमा भी स्थापित है। लोगो की अटूट आस्था इस स्थल के प्रति है। इस मंदिर के निर्माण को लेकर एक रोचक किदवंती प्रचलित है। बताया जाता है कि बहुत पहले एक बंजारा कर्ज न छुटा पाने की स्थिति मे साहूकार को अपना पालतू कुत्ता दे दिया था और साहूकार के यहाॅ जब चोरी हुई तो उस कुत्ते की चालाकी से चोरी हुए सभी जेवरात व सामान साहूकार को वापस मिल गया। साहूकार बेहद खुश हुआ और उस कुत्ते को उसके मालिक के पास वापस भेज दिया। इस दौरान उसके स्वामीभक्त होने का एक पर्ची उसके गले मे लगा दिया। बंजारे के पास कुत्ता जैसे ही पहुचा तो बंजारा अपने कुत्ते के प्रति सख्त नाराज हुआ। बिना सोचे समझे उसने कुत्ते को मार दिया। उसे लगा कि मै कुत्ते को साहूकार के पास छोड़कर आया हूँ और यह वापस आ गया। लेकिन जब पर्ची पढ़ा तो वह पश्चाताप करने लगा। बंजारा के द्वारा अपने कुत्ते को इसी स्थल मे दफन किया और स्वामी भक्त कुत्ते की स्मुति में यह दफन स्थल बनवाया गया। जहाॅ पर फणी नागवंशीय शासको द्वारा 14वी-15वी शताब्दी के मध्य इस मंदिर का निर्माण कराया गया। तब से आज तक इस मंदिर के प्रति लोगो की अटूट आस्था बनी हुई है। लोगो का ऐसा मानना है कि जो भक्त यहाॅ आकर सच्चे मन से मन्नते मांगते है। उनकी मुरादे जरूर पुरी होती है। लोगो का माने तो कुकुर खांसी या कुत्ते के काटने से लोग यहाॅ का मिट्टी भी उपयोग करते हैं।

पूरी होती है मनोकामना-
नवरात्रि के दौरान लोग यहाॅ मनोकामना ज्योतिकलश प्रज्चलित करते है। लोग इस ज्योतिकलश को वफादारी का जोत भी मानते है। महाशिवरात्रि के दौरान यहाॅ विशेष पूजा अर्चना भी किया जाता है। आज यह मंदिर न सिर्फ क्षेत्र मे बल्कि दूरदराज क्षेत्रो मे भी प्रसिद्व है। कहते है मन में सच्ची आस्था व सच्ची श्रद्वा हो तो पत्थरो मे भी भगवान नजर आता है। शायद यह वजह है लोग पूरी श्रद्वा के साथ अपनी मनोकामना लेकर यहाॅ आते है और उनकी मनोकामना यहाॅ पूरी हो जाती है।

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