रायपुर। देश के प्रख्यात वैज्ञानिक और विज्ञान संचारक डॉ. डी.डी. ओझा ने कहा है कि प्राकृतिक जल इस पृथ्वी पर वह अनमोल उपहार है जिसके संचय, संरक्षण व संवर्धन हर व्यक्ति की प्रथम जिम्मेदारी है। शासकीय प्रतिष्ठानों ने जल संरक्षण की दिशा में पिछले दो दशकों से महत्वपूर्ण कार्य किया है किन्तु एक जन आंदोलन के तौर पर जल के संरक्षण व उसकी गुणवत्ता को बनाये रखने की जरूरत आज भी है। राजस्थान के जोधपुर शहर के रहने वाले डॉ. ओझा संक्षिप्त प्रवास पर राजधानी रायपुर पहुंचे थे, जहां हिन्दी दिवस पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में शामिल होकर राष्ट्रभाषा में लिखे अपनी पुस्तक ”जल शोधक – प्राचीन से अर्वाचीन” पर प्रकाश डाल रहे थे। इस परिचर्चा में पीएचई विभाग के पूर्व मुख्य अभियंता ए.के. साहू भी उनके साथ मौजूद थे, जो स्वयं भी राजधानी रायपुर, बस्तर, बिलासपुर, सरगुजा, दुर्ग संभाग के शहरी और दूरस्थ वनांचल क्षेत्रों में अपनी अनुकरणीय सेवाएं दी हैं।
राजधानी रायपुर के एक निजी होटल में आयोजित इस परिचर्चा में डॉ. ओझा ने जन जागरूकता के प्रभावी कार्यक्रम हेतु मातृभाषा में संवाद व आलेखों के प्रस्तुतिकरण पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के कई महत्वपूर्ण अनुसंधान अंग्रेजी व अन्य विदेशी भाषाओं में लिपिबद्ध हैं किंतु भाषाई विभिन्नता की वजह से गूढ़ संदेश आम किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों की पहुंच से आज भी दूर है। उन्होंने नीरी जैसे शासकीय उपक्रमों की मुक्त कंठ सराहना की है, जिसने प्राकृतिक व मानव निर्मित जलाशयों में जल गुणवत्ता को उच्च स्तर पर बनाये रखने हेतु जैविक पद्धतियों का सहारा लेकर इस दिशा में क्रांतिकारी बदलाव लाया है।
इस दौरान छत्तीसगढ़ सरकार में अपनी दीर्घ सेवा देने वाले पूर्व मुख्य अभियंता अजय कुमार साहू ने कहा कि छत्तीसगढ़ अपनी भौगोलिक विभिन्नता के साथ कई तरह के खनिज तत्व यहां की मिट्टी में शामिल हैं, जिसकी वजह से खनिज की प्रकृति अनुरूप जल की गुणवत्ता में बदलाव देखने में आता है। इस कारण से ही फ्लोराइड, आर्सेनिक, कैल्शियम, आयरन जैसे कई खनिज तत्व मनुष्य के शारीरिक अंगों पर अपना प्रतिकूल प्रभाव भी दिखाते हैं। इस संबंध में व्यापक जागरूकता कार्यक्रमों की जरूरत है। पानी की हर बूंद के संरक्षण की दिशा में समय रहते सोचना होगा एवं उपयोग किये गये पानी के पुनः उपयोग कर वाहनों को धोने, निर्माण कार्य व सिंचाई में किये जाने की प्रवृत्ति को प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है।परिचर्चा के सूत्रधार रायपुर स्मार्ट सिटी के पूर्व महाप्रबंधक ( जन संपर्क ) आशीष मिश्रा थे |
दोनो वक्ताओं ने अपनी नवीनतम पुस्तक ”जल शोधन – प्राचीन से अर्वाचीन” पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए इसमें दिये सुझावों को आम नागरिकों के साथ ही साथ अरबन प्लानर, वास्तुविदों, सिविल अभियंताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए भी महत्वपूर्ण संदर्भित मार्गदर्शिका के रूप में अत्यंत ही उपयोगी बताया। लगभग 130 पृष्ठ की इस पुस्तक का मूल्य 350 रूपये है एवं इसका प्रकाशन जोधपुर के साईन्टिफिक पब्लिशर्स ने किया है। डॉ. ओझा अपने इस प्रवास के दौरान छत्तीसगढ़ की विरासत, पौराणिक नगरी व प्राचीन राजधानी रतनपुर का भी भ्रमण कर इसके ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से अवगत होंगे।