ऐसे हुई थी मां चंद्रघंटा की उत्पत्ति

इस वर्ष चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ 9 अप्रैल को हो गया है। वही आज नवरात्री का तीसरा दिन है, आज चंद्रघंटा माँ की पूजा की जाती है. चंद्रघंटा माँ को दुर्गा माँ के नौ रूपों में से एक माना जाता है और इन नौ रूपों में वह तीसरा रूप होता है। चंद्रघंटा माँ की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। चंद्रघंटा माँ का नाम उनकी चांदी वर्ण वाली चंद्रवट से जुड़ा हुआ है, जो उनके मुख पर पाया जाता है। देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी माना जाता है. कहा जाता है मां चंद्रघंटा शेरनी की सवारी करती हैं। वहीँ माता का शरीर सोने के समान चमकता है तथा उनकी 10 भुजाएं है। उनकी चार भुजाओं में त्रिशूल, गदा, तलवार,और कमंडल है वहीं, पांचवा हाथ वर मुद्रा में है। वहीँ, मां की अन्य भुजाओं में कमल, तीर, धनुष और जप माला हैं और पांचवा हाथ अभय मुद्रा में है। आइये आज आपको बताते हैं मां चंद्रघंटा की कथा।

मां चंद्रघंटा की कथा- 
प्रचलित कथा के अनुसार, माता दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार तब लिया था जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था। उस समय महिषासुर का भयंकर युद्ध देवताओं से चल रहा था। महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था। वह स्वर्ग लोक पर राज करने की इच्छा पूरी करने के लिए यह युद्ध कर रहा था। जब देवताओं को उसकी इस इच्छा का पता चला तो वे परेशान हो गए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने पहुंचे।

ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने देवताओं की बात सुन क्रोध प्रकट किया तथा क्रोध आने पर उन तीनों के मुख से ऊर्जा निकली। उस ऊर्जा से एक देवी अवतरित हुईं। उस देवी को भगवान महादेव ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने अपना तेज और तलवार और सिंह प्रदान किया। फिर मां चंद्रघंटा ने महिषासुर तका वध कर देवताओं की रक्षा की।

शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *