भादो माह के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाये जाना वाला तीजा पर्व कल गुरुवार को है. 

तिल्दा नेवरा .  बुधवार को सुहागिन महिलाये ने करु भात खा कर . कल पति की दीर्घायु के लिए गुरुवार को दिन और रात निर्जला उपवास रखेंगी. शुक्रवार सुबह डुबकी लगाकर भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करेंगी और फिर फलाहार कर अपना व्रत पूरा करेंगी. कुंवारी कन्याएं भी मनचाहे वर पाने के लिए तीजा का व्रत रखती हैं।
छत्तीसगढ़ में तीजा का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. सुहागिन महिलायें इस व्रत को अपने मायके में मनाती हैं. यही कारण है कि मंगलवार और बुधवार को बसों और ट्रेनों में तीजाहारिन महिलाओं की बड़ी भीड़ रही. जेडी और अन्य लोकल ट्रेनों में भीड़ के कारण यात्रियों को बड़ी परेशानी हुई.
पार्वती जी ने किया था यह व्रत :
इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने किया था, जिससे उन्हें भगवान शिव पति के रूप में मिले थे। देवी पार्वती ने भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि पर हस्त नक्षत्र में शिवजी की अराधना की थी। इसीलिए इस तिथि को ये तीजा व्रत किया जाता है।
सहेली को अलि और आलि कहा जाता है। सहेलियों ने पार्वतीजी का हरण किया इसलिए इसको हरतालिका व्रत कहते हैं, तभी से इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए और कुंवारी कन्याएं मनचाहे वरदान के लिए इस तीज का व्रत करती आ रही हैं।
दक्ष कन्या सती, जब पिता के यज्ञ में योगा अग्नि में समा गई थीं। उसके बाद वो ही मैना और हिमवान की तपस्या के फलस्वरुप उनकी पुत्री के रूप में पार्वती नाम से फिर प्रकट हुईं और लगातार भगवान शिव के ही चिंतन में लगी रहीं। उन्होंने सालों तक निराहार रहकर यानी बिना कुछ खाए-पीए कठिन तप किया। तभी उन्हें पता चला कि उनका विवाह किसी ओर के साथ तय हो गया है। ये सुनकर वो दुखी हुईं, तब उन्होंने अपनी सखियों को शिव के प्रति अपना अनुराग बताया।
सखियां ये जानकर उन्हें घने जंगल में ले गईं वहां गुफा में पार्वती ने शिवलिंग बनाकर उपासना और अर्चना की उससे शिवजी प्रसन्न होकर देवी पार्वती के सामने प्रकट हुए और उन्हे पत्नी रूप में अपनाने का वचन देकर अदृश्य हो गए।

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