चांपा शहर में चल रही श्रीराम कथा का पांचवा दिन

मन बसियों सीताराम : गृहस्थों के आदर्श जोड़ी हैं सीताराम: वैष्णव महराज जी
पुष्प वाटिका प्रसंग, अहंकार रुपी धनुष भंग एवं सीताराम विवाहोत्सव का श्रद्धालुओं ने झूमकर आनंद लिया।
सक्ती- वृंदावन से प्रशिक्षित, गृहस्थ संत,रामकथा मर्मज्ञ पंड़ित प्रकाश कृष्ण वैष्णव महाराजजी ने पांचवें दिन व्यासपीठ से कहा कि विष्णु के अवतार और एक राजा होते हुए भी भगवान् श्रीराम ने एक साधारण मानव की भांति गृहस्थ जीवन जिया । सुख-दुख की पर्वाह ना करते हुए जीवनपर्यंत धर्म का पालन किया। श्रीराम की भांति सीता भी आदर्श की मूर्ति थी। अपना जीवन श्रीराम की आज्ञा और सेवा में बिताया । इस दौरान भगवान श्रीराम और माता सीता की जीवंत झांकी सजाई गई । राम के रुप में मनमोहक मुस्कान बेखेरनी वाली धीरज सोनी की सुपुत्री ईशीता और गौरवर्ण और सीता के समान सौम्यता एवं सरलता सुंदर मुखाकृति वाली कोमल सोनी की पुत्री पावनी आकर्षण का केंद्र रहीं । इसके अलावा राम, लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न की झांकियां बनाई गई। छोटे-छोटे बच्चें बिना किसी हिलें-डुले मूर्ति के समान खड़े और बैठे रहे। सजाई गई नयनाभिराम झांकियों को देखकर ऐसा लग रहा था कि कोई चार पत्थर की मूर्ति बनाई गई हैं।बारात के बाद कन्यादान के रस्म अदायगी का पुण्य लोगों ने लिया। पूर्व पार्षद शशिप्रभा सोनी, दीप्ति गौरव सराफ, विनिता सोनी, सत्यनारायण, राजकुमार और राजेश थवाणी ने सीताराम पूजन करके आशीर्वाद प्राप्त किया। मुख्य यजमान कोमल एवं उनकी अर्धांगिनी  ममता जी ने सीताराम की पूजा करके आरती उतारी,कथा व्यास आचार्य पंड़ित वैष्णव महराजजी ने समाजसेवी अमरनाथ एवं सुशीला देवी सोनी के सोनार पारा के निवास स्थान पर आयोजित कथा स्थल के प्रथम मंजिल में सच्चिदानंद आनंद की वर्षा पांच दिनों से हो रही हैं,साहित्यकार, पूर्व सहायक प्राध्यापक [ वाणिज्य ] शासकीय महाविद्यालय,चांपा के शशिभूषण सोनी ने बताया कि पंचम दिवस की कथा का सजीव दृश्य जैसे ही कथा स्थल पर सुंदर वेशभूषा धारण कर राम,लक्ष्मण,भरत और शत्रुघ्न जनपुर के धनुष यज्ञ में पहुंचते हैं, तब श्रद्धालु भक्त दर्शन करने के लिए उमड़ पड़ते हैं।

राम के वेशभूषा में ईशीता, लक्ष्मण- पूजा, भरत-शौर्य, शत्रुघ्न-चीकू और माता सीता-पावनी के रुप में मंत्रमुग्धकारी थी । इसी बीच स्थल पर महामुनि विश्वामित्र राजा जनक को आदेश देते हैं कि धनुष उठाने बारी-बारी से तैयारी की जाएं। रामचंद्रजी ने धनुष-बाण उठाया ही था कि धनुष टूट गया । उसके बाद जानकी बनी पावनी ने श्रीराम को वरमाला पहनाई। इस दौरान आचार्य श्री वैष्णव महराजजी के समधुर भजन-कीर्तन और ओजपूर्ण कथा वाचन को सुनकर श्रद्धालु भक्त मंत्रमुग्ध होते रहें। राजेश-गीता, धीरज-पिंकी, जय-मधु, राजकुमार मंजू, हरिहर-किरण, सत्यनारायण-शशि, अमरनाथ सुशीला देवी, रमेश-गीता, महावीर,संतोष, डॉक्टर शारदा प्रसाद, डॉ प्रीति सोनी, डॉ शांति,हरि सोनी शिवरीनारायण, कार्तिकेश्वर-दुर्गेशनंदिनी, शशिभूषण सोनी ने कन्यादान किया । कथा ज्ञान यज्ञ परिसर में उपस्थित भक्तजनों, वृद्धजनों, पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की मौजूदगी में बारात निकालकर वैदिक मंत्रों और विधि-विधान से विवाह संस्कार सम्पन्न कराया गया।धनुष-बाण टूटने के पश्चात् सीताराम विवाहोत्सव का ऐसा मनोरम दृश्य प्रवचन कर्ता प्रकाश कृष्ण महराजश्री के द्धारा प्रस्तुत किया गया,जिसे भक्तवृंद सुनकर आह्लादित होते रहे।सीता स्वयंवर की कथाएक बार महर्षि विश्वामित्र राजा दशरथ के आमंत्रण पर पहुंचे। महर्षि का आदर-सत्कार किया।पांव धुलवाए,आसन पर बिठाया तथा उनके पधारने का प्रयोजन पूछा। विश्वामित्र बोले – “राजन! आजकल कुछ राक्षसों ने जंगल में उत्पात मचा रखा हैं। महर्षि गण उनके अत्याचारों से तंग त्राहि त्राहि कर रहे हैं। अतः ऋषियों की रक्षा के लिए श्रीराम एवं लक्ष्मण को मेरे संग वन में भेज दे।” दशरथ ने सहर्ष इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया तथा राम लक्ष्मण को निर्देश देकर महर्षि विश्वामित्र के साथ रवाना कर दिया।वन में प्रभु श्रीराम ने ताड़का नामक राक्षस का वध किया तथा अत्याचारी मारिच राक्षस को पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया। राक्षसों के भय से वन सुरक्षित हो गया,तब एक दिन विश्वामित्र राम-लक्ष्मण को लेकर मिथिला गए। वहां विदेह के राजा जनक ने अपनी सौभाग्य वती पुत्री सीता के विवाह के लिए स्वयंबर का आयोजन किया हुआ था,शर्त रखी गई थी कि भगवान शिव के द्धारा प्रदत्त प्रत्यंचा चढ़ाएगा उसी के गले में वरमाला डालेगी।स्वयंवर में बहुत से राजा-महाराजा उपस्थित थे, परंतु धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर धनुष-बाण को उठा तक नहीं सके। विश्वामित्र की आज्ञा से रामचंद्र जी ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई,धनुष की घोर ध्वनि करते हुए बीच से टूट गया। धनुष के टूटने की आवाज से परशुराम आ पहुंचे बीच-बचाव किया गया। इसके बाद सीता ने श्रीरामचंद्र जी के गले में वरमाला डाली। इस प्रकार सीताराम विवाहोत्सव संपन्न हुआ। रामकथा परिसर में भी सीताराम विवाह की सुंदर गीत-संगीत के बीच गाई गईं ।रामकथा की आरती के बाद चूरमा और बूंदी के लड्डू का प्रसाद वितरण किया गया।

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