प्रेमिका ने फंसा दी थी, प्रेमी को हाईकोर्ट ने किया बरी

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने नाबालिग की लज्जाभंग के प्रयास से जुड़े एक प्रकरण में आरोपी को दोषमुक्त करते हुए कहा है कि जब पीड़िता और अपीलकर्ता के बीच प्रेम संबंध थे, तो घटना को आपराधिक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। न्यायालय ने पाया कि निचली अदालत का निर्णय परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के पर्याप्त परीक्षण के बिना दिया गया था।

मामला राजनांदगांव जिले के खैरागढ़ थाना क्षेत्र का है। वर्ष 2020 में एक महिला ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसकी 16 वर्षीय बेटी के साथ गांव के ही एक युवक ने रात में घर में घुसकर छेड़छाड़ की कोशिश की। शिकायत के आधार पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ धारा 354, 354(ए), 456 आईपीसी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 7/8 के तहत मामला दर्ज किया था।

सत्र न्यायालय ने सुनवाई के बाद आरोपी को पॉक्सो अधिनियम की धारा 7/8 में 5 वर्ष सश्रम कारावास और 1000 रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील दायर की, जिस पर जस्टिस नरेश कुमार चंद्रवंशी की बेंच ने सुनवाई की।हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़िता और आरोपी के बीच पूर्व से प्रेम संबंध थे, और आरोपी द्वारा दिया गया मोबाइल व सिम कार्ड पीड़िता के परिजनों ने वापस कर दिया था। परिजनों ने आरोपी व उसके परिवार को इस संबंध में समझाइश भी दी थी। साथ ही, पीड़िता की मां के बयान में विरोधाभास पाया गया। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि पीड़िता की उम्र के संबंध में ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं किए गए, क्योंकि केवल 10वीं की अंकसूची जब्त की गई थी, जो न्यायालय में पेश नहीं की गई। इन तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने माना कि मामला प्रेम संबंध का था, न कि आपराधिक कृत्य का। न्यायालय ने निचली अदालत का निर्णय रद्द करते हुए आरोपी को बरी कर दिया।

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