तेन्दूपत्ता नीति फेल ? भुगतान 1100 करोड़ से घटकर 633 करोड़ पर सिमटा

2017 में कुल 17 लाख मानक बोरे का सग्रहण, कुल 1100 करोड़ का भुगतान

2021 में 13 लाख मानक बोरा और 700 करोड़ का भुगतान, 2022 के मौजूदा आंकड़ों के अनुसार 15.83 लाख स्टेंडर्ड बोरा, 633 करोड़ का भुगतान

 रायपुर,तेन्दूपत्ता छत्तीसगढ़ में आदिवासियों- वनवासियों के आय का प्रमुख जरिया है। तेन्दूपत्ता की आय से यहां के अधिकतर आदिवासी-वनवासी अपने जीवन का गुजर-बसर करते हैं। लेकिन यदि आंकडों की बात करें तो तेन्दूपत्ता के संग्रहण व भुगतान में बेहतासा कमी आई है। जो चिंता का विषय है। छत्तीसगढ़ में न ही आदिवासियों की संख्या में कोई कमी हुई न ही जंगलों में, लेकिन वर्तमान आंकड़ें घटकर सीधा आधा हो गए है। निश्चित ही इससे वनवासियों की आय में कमी आई है। लघुवनोपज संघ ने अन्य क्षेत्र में तो कार्य किया लेकिन तेन्दूपत्ता जो सीधा आदिवासियों की आय से जुड़ा मामला है उसके संग्रहण व भुगतान में कुछ खास नहीं कर सका। आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2017 में 17 लाख मानक बोरे का संग्रहण और 1100 करोड़ का कुल भुगतान हुआ। वहीं 2021 में यह आंकड़ा घटकर 13 लाख मानक बोरा और 700 करोड़ के भुगतान पर सिमट गया। 2022 में तेन्दूपत्ता के संग्रहण और भुगतान का मौजूदा आंकड़ा 15.83 लाख स्टेण्डर्ड बोरा तथा 633 करोड़ का भुगतान है। आंकड़ों की बात करें तो इसमें सीधा 50 फीसदी कमी हुई है। यानि की तकरीबन 500 करोड़ रुपये के भुगतान का अंतर बताया जा रहा है।

संजय शुक्ला को नहीं मिला फ्री हैण्ड
पीसीसीएफ संजय शुक्ला एक रिजल्ट ओरिएन्टेड अफ सर के रुप में जाने जाते हैं। लेकिन बताते है कि तेन्दूपत्ता वाले क्षेत्रों में ठेकेदारों के रुचि वाले अफसरों को पदस्थ किया गया। एक अफ सर तो पिछले तीन वर्षों से बस्तर में पदस्थ है। जाहिर सी बात है इन परिस्थितियों में शुक्ला भी तेन्दुपत्ता के क्षेत्र में कोई खास काम नहीं कर सके। जबकि अन्य लघुवनोपज में शुक्ला ने अभूतपूर्व काम किए। कोदो, कुटकी, रागी, मिलेट्स आदि में छत्तीसगढ़ ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। जिसमें संजय शुक्ला ने महती भूमिका निभाई है।

आवास के बाद, अब तेन्दूपत्ता को लेकर भाजपा करेगी प्रदेशव्यापी आंदोलन
भारतीय जनता पार्टी गरीबों के आवास के बाद अब वनवासियों-आदिवासियों को एकजुट कर प्रदेशव्यापी आंदोलन की तैयारी में है। इसके पहले भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में तेन्दूत्ता की खरीदी और भुगतान को लेकर बस्तर अंचल में लगातार आंदोलन कर चुके है। भाजपा के पदाधिकारी शहरी क्षेत्र के साथ-साथ सरगुजा तथा बस्तर अंचल में खास तौर पर सरकार को घेरने की रणनीति पर काम कर रहे है। तेन्दूपत्ता के संग्रहण और भुगतान को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने हाल ही में विधानसभा सत्र के दौरान ध्यानाकर्षण लाया था। पूर्व सीएम ने विधानसभा परिसर में पत्रकारों से चर्चा कर तेन्दूपत्ता की खरीदी के आंकड़े भी जारी किए थे।

ठेकेदारों के शोषण से आदिवासियों को मुक्त करने शासन ने खरीदी का कार्य किया था प्रारम्भ
छत्तीसगढ़ के भोले-भाले आदिवासियों को ठेकेदारों के शोषण से मुक्तकरने के लिए सरकार ने तेन्दुपत्ता की डायरेक्ट खरीदी नीति शुरु की थी। बस्तर अंचल में यह आरोप था कि ठेकेदार आविसाियों का शोषण करते हैं। औने-पौने दाम में उनकी उपज खरीद लेते हैं। उनको संरक्षण मिल सके इसलिए सरकार अब डायरेक्ट खरीदी करती है। जिसमें लघुवनोपज संघ महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन घटते आंकड़े आशंका पैदा कर रहे हैं? 2017 के बाद से संग्रहण और भुगतान के आंकड़ों में 50 फीसदी की कमी स्पष्ट दिखाई दे रही है।

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