रायपुर। लगातार संघर्ष व्यक्ति को थका देता है, लेकिन राजधानी के धरनास्थल पर 119 दिनों से बैठीं दिवंगत शिक्षाकर्मियों की पत्नियों का साहस नित्य बढ़ते जा रहा है। इनके संघर्ष और साहस की झलक देखिए। बीते वर्ष के 20 अक्टूबर से लगभग 35, 40 की संख्या में ये आंदोलन पर बैठी हैं। कभी नारे तो कभी मूक प्रदर्शन के माध्यम से अपनी बातें कह रहीं हैं। थक जाती हैं तब वहीं सो जाती हैं। लंबे संघर्ष के लिए मन को दृढ़ करने के लिए रात्रि में देवी के भजनों का सामूहिक गान भी करती हैं। लंबे आंदोलन में ऐसा संकट आया कि भोजन तक के लिए पैसे नहीं रहे तब हार मानकर लौटने की अपेक्षा इन्होंने दिन में धरनास्थल पर ही दान पेटी लगा दिया। यहां दान में मिले पैसों से रात्रि के भोजन का प्रबंध किया जाता है।
वास्तव में इन्होंने इस आंदोलन को स्वयं के लिए युद्ध बना लिया है। अनुकंपा नियुक्ति शिक्षाकर्मी कल्याण संघ की प्रदेशाध्यक्ष माधुरी मृगे कहती हैं कि इस युद्ध में हम सभी जीत के ही आकांक्षी हैं। बलिदान देने के लिए हम सभी तैयार हैं। संघर्ष तब तक करेंगे, जब तक जीत न मिल जाए। वर्ष 2017 यानी संविलियन के पहले जिन शिक्षाकर्मियों की मृत्यु हो चुकी थी, उनकी विधवाएं यहां अनिश्चितकालीन आंदोलन पर हैं। शासन की ओर से इनकी मांगों की सुध नहीं ली गई। प्रदेश की 934 महिलाओें को अनुकंपा नियुक्ति देनी है।
महिलाओं की पीड़ा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पति की मृत्यु के बाद कई महिलाओं को घर भी नसीब नहीं हो रहा है। आंदोलनस्थल पर टेंट के नीचे रात को सोने के पहले महिलाएं रघुपति राघव राजाराम का भजन करके एक-दूसरे का हौसला बढ़ाती हैं। कभी जसगीत तो कभी छत्तीसगढ़ी देवी गीतों पर यह महिलाएं गाना गाकर अपने आपको मजबूत करती है।