कर्म सुधारने के लिए विचार और संगत की शुद्धि आवश्यक है, आचार्य नंदकुमार शर्मा

तिल्दा – समीपस्थ स्थान बिरगांव मे पाठक परिवार द्वारा आयोजित भागवत कथा के तीसरे दिन बुधवार को भागवत भूषण आचार्य पंडित नंदकुमार जी शर्मा, निनवा वाले ने कहा कि मनुष्य अपने कर्म व विचारों से ही अच्छा और बुरा होता है। कर्म से पहले विचार आता है और विचार पर संगत का असर होता है। मनुष्य अपने सुख और दुख का कारण स्वयं ही होता है। कर्म को सुधारने के लिए विचार की शुद्धी और संगत की शुद्धी आवश्यक है। अच्छा बनने के लिए संत या ग्रंथ के सानिध्य में रहे। मनुष्य जीवन में कर्म करना पड़ता है, कोई भी कर्म के बिना नहीं रह सकता है। अच्छा कर्म करना चाहिए। अनुभव तभी सिद्ध होता है जब कोई उन्हें अनुग्रहित कर सकता है। उन्होने बताया कि जीवन मे शांति और आनंद प्राप्त करने के लिए सत्संग अति आवश्यक है! भगवत भजन का यह प्रभाव होता है कि दुख भी हमें दुख नहीं लगता है। संसार में सुख-दुख का चक्र चलता ही रहता है। अज्ञानी दुख को दुखी होकर भोगता है और ज्ञानी तटस्थ होकर भोगता है। उन्होंने बताया कि सतयुग का धर्म ध्यान था, त्रेतायुग का धर्म यज्ञ, द्वापर युग का धर्म पूजा और कलियुग का धर्म प्रमु का नाम स्मरण करना ही है। इस कलयुग में भगवान का नाम लेना ही भक्ति है। भगवान की कथा मानव जीवन बदलाव लाती है. कथा सुनने से आनंद, शांति और वैराग्य की प्राप्ति होती है. जिस प्रकार शरीर की शुद्धि के लिए प्रतिदिन स्नान आवश्यक है उसी प्रकार मन और विचार की शुद्धि के लिए सत्संग की महती आवश्यक है! उन्होने बताया कि भगवान नारायण और लक्ष्मी संसार वासियो को यज्ञ की महिमा बताने के लिए राजा बेन की भुजा से राजा पृथु और अर्ची देवी के रूप मे अवतार लेकर आते है उन्होने कहा यज्ञ मानव जीवन को सफल बनाने के लिए एक आधारशिला है। यज्ञ से ब्रह्म की प्राप्ति होती है।यज्ञ भगवान विष्णु का ही अपना स्वरूप है।.यज्ञ भारतीय संस्कृति का प्राण तथा वैदिक धर्म का सार है। यज्ञ के द्वारा मानव जीवन के लिए प्रेरणा दी गई है। यज्ञ ही संसार में श्रेष्ठतम कर्म है और संसार का श्रेष्ठतम कर्म यज्ञ ही है। उन्होंने कहा कि यज्ञ को केवल भौतिक कर्मकांड न समझा जाएं अपितु इसको आध्यात्मिक रूप से समझकर इसका आध्यात्मिक अनुष्ठान आवश्यक है।यह इंसान की पाप से रक्षा करता है, प्रभु के सामीप्य की अनुभूति कराता है। मनुष्य में दूसरे की पीड़ा को समझने की समझ आ जाए, अच्छे-बुरे का फर्क महसूस होने लगे तो समझें यज्ञ सफल है। आगे उन्होने कहा इस संसार सभी पदार्थ विद्यमान है लेकिन जो इंसान कर्महीन हो आलसी हो ऐसे व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नहीं होता है. कर्म करने से ही जीवन मे सफलता और लक्ष्य की प्राप्ति होती है.

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