नेताओं ने भड़काया, किसानों को ग़लतफ़हमी.., कृषि कानून पर सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट

नई दिल्ली: कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा के बाद केंद्र सरकार को कृषि कानूनों की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर देना चाहिए. इस मांग के साथ सर्वोच्च न्यायालय को लिखे गए अपने पत्र में कृषि कानूनों पर किसानों के साथ चर्चा करने वाली मध्यस्थ कमेटी के प्रमुख और किसान नेता अनिल जयसिंग घनवट ने कृषि कानूनों पर कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग फिर से दोहराई है. घनवट इसके पहले भी इसी मांग को लेकर प्रधान न्यायाधीश (CJI) एनवी रमन्ना को भी चिठ्टी लिख चुके हैं, मगर अब उन्होंने चिट्ठी तब लिखी है, जब सरकार कृषि कानून रद्द कर चुकी है. लिहाजा अब तो रिपोर्ट सार्वजनिक की ही जा सकती है. इसके साथ ही आम लोगों को भी पता चले कि कमेटी ने इस विवाद के सर्वमान्य निपटारे के लिए क्या उपाय सुझाया था.
पत्र में सर्वोच्च न्यायालय से कृषि कानून समिति की रिपोर्ट जारी करने और सरकार को एक सशक्त नीति प्रक्रिया लागू करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है. पत्र में घनवट ने कहा है कि मुझे सुप्रीम कोर्ट द्वारा कृषि कानूनों से जुड़ी किसानों की शिकायतें सुनने और सरकार के विचारों को सुनने और सिफारिशें करने के लिए एक समिति में काम करने का अवसर मिला. उन्होंने कहा कि 19 मार्च 2021 को समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की. 19 नवंबर 2021 को पीएम मोदी ने कृषि कानूनों को निरस्त करने का ऐलान कर दिया, मगर यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि विशिष्ट कानून अब मौजूद नहीं हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि मैं कोर्ट के ध्यान में लाना चाहता हूं कि कई दशकों से भारत के कृषक अपने आप में उद्यमी के रूप में कई परेशानियों का सामना कर रहे हैं. उनके उत्पादन और विपणन की कोशिशें प्रभावित हो रही हैं. विनियमन का मकसद एक उद्यमी की कार्रवाई से होने वाले किसी भी नुकसान को घटाना है, किन्तु किसानों के मामले में विनियमन ही किसानों और पर्यावरण दोनों के लिए नुकसान की वजह रहा है.
घनवट ने कहा कि देश के बहुत सारे कृषक, सुधारों पर फोकस करने के लिए, खास तौर पर बाजार की स्वतंत्रता और प्रौद्योगिकी स्वतंत्रता पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने के लिए बेताब हैं. इन कानूनों को हमारे किसान आंदोलन ने सैद्धांतिक रूप से मंजूर कर लिया था, किन्तु पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया था. सरकार की नीति प्रक्रिया परामर्शी नहीं है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट सरकार को कार्यान्वित करने का आदेश देने पर विचार करे. शेतकारी संगठन के दिग्गज नेता और स्वतंत्र भारत पार्टी के प्रमुख अनिल घनवत ने सर्वोच्च न्यायालय के CJI को लिखे पत्र में कहा कि उन्होंने कृषि कानून समिति की रिपोर्ट जारी करने का आग्रह किया था. यह रिपोर्ट एक शैक्षिक भूमिका निभा सकती है और सुधारों के संबंध में कई किसानों की गलतफहमी दूर कर सकती है. उन्होंने कहा कि इन कानूनों को संभावित रूप से कार्य करने के लिए बेहतर बनाया जा सकता था और वक़्त के साथ इनमें सुधार भी किया जा सकता था.
घनवट ने कहा कि यदि सरकार ने किसानों से विचार-विमर्श किया होता और कानून बनाने से पहले उन्हें व्यवस्थित रूप से शिक्षित किया होता, तो नतीजा बहुत अलग होता. अफसोस की बात है कि वर्तमान दृष्टिकोण ने कुछ नेताओं को किसानों को भ्रमित किया है. नेता केवल कृषकों को ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर काफी नुकसान कर रहे हैं. कई दशकों से भारत के कृषक, अपने आप में उद्यमी के रूप में, उत्पादन और विपणन के लिए अपनी नियामक जरूरतों पर समझ या ध्यान की कमी से ग्रसित हैं, उन पर लगाए गए विनियमन ने उनके उत्पादन और विपणन कोशिशों को बाधित कर दिया है.
उन्होंने पत्र में कहा कि कानूनों के रद्द होने से बड़ी तादाद में किसान अब अपनी जरूरतों पर ध्यान न देने से और भी निराश हैं. नए कृषि कानून बनाने के लिए एक सशक्त नीति प्रक्रिया में एक समिति की स्थापना शामिल होगी. उन्होंने कहा कि समिति एक श्वेत पत्र बनाएगी, जो लागतों पर आधारित होगा. जिन संगठनों ने फार्म लॉ कमेटी को सबमिशन दर्ज कराया है, उन्होंने मुझसे रिपोर्ट की सामग्री के संबंध में सवाल किए हैं. अपने मीडिया इंटरेक्शन के दौरान भी मैंने विभिन्न नीतिगत पहलुओं पर मौखिक विवरण दिया किया है, किन्तु यह अधिक उपयुक्त होगा कि सरकार कृषि नीति संबंधी बहसों की रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप से मुहैया कराए. संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में कृषि कानूनों को रद्द करने के सरकार के फैसले के बाद समिति की रिपोर्ट अब उन कानूनों के बारे में प्रासंगिक नहीं है, किन्तु किसानों के मुद्दों पर रिपोर्ट में ऐसे सुझाव हैं, जो बड़े जनहित के हैं.

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