अपनी कथा में आचार्य श्री राजेंद्र महाराज राष्ट्रीयता के विषयों पर भी भक्तों को दे रहे विस्तार पूर्वक मार्गदर्शन, आचार्य जी ने बेटी- बेटे में अंतर को भी समाप्त करने भक्तों से किया आग्रह
आचार्य श्री राजेंद्र महाराज करा रहे हैं अपनी अमृतमय वाणी से श्रीमद् भागवत कथा का रसपान
शक्ति- शक्ति शहर के प्रतिष्ठित खरकिया परिवार सेठ कनीराम मांगेराम के निवास पर 30 अगस्त को श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दौरान काफी संख्या में भक्तजनों ने उपस्थित होकर कथा श्रवण किया, तथा इस अवसर पर आयोजक खरकिया परिवार के सदस्य भी मौजूद रहे तो वही 28 अगस्त को सेठ कनीराम मांगेराम खरकिया परिवार द्वारा गया भागवत का शुभारंभ हुआ था तथा तीसरे दिन भी परिवार जनों में भी श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह को लेकर उत्साह देखा गया वहीं इस दौरान आचार्य जी ने कहा कि आशा ही दुख और निराशा का कारण बन जाता है l दक्ष पुत्री सती के मन में बड़ी आशा थी कि अपने मायके अर्थात पिता के घर में मेरा बहुत सम्मान होगा , किंतु दक्ष के मन में भगवान शिव के लिए विरोधाभास होने के कारण सती का भी सम्मान नहीं हो सका जिसके कारण सती अग्नि कुंड में कूद गई । और अपने प्राण त्याग ने पड़े । नीति की बात भी यही है कि कहीं जाने पर यदि मन में हर्ष और सम्मान के भाव नहीं दिखते तो ऐसे स्थान पर कभी भी नहीं जाना चाहिए भले ही वहां स्वर्ण की वर्षा क्यों ना होती हो, यह उद्गार शक्ति के हृदय स्थल हटरी चौक में फ़र्म कनीराम मांगेराम अग्रवाल परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस व्यासपीठ से आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने दक्ष यज्ञ प्रसंग का वर्णन करते हुए प्रकट किया
आचार्य राजेन्द्र ने श्रोताओं को बताया कि संसार मे किसी भी यज्ञ का उद्देश्य विश्व कल्याण ही होता है भले ही संकल्प किसी एक व्यक्ति का ही क्यों ना हो । यज्ञ और सनातन धर्म ही भगवान विष्णु का बल है, जिसे शत्रु भाव के कारण हिरण्यकश्यप नष्ट करना चाहता था , किंतु अपने अहंकार के कारण ही भगवान ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था । यज्ञ में कलश यात्रा करते हुए कलर्स शो को अपने सिर पर धारण करना सनातन धर्म को ही धारण करना है और ध्वज लेकर जय जयकार करना धर्म का जय करना है , धर्म हमेशा हमारी रक्षा करता है इसलिए हमारे गृहस्थ जीवन के सभी निर्णय भी धर्म पर ही आधारित होने चाहिए
आचार्य द्वारा कपिल अवतार की कथा का विस्तार से वर्णन करते हुए बताया गया कि भगवान कपिल देव ने अपनी माता देवहूति को तत्व ज्ञान का उपदेश एवं सत्संग की महिमा को बताया और कहा कि संसार में मैं और मेरा यही दोनों मुंह के कारण हैं जब तक मनुष्य का मन इस संसार में फंसा हुआ रहता है तब तक वह संसार से बंधते जाता है और जिस दिन यही मन भगवान में अनुरक्त होता है तो उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं , सबका कारण हमारा मन ही है इसलिए आस्थावान बने रहकर मन को भगवान पर ही लगाएं । भागवत में केवल भगवान की ही नहीं बल्कि उनके प्रिय भक्तों की भी कथा है जिसे श्रवण कर हम अपने जीवन की व्यथा दूर अवश्य ही नहीं । तृतीय दिवस की कथा का आनंद नगर एवं आसपास के ग्रामों के अनेक श्रोताओं को प्राप्त हुआ । प्रतिदिन मधुर संगीत के साथ संकीर्तन एवं दिव्य झांकियों का दर्शन लाभ सभी श्रोताओं को प्राप्त हो रहा है ।