शक्ति जिले के मां अष्टभुजी देवी अड़भार, माँ महामाई देवी शक्ति, मां भीमेश्वरी देवी बेरी वाला मंदिर शक्ति सहित देवी मंदिरों में भी होगी नवरात्र पर विशेष पूजा- अर्चना

चंद्रहासिनी मंदिर चन्द्रपुर में धूमधाम से मनाया जायेगा चैत्र नवरात्र,नवरात्र के अवसर पर चंद्रहासिनी मंदिर, नाथलदाई, विश्वेश्वरि की एक साथ ही की जाती है पूजा, शक्ति जिले के महा नदी के तट पर स्थित है चंद्रपुर शहर माता रानी के दर्शन मात्र से ही होता है संकटों का निवारण,एवं प्राप्ति होती है वैभव की

नवरात्र के अवसर पर चंद्रहासिनी मंदिर में लाखो की संख्या में आते है श्रद्धालु

माँ नाथलदाई मंदिर में भी लगी रहती है भक्तो की कतार,चंद्रहासिनी मंदिर में इस अवसर पर दुर्गा सप्तसी के पाठ संग होते है, विविध धार्मिक आयोजन

चैत्र नवरात्र,में चंद्रहासिनी मंदिर में हजारों की संख्या में लोगो की आस्था और मन्नत के प्रतीक स्वरूप प्रज्वलित होते है तेल, ज्योति कलश

दर्शनार्थियों /पर्यटन की दृष्टि से आमजन के मनोरंजन हेतु मंदिर परिसर में गुफा, चलित मूर्ति, भूल भुलैया, हॉरर हाउस, तारामंडल आदि का निर्माण किया गया है

सक्ति- 22 मार्च से प्रारंभ हो रहे नवरात्रि एवं हिंदू नववर्ष को लेकर पूरे छत्तीसगढ़ में तैयारियां जोरों से चल रही है, राज्य के देवी शक्तिपीठों में जहां नवरात्रि पर विशेष पूजा- अर्चना एवं मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित होंगे तो वही देवी मंदिरों को सजाया जा रहा है, शक्ति जिले के भी महानदी के तट पर स्थित मां चंद्रहासिनी देवी की नगरी चंद्रपुर, अड़भार की मां अष्टभुजी देवी, शक्ति शहर की मां महामाई दाई, मां भीमेश्वरी देवी बेरी वाला मंदिर,डोंगरगढ़ की मां बमलेश्वरी देवी मंदिर, रतनपुर स्थित मां महामाया देवी मंदिर सहित मंदिरों में नवरात्र की तैयारियां जोरों से चल रही है

चंद्रपुर में स्थित चंद्रहासिनी देवी मंदिर में माँ चन्द्रहासिनी बाराही रूप में पूजी जाती है। इस संदर्भ में कथा है कि महाराज दक्ष के यज्ञ में भगवान शंकर के अपमान से कुपित देवी सती ने यज्ञ कुंड में कूद कर अपनी जान दे दीजिसके पश्चात उस बिछोह से व्यथित भगवान शंकर देवी सती के निष्प्राण शरीर को कंधे पे ले भटकने लगे जिसे भगवान विष्णु ने चक्र से विच्छेद कर दिया । जिस क्रम में देवी सती के शरीर का जो अंग जिस जगह गिरा वहा शक्ति पीठ की स्थापना हुई। मान्यता है कि देवी सती का अधोदन्त (दाढ़) चंद्रपुर में गिरा जिस से यह स्थान भी शक्ति पीठ के रूप में मान्य है। “दसनामी साधु परम्परा के श्री करपात्री जी महाराज ने भी इस बात की पुष्टि और इस प्रसंग का वर्णनन कल्याण पत्रिका में अपने एक आलेख में किया है। अपने चन्द्रपुर भ्रमण के दौरान भी इस विषय की जानकारी उन्होंने भक्त जनो को अपने सम्बोधन के द्वारा दी,चंद्रपुर स्थिति देवी मंदिर में प्रत्येक वर्ष देवी के पावन चैत्र नवरात्र के समीप आते ही भक्तो का तांता मंदिर दर्शन को लगने लगता है। लोगों की आवाजाही और भीड़ को मंदिर के मुख्य द्वार, नगर की गली, सड़को पर देखा जाने लगता है। ऐसे में आने वाले दर्शनार्थियों को ध्यान में रख मंदिर की साफ़ सफाई व दर्शनार्थियों की सुविधा की दृष्टि से मंदिर परिसर के साथ मंदिर के आसपास में पेयजल आदि की व्यवस्था दुरुस्त की जाती है। वही स्थानीय प्रशासन – पुलिस, राजस्व, नगर निकाय, बिजली, स्वास्थ्य विभाग के साथ तालमेल कर दर्शनार्थियों की सुरक्षा- सुविधा को भी उचित व्यवस्था करते है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र पर आस्था के जोत रूपी लगभग 14000 से अधिक तेल ज्योत कलश जलने की संभावना है।

इस वर्ष चैत्र नवरात्र 22 मार्च को नवरात्र पर्व के प्रथम दिवस प्रातः भव्य कलश यात्रा ढोल बाजे के के साथ निकाल कर विधिवत पुजा अर्चना कर नवरात्र पे देवी आराधना आरम्भ की जायेगी। जैसा की नवरात्र पर्व के पहले दिन से ही भारी संख्या में दर्शनार्थी पहुचने लगते है जो नवरात्र के अंतिम दिनों में प्रती दिवस लाखो की संख्या में रहती है। दिनों दिन दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ती रहतीं है, यह संख्या शासकीय छुट्टी होने वाले दिवस में दर्शनार्थियों की संख्या में और भी बढ़ोतरी होने की संभावना है। यहां नवरात्रि के साथ वर्ष भर सुदूर क्षेत्रो से अधिकारियो, नेताओं समेत आमजन का दर्शन लाभ को आना होता है। साथ ही हजारों की संख्या में पदयात्री समिति के लोग डभरा, सक्ती, रायगढ़ से यहा पहुंचते है। लोग अपनी मनोकामना हेतु जमीन पर लोटते (कर नापते) दर्शन को मंदिर पहुंचते है,दर्शनार्थियों की सुविधा और सुरक्षा के साथ उनकी धार्मिक आस्था और रूचि को ध्यान में रख समय समय पर मंदिर व्यवस्था में आवश्यक बदलाव व् सुविधाओं को लागू किया जाता है। विगत कई वर्षो से मंदिर परिसर में प्रसाद रूपी साफ सुथरा भोजन व लड्डू आदि प्रसाद भी निश्चित सहयोग शुल्क पर उपलब्ध रहता है। वही मंदिर परिसर में साफ़ सफाई संग पेयजल व्यवस्था भी बेहतर करने हर संभव प्रयास हो रहे है । मंदिर में जोत जलवाने वाले श्रद्धालुओ को नवरात्रि पश्चात विशेष प्रसाद भी दिया जाता है। मंदिर न्यास ने आमजन कि सुरक्षा के उद्देश्य से मंदिर परिसर व आसपास को सीसीटीवी कैमरे (तीसरी आंख) की निगरानी में रखा है, ताकि अप्रिय घटना की स्थिति में नियंत्रण व निगरानी की जा सके। वही मेला व्यवस्था में तैनात पुलिस बल को आवश्यकतानुसार छोटी छोटी टुकड़ियों में बांट कर मंदिर आसपास व नगर में तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था अपनायी जाती है

मेला व्यवस्था के संबंध में जानकारी देते हुए मंदिर न्यास के न्यासी अजीत पाण्डेय ने बताया कि मेले के दौरान दर्शनार्थियों के लिए हर सम्भव प्रयास किये जाते है। मंदिर परिसर में सुरक्षा और सुविधा का विशेष ख्याल रखा जाता है, मंदिर न्यास के कर्मचारी और न्यासी पूरा प्रयास करते है कि माँ के भक्तों को दर्शन में किसी तरह की परेशानी न हो और व्यवस्थित, सुरक्षित वातावरण में उन्हें माता के दर्शन हो सके। मंदिर परिसर में ही दर्शनार्थियों के समय व्यतीत करने के लिये मनोहारी कई साधन विकसित किये गये है। इस दौरान पुलिस प्रशासन, राजस्व विभाग, बिजली विभाग, स्वास्थ्य संग नगर निकाय के अधिकारी कर्मचारी का विशेष तौर पे सहयोग मिलता है

राजधानी रायपुर से सड़क मार्ग द्वारा लगभग 225 किलोमीटर, बिलासपुर से 150 किलोमीटर व जिला मुख्यालय- जांजगीर से 110 किलोमीटर, रायगढ़ से 32 किलोमीटर, सारंगढ़ से 29 किलोमीटर व बरगढ़ ओड़िसा से 90 किलोमीटर का सफर कर चन्द्रपुर पहुँचा जा सकता है,चंद्रहासिनी मंदिर धर्मशाला, अग्रसेन भवन, साईं धर्मशाला, देवांगन धर्मशाला कुछ धर्मशाला में वातानुकूलित कमरे भी उपलब्ध रहते है,चंद्रहासिनी मंदिर में चलित मूर्ति गुफा, गुफा में विभिन्न धार्मिक स्थलों व कथाओ की झाकिया, निर्मित है वही भूल भुलैया, हॉरर हाउस, तारामंडल आदि संचालित किए जा रहे है। साथ ही उन्नत तकनीक के कई निर्माण योजना अंतिम चरण में है। मंदिर परिसर स्थित निरक्षण टावर से महानदी संग नाथलदाई टापू/मंदिर पहाड़ी, कलमा बैराज, मांड- महानदी संगम का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। महानदी के मध्य नाथलदाई टापू से माँ चंद्रहासिनी मंदिर की भव्यता रात में मोहक होती है। वहा घने वृक्षो के संग महानदी के तट पे स्न्नान का आनंद लिया जा सकता है साथ ही स्थानीय मछुवारों संग नौका विहार का भी आनंद ले सकते है, चंद्रहासिनी मंदिर, सैकड़ो वर्षो प्राचीन गोपाल जी मंदिर ( इस मंदिर का पुनर्निर्माण बंसी पहाड़पुर के पत्थरों से लगभग 3.5 करोड़ की लागत से किया गया है, जो अत्यंत भव्य व आकर्षक है ) इसकी मनमोहकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस मंदिर परिसर में सैल्फी लेते दर्शनार्थी अक्सर आपको दिखेंगे। गुफा मंदिर (जगन्नाथ मंदिर), राम मंदिर, साईं मंदिर, विश्वेस्वरी, नाथलदाई मंदिर (महानदी के बीच टापू में स्थित है, पूल के मध्य से नीचे मंदिर जाने का रास्ता है)। 5 किलोमीटर दूर मांड व महानदी के संगम ग्राम महादेवपाली में सैकड़ो वर्षो प्राचीन शिव मंदिर, वही 1 किलोमीटर आगे महानदी पे बना कलमा बैराज (बांध) , 20 किलोमीटर दूर पुजेरिपाली में 7वी. शताब्दी में स्थापित प्राचीन शिव मंदिर, सारंगढ़ से लगभग 18 किलोमीटर आगे प्रसिद्ध गोमर्डा अभयारण्य का आनंद ले सकते है|

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