लोहड़ी पर की जाती है भगवान श्रीकृष्ण और अग्निदेव की पूजा, जानिए क्यों अग्नि में डालते हैं तिल?

हर साल लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। इस नाम के ल शब्द का अर्थ लकड़ी है, ओह शब्द का अर्थ गोहा यानी उपले, और ड़ी शब्द का मतलब रेवड़ी से होता है। आप सभी को बता दें कि तीनों अर्थों को मिला कर लोहड़ी बना है। 13 जनवरी यानी आज संपूर्ण भारत में लोहड़ी का पर्व मनाया जा रहा है। यह धार्मिक आस्था, ऋतु परिवर्तन और कृषि उत्पादन से जुड़ा है। आप सभी को बता दें कि लोहड़ी की शाम को सभी लोग एक स्थान पर इकट्ठे होकर आग जलाते हैं और इसके इर्द-गिर्द नाचते-गाते हैं। वहीं इस दिन अग्नि देवता को खुश करने के लिए अलाव में गुड़, मक्का, तिल व फूला हुआ चावल जैसी चीजें भी चढ़ाई जाती हैं। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं लोहड़ी पर किस विधि से करना है पूजा।

पूजा विधि- 13 जनवरी की शाम 5 बजे से रोहिणी नक्षत्र आरंभ हो जाएगा। इसके बाद लोहड़ी के लिए अग्नि जलाना शुभ रहेगा। लोहड़ी पर भगवान श्रीकृष्ण, आदिशक्ति और अग्निदेव की आराधना की जाती है। इस दिन पश्चिम दिशा में आदिशक्ति की प्रतिमा स्थापित करें। उसके बाद उनके समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इसके बाद उन्हें सिंदूर और बेलपत्र अर्पित करें। भोग में प्रभु को तिल के लड्डू चढ़ाएं। अब उसके बाद सूखा नारियल लेकर उसमें कपूर डालें। अंत में अग्नि जलाकर उसमें तिल का लड्डू, मक्का और मूंगफली अर्पित करें। उसके बाद अग्नि की 7 या 11 परिक्रमा करें।

लोहड़ी की अग्नि में क्यों डालते हैं तिल?- आयुर्वेद के अनुसार, जब तिल युक्त आग जलती है तो वातावरण में बहुत सा संक्रमण समाप्त हो जाता है और परिक्रमा करने से शरीर में गति आती है। आप सभी जानते ही होंगे कि तिल का प्रयोग हवन व यज्ञ आदि में भी किया जाता है। वहीं धार्मिक दृष्टिकोण से भी तिल का विशेष महत्व बताया गया है। इस वजह से लोहड़ी पर अग्नि में तिल विशेष रूप से डाला जाता है। वहीं गरुड पुराण के अनुसार, तिल भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुआ है, यही कारण है कि इसका उपयोग धार्मिक क्रिया-कलापों में विशेष रूप से किया जाता है।

शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *