बालोद जिले के आखिरी छोर में बसा एक छोटा सा गांव कुमुरकट्टा जो कभी नक्सली मूवमेंट के लिए था जाना जाता, लेकिन आज यहां की महिलाओं ने खुद की बनाई हैं एक अलग पहचान, बना रही हैं देशी राखीयां, जिसकी डिमांड हैं पड़ोसी जिलों में भी….. देखें वीडियों

बालोद- जिले में चायनीज राखियों के बदले देशी राखियों का बड़ा क्रेज हैं। जिले के आखिरी छोर में बसे एक छोटे से गांव कुमुरकट्टा में महिलाएं बीते 3 साल से धान, चावल, बांस, मयूर पंख, गेंहू, एवं अन्य खाने की सामग्रियों का इस्तेमाल कर आकर्षक एवं सुंदर राखियों का निर्माण कर रही है और इन देशी राखियों की डिमांड जिले में ही नही बल्कि पड़ोसी जिलों में भी हो है। शायद यही वजह है कि इन महिलाएं बीते 3 साल में 15 लाख से ज्यादा की राखियां बेच चुकी है। इस काम से उन्हें एक पहचान मिली हैं। चूल्हे चौकों से निकल खुद का नाम बनाया है और इससे अच्छी खासी आय भी अर्जित कर रही है। दरअसल बालोद जिले के डौंडी ब्लॉक और राजनांदगांव की सरहद एवं पहाड़ो से लगे एक छोटे से गांव कुमुरकट्टा जो कभी नक्सली गतिविधियों के लिए जाना जाता था और ग्रामीण डर के साये में जिंदगी गुजारने मजबूर थे।

लेकिन आज वहां नक्सली मूवमेंट खत्म होने के बाद ग्रामीण हसीं खुशी जिंदगी गुजार रहे है। बल्कि घर से बाहर निकल अपनी एक अलग पहचान भी बना रहे है। इसमे सबसे ज्यादा आगे महिलाएं है। जो चूल्हे चौके से निकल अपनी एक अलग पहचान बना रही हैं। गांव कुमुरकट्टा की 12 महिलाओं के समूह द्वारा धान, चावल, बांस, मयूर पंख, मूंगदाल, गेहूं और अन्य खाने की सामग्रियों का इस्तेमाल कर देशी राखियां बनाई जा रही है। जिसकी डिमांड जिले सहित अन्य जिलों से भी आने लगी है। वही महिलाएं भी इस काम से बेहद खुश है। समूह की अध्यक्ष कुसुम सिन्हा, जयश्री मंडावी और लीला सिन्हा की माने तो इन आकर्षक राखियों को “बालोद बंधन” नाम से विक्रय किया जा रहा है। महिलाएं बताती है कि पहले इन्हें कोई नही जानता था। लेकिन इस राखी के निर्माण से लोग जानने लगे है। उन्हें एक पहचान मिली है और इससे मुनाफा भी काफी हो रहा है। इन महिलाओं को देख जिले की अन्य महिलाएं भी प्रेरित हो रही और स्वालंबी बन रही है।

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