तिल्दा नेवरा : वैदिक काल से ही भारतीय संस्कृति में गाय का विशेष महत्व है। दुख की बात है कि भारतीय संस्कृति में जिस गाय को पूजनीय कहा गया है, आज उसी गाय को भूखा-प्यासा सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ दिया गया है। लोग अपने घरों में कुत्ते तो पाल लेते हैं, लेकिन उनके पास गाय के नाम की एक रोटी तक नहीं है। छोटे गांव-कस्बों की बात तो दूर, शहर गली मोहल्ला में गाय को कूड़ा-कर्कट खाते हुए देखा जा रहा है। प्लास्टिक और पॉलिथीन खा लेने के कारण उनकी मृत्यु तक हो जाती है। भारतीय राजनीति में जाति, पंथ और धर्म से ऊपर होकर लोकतंत्र और पर्यावरण की भी चिंता होनी चाहिए। गाय की रक्षा, सुरक्षा पर आखिर क्यो नहीं ध्यान दिया जा रहा है ? आज इनके रखने की कोई व्यवस्था नही जिसके कारण ये सड़को चौक चौराहे पर रहने पर मजबूर है। जिसके कारण जगह जगह असिडेंट होते रहते है कभी गौ माता की तो कभी आम लोगों की, धर्म और गौ रक्षा की बात करने वाले लोग भी अपनी आखें मूंदे बैठे है। धार्मिक ग्रंथों में गाय को पूजनीय माना गया है। श्रीकृष्ण को गाय से विशेष लगाव था। उनकी प्रतिमाओं के साथ गाय देखा जा सकती है। किन्तु बाहर लावारिस धूम रही गौ पर कोई प्रतिक्रिया नही हो रही हैं। शासन प्रशासन भी खामोस बैठे हुये है।