हलचल… चुनावी साल में धान पर धन वर्षा करेगी भाजपा ?

चुनावी साल में धान पर धन वर्षा करेगी भाजपा ?

भारतीय जनता पार्टी के तमाम बड़े नेता धान खरीदी का काट ढूंढने में लगे हैं। सूत्र बताते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार की धान खरीदी नीति से निपटने के लिए हर फोरम पर बात रखी जा चुकी है। भाजपा के बड़े नेताओं को समझ आ चुका है कि छत्तीसगढ़ में यदि सत्ता हासिल करनी है तो धान का काट ढूढ़ना ही पड़ेगा। खबर है कि भाजपा धान पर धन वर्षा करने की तैयारी में है। यदि वास्तव में ऐसा हुआ तो छत्तीसगढ़ के किसानों की आय में अप्रत्याशित वृद्वि हो सकती है। दरअसल में शीर्ष नेतृत्व को समझ आ रहा है कि देशभर में अब भाजपा की स्थिति पहले जैसी नहीं रही। यदि 2024 में भाजपा को लोकसभा में बहुमत चाहिए तो 2023 में ही कांग्रेस शासित राज्यों में सत्ता हासिल करनी होगी। कहते हैं कि वर्तमान कांग्रेस शासित राज्यों में से छत्तीसगढ़ राज्य में भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं की पैनी नजर है। गाहे-बजाहे समय का इंतजार करते हुए दबी जुबान से बीजेपी के बड़े नेता यह कहते नजर आते हैं कि भाजपा ने धान की काट ढूंढ रखा है।

काजल की कोठली में दीपांशु काबरा
दीपांशु काबरा प्रदेश के उन चुनिन्दा आईपीएस अफसरों में से एक हैं जो अपने काम की छाप हर जगह छोडऩे में कामयाब हुए हैं। उनकी जहां भी पोष्टिंग हुई है उनके चाहने वालों की संख्या भरमार रही है। काबरा एक मिलनसार अफसर के रुप में जाने जाते हैं। पत्रकारों के बीच गहरी पैठ के कारण उन्हें जनसंपर्क विभाग का कमिश्नर बनाया गया। जनसंपर्क में भी वह अपनी छाप छोडऩे में कामयाब हुए। सरकार की योजनाओं का बेहतर प्रचार-प्रसार करते हुए अमूमन हर पत्रकार तथा मीडिया संस्थानों से उन्होंने बेहतर तालमेल बनाया। लेकिन चुनावी साल में काबरा अपनी इस बेदाग छवि को बचा पायेंगेे क्या? वैसे तो जनसंपर्क का कमिश्नर पत्रकारों के बहुत करीब रहता है। लेकिन विज्ञापनों की कम जादा चाह कब किसे पास या दूर कर दे यह कहा नहीं जा सकता। वहीं दूसरी ओर राजनीतिक कटुता के चलते राजनेता अफसरों को निशाने में लेेने से तनिक भी परहेज नहीं कर रहे। बीते वर्षों की बात करें तो भाजपा के 15 वर्षों के शासनकाल में भी काबरा की पुलिसिंग की तूती बोलती थी। लेकिन वक्त बदला अब भाजपा नेताओं के निशाने पर काबरा हैं? इसका प्रमाण भाजपा की एक राष्ट्रीय नेत्री ने बैठक के दौरान दीपांशु काबरा का सार्वजनिक रुप से नाम लेकर जाहिर किया था। जो अफ सर भाजपा शासनकाल के दौरान 15 वर्षों तक बेहतर परफारमेन्स दिया हो। वह भला वर्तमान दायित्वों में कैसे असफल हो सकता है? यह प्रदेश के नेताओं को मंथन करना चाहिए। और राजनीतिक कटुता के बीच अफसरों को घसीटने से परहेज करना चाहिए। खैर 6 माह बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। जाहिर सी बात है राजनीतिक कटूता और बढ़ेगी। इस बीच काजल की कोठली में बैठे दीपांशु काबरा अपनी बेदाग छवि को बचा पाने में कामयाब होते हैं तो यह उनकी अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।

राकेश चतुर्वेदी छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के चेयरमेन बनेंगे ?
रिटायर्ड पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी को छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के चेयरमेन की जिम्मेदारी दी जा सकती है। कुछ दिन पहले ईडी ने छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मण्डल में दबिश दी थी। जिसके बाद से बोर्ड के अफसरों की कार्यप्राणाली से चीफ नाखुश हैं। बताया जा रहा है कि छापे के बाद अफसरों की पूरी पोल पट्टी खुलकर सामने आ गयी है। ईडी ने विभाग से विगत 4 माह में की गई कार्रवाई के पूरे दस्तावेजों को जब्त किया है। यदि कार्रवाई आगे बढ़ी तो रिजनल अफ सरों के साथ-साथ बड़े अधिकारी भी ईडी की कार्रवाई के शिकार हो सकते हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार राकेश चतुर्वेदी को बोर्ड का चेयरमेन नियुक्त करने पर विचार कर सकती है। रिटायर्ड पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी बोर्ड के चेयरमेन के लिए निर्धारित योग्यता में भी फिट बैठ रहे हैं। साथ ही पीसीसीएफ के रुप में उनका कार्यकाल बेहद सफल माना गया है। चार साल से अधिक के कार्यकाल में चतुर्वेदी मंत्री तथा मुख्यमंत्री के बीच बेहतर ताल-मेल बनाकर वन विभाग के दायित्वों का सफल निर्वहन किये हैं। कांग्रेस सरकार में आवास-पर्यावरण और वन विभाग की जिम्मेदारी एक ही मंत्री के पास है। बताया जा रहा है कि विभाग के मंत्री का भी राकेश चतुर्वेदी से बेहतर तालमेल रहा है। इसलिए बोर्ड के चेयरमेन के रुप में मंत्री भी राकेश पर मुहर लगा सकते हैं।

 

आईएएस अफसरों में छुट्यिों की होड़
वित्त विभाग की सचिव डी. अमरमेलमंगई 2 माह के लिए अवकाश पर चली गई हैं। बताते हैं अमरमेलमंगई स्वास्थगत कारणों से अवकाश ली हैं। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में प्रतिनियुक्ति से वापस लौटीं श्रुति सिंह भी 2 माह के अवकाश पर चली गई हैं। 2001 बैच के अफसर शहला निगार भी अवकाश पर हैं। 2005 बैच की अफसर संगीता आर भी जून माह में ज्वाइन करेगीं। हांलाकि इनके अलावा भी कई अफसर चुनावी साल के नजदीक आते-आते छुट्टियों में जाने का विचार कर रहे हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आईएएस अफसरों में छुट्टियों की होड़ लगी हुई है।

ईडी के निशाने में अब कैम्पा?
छत्तीसगढ़ में मनी लांड्र्रिग की कार्रवाई दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। कोल स्कैम या यूं कहें कि माइनिंग से शुरु हुई ईडी की यह कार्रवाई अब आबकारी, पर्यावरण संरक्षण मंडल, श्रम, उद्योग और पविहन विभाग तक पहुंच चुकी है। मनी लांड्रिग में ईडी अफसरों तथा नेताओं के कनेक्शन की खोजबीन कर रही है। कार्रवाई के दौरान कई नेताओं, विधायकों के ठिकानों में भी ईडी दबिश दे चुकी है। करीब दर्जन भर अधिकारी, कारोबारी मनी लांड्रिग मामले में सलाखों के पीछे हैं। खबर है कि वन विभाग में कैम्पा की राशि के बंदरबाट की दिल्ली दरबार में जमकर शिकायत हुई है। राशि के बंदरबांट का हिस्सा कहां से किस-किस तक पहुंचा है इसका भी विवरण सौंपे जाने की खबर है। वैसे तो कैम्पा के कारनामे का किस्सा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष, लोकसभा सांसद अरुण साव ने लोकसभा में भी सुनाया था। बजट सत्र के दौरान छत्तीसगढ़ विधानसभा में भी कैम्पा की राशि के बंदरबाट के जमकर आरोप लगे हैं। छत्तीसगढ़ में कैम्पा चमचमाती ब्लैक स्कार्पियों की खरीदी के बाद और जादा चर्चा में आया। कैम्पा मद से राज्य के सभी डीएफओ के लिए बिना डिमांड के ब्लैक कलर की स्कॉर्पियों खरीदी गई है। केन्द्र सरकार की कैम्पा रुल्स, 2018 के सेक्शन 5(4) (D) के तहत अधिकारी या स्टाफ के लिए वाहन नहीं खरीदे जा सकते। लेकिन यहां नियमों की धज्जियां उड़ा दी गई। अब जांच एजेन्सियां इन विभागों में कार्रवाई करने की तैयारी में हैं।

तेन्दूपत्ता को लेकर भाजपा कांग्रेस आमने-सामने
हरा सोना यानि कि तेन्दूपत्ता। इन दिनों तेन्दुपत्ता को लेकर भाजपा तथा कांग्रेस नेता आमने-सामने हैं। आदिवासियों-वनवासियों की आय का प्रमुख जरिया तेन्दूपत्ता के संग्रहण तथा भुगतान में कमी को लेकर भाजपा नेताओं ने मोर्चा खोल रखा हैं। गरीबों के आवास के बाद अब भाजपा तेन्दूपत्ता के भुगतान को बस्तर तथा आदिवासी अंचल में बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी है। पूर्व वनमंत्री महेश गागड़ा इसको लेकर चक्का जाम कर चुके हैं। वहीं पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने भी तेन्दूपत्ता की खरीदी व भुगतान को लेकर सवाल खडा कर चुके हैं। महेश गागड़ा की सक्रियता को देख बीजापुर विधायक विक्रम मण्डावी ने गागड़ा पर आरोप मढ़ दिया। गागड़ा ने भी 7 दिवस में अरोपों को साबित करने की चेतावनी दी है। गागड़ा ने साफ कहा है कि यदि 7 दिवस में आरोप साबित नहीं कर पाते तो वह मानहानि का मुकदमा करेंगे। कुल मिलाकर बस्तर में तेन्दूपत्ता संग्रहण तथा भुगतान आगामी समय में बड़ा मुद्दा बनकर सामने आ सकता है।

बाघ ने बढाई धड़कनें
2022 के बाघों की गणना का आकड़ा 9 अप्रैल को जारी होने जा रहा है। रिर्पोट कार्ड आने से पहले वन विभाग के आला अफसरों की धड़कनें बढ़ी हुई है। दरअसल में 2014 की गणना में राज्य में कुल 46 बाघ थे। जो 2018 की गणना में घटकर 19 पर सिमट कर रह गया। बाघ के पीछे 183 करोड़ रुपये खर्च करने का मामला इन दिनों तूल पकड़ कर रखा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 9 अप्रैल को कर्नाटक में बाघों की संख्या (2022) के राष्ट्रीय आकड़ों को जारी करेंगे। जिसको लेकर वन विभाग काफी चिंचित है। यदि यह आकड़ा घटकर और नीचे पहुंचा तो एक बार फि र बाघ का मुद्दा प्रदेश में कोहराम मचाएगा।

ईडी की छापेमारी के बीच लंच हुआ कैंसल
एक विभाग के मुखिया को रिटायरमेन्ट के पहले ही बड़ी जबावदारी दी जाने की चर्चा इन दिनों सुर्खियों में हैं। कहते हैं कि साहब ने एक दिन विभाग के सभी अफसरों के लिए लंच रखा था जिसके लिए सभी को सूचना भी दे दी गई। लेकिन इसी बीच ईडी के ताबड़तोड़ कार्रवाई की खबरे आने लगी। आनन-फानन में लंच को कैंसल कर विभाग के अफसरों को सूचना दी गई।

कोल के खेल में शामिल होने का ऑफर
कोल के खेल में अफसरों की रुचि कम नहीं हो रही। भले ही छत्तीसगढ़ में ईडी इन तमाम मामलों की जांच कर रही है। लेकिन कोई भी अफसर समय गवांना नहीं चाहता। कहते है एक कप्तान ने वन विभाग के अफसर को 4000 खेप का आफर किया है। दरअसल में कोल का काफी बड़ा हिस्सा इस वनमण्डल के अंतर्गत आता है। हालांकि साहब के ऑफर पर बात बनती नजर नहीं आ रही।

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