हलचल… मध्यप्रदेश में भाजपा, छत्तीसगढ़ में संकट

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मध्यप्रदेश में भाजपा, छत्तीसगढ़ में संकट

2023 का चुनावी संग्राम दिन-प्रतिदिन रोचक होते जा रहा है। मध्यप्रदेश में आखिरी- आखिरी भाजपा फिर सत्ता के नजदीक दिख रही है। ठीक इसी तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बढ़त बनाए हुए है। पर यह बढ़त कैसी है, और कितनी है, इस पर मंथन की अत्यंत आवश्यकता है। अगर मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार की वापसी होती है, तो छत्तीसगढ़ में संकट के बादल छाये रहेंगे। 2018 से दोनों राज्यों के राजनीतिक सफर को देखें तो बहुत सी राजनीतिक गतिविधियां फिर दोहराने की प्रबल सम्भावना दिख रही है। दरअसल में 2018 के विधानसभा चुनाव परिणाम में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों ही राज्यों में कांग्रेस को बहुमत मिली। अंतर यह था कि मध्यप्रदेश में हार-जीत का फासला नजदीकी था, तो वहीं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को रिकार्ड बहुमत मिली। मध्यप्रदेश में जीत का फासला नजदीकी होने की वजह से कमलनाथ और कांग्रेस 5 साल तक सरकार नहीं चला सके। भाजपा जोड़-तोड़ कर मध्यावधि में फिर सत्ता में वापस हो गई। अब 2023 में भी मध्यप्रदेश में फिर मुकाबला काफी नजदीकी होने के आसार है, हां यह बात अलग है कि जिस तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस 20 है, ठीक उसी तरह मध्यप्रदेश में भी भाजपा 20 बताई जा रही है। अभी तक के सर्वे रिपोर्टों की बात करें तो छत्तीसगढ़ में भाजपा 37 से 41 सीट पर जीत हासिल करते बताई जा रही है। यदि वास्तव में ऐसा हुआ तो छत्तीसगढ़ में राजनीतिक संकट बना रहेगा।

कांग्रेसी विधायकों की गिरफ्तारी का राज ?

कहते हैं कि आधा दर्जन से अधिक कांग्रेसी विधायक ईडी और आईटी के राडार पर हैं, जिसमें कुछ मंत्रियों के नाम भी शामिल हैं। उनमें से दो पर कभी भी शिकंजा कसा जा सकता है। दोनों कांग्रेसी विधायकों को आदालत द्वारा जमानत लेने का फरमान सुनाया जा चुका है। यदि वह जमानत नहीं लेते हैं तो उनकी कभी भी गिरफ्तारी हो सकती है। दूसरी ओर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ईडी किसी भी कांग्रेसी विधायक या नेता को विधानसभा चुनाव परिणाम तक गिरफ्तार नहीं करेगी, सिर्फ उनके उपर कार्रवाई का कोरम पूरा करके रखेगी। इसके पीछे तर्क यह है कि यदि विधानसभा चुनाव परिणाम काफी नजदीकी रहे, तब यह विधायक गेम चेन्जर साबित होंगे, ठीक मध्यप्रदेश की तरह। खैर इसमें कितनी सच्चाई है यह तो आने वाले दिनों में ही स्पष्ट हो सकेगा। लेकिन ईडी की कार्रवाई जिस तरह से धीमी हुई है, इससे राजनीतिक आशंका पर विराम नहीं लगाया जा सकता।

पीएससी घोटाला के बाद युवा मतदाता किस ओर?

छत्तीसगढ़ में कथित पीएससी घोटाले ने कोहराम मचा रखा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिलासपुर की सभा में एक बार फिर पीएससी घोटाले का राग अलापा, मोदी ने साफ तौर पर कहा यदि राज्य में भाजपा की सरकार बनी तो पीएससी मामले की जांच होगी। ज्ञात हो राज्य में किसानों के बाद युवा मतदाताओं की खासी संख्या है। पीएससी में हुई धांधली के बाद युवा मतदाता कांग्रेस से बिदकते दिख रहे। गांव-शहर, गरीब-अमीर सबका सपना होता है कि उनके बच्चे पढ़ लिखकर कुछ अच्छा करें, बेहतर सर्विस पर जाएं। लेकिन चुनावी साल में पीएससी परिणाम ने इन सभी वर्ग के सपनों को चकनाचूर कर दिया है। जिसको लेकर युवा वर्ग कांग्रेस सरकार से बिदक चुके हैं। पीएससी मामले में हाईकोर्ट ने फिलहाल यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है, लेकिन कोर्ट ने यह भी तर्क दिया कि एक ही परिवार के सभी सदस्यों का चयन होना महज एक संयोग नहीं हो सकता। कोर्ट द्वारा रोक लगाने के बाद भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया है। युवा मतदाताओं की संख्या को देखते हुए भाजपा इस मुद्दे को हाथ से नहीं जाने देना चाह रही। अब देखना यह है कि यहां का युवा कौन सी पार्टी की ओर रुख करता है।

छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं पर भरोसे का संकट

पिछले 15 साल तक सत्ता की मलाई खाने वाले छत्तीसगढ़ के भाजपाई नेता सोच रहे हैं कि 2023 में छत्तीसगढ़ की जनता तस्तरी में उन्हें सत्ता परोसकर दे देगी। शायद यही कारण है कि यहां के ज्यादातर भाजपा नेता पावरलेस हैं। हर छोटे से बड़े नेता में महज 5 साल में ही हतासा का भाव आ चुका है। इनके हतासा के कारण ही केन्द्रीय नेतृत्व का इन नेताओं पर भरोसा नहीं रहा। बड़े -नेताओं की बात छोड़ दें वह तो पूरे तरह से हासिए पर जा चुके हैं। भाजपा का संचार विभाग भी धधकते दिख रहा। सुभाष राव, रसिक परमार, अमित चिमनानी, केदार गुप्ता जैसे अन्य विंग के नेता महज शो-पीस बन चुके हैं। आलम यह है कि छत्तीसगढ़ राज्य में प्रचार-प्रसार के लिए उत्तरप्रदेश के प्रयागराज से एक नेता की भाजपा ने यहां ड्यूटी लगाई है।

13 में सन्नाटा

विधानसभा चुनाव के लिए इसी माह के शुरुआती सप्ताह में बिगुल बज सकता है। लेकिन भाजपा में सन्नाटा पसरा हुआ है। भाजपा के 13 में से कई विधायकों को समझ ही नहीं आ रहा कि क्या करें? किसके पास जाएं। इन 13 मेें से कईयों की पूछ परख न के बराबर हो गई है। इनके राष्ट्रीय नेता इनको पूछ नहीं रहे। 2018 में किसी तरह से यह अपनी सीट बचाने में कामयाब हुए, 2023 में क्या होगा? इसको लेकर सन्नाटा है। दरअसल में भाजपा के 13 विधायकों में भी कईयों की स्थिति बहुत ही खराब है। 2018 की बात करें तो पूर्व मंत्री अजय चंन्द्राकर किन परिस्थितियों में चुनाव जीते हैं, वह किसी से छुपा नहीं है। 2018 में कुरुद विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से नीलम चंन्द्राकर का नाम लगभग तय था, बाद में लक्ष्मीकांत साहू को कांग्रेस ने टिकट दे दिया। नतीजन कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही, निर्दलीय नीलम दूसरे स्थान पर रहे। अजय चंन्द्राकर का समीकरण फिट बैठा वह त्रिकोणीय मुकाबले में तकरीबन 12 हजार मतों से चुनाव जीतने में कामयाब हुए। लेकिन इस बार कांग्रेस और शैलजा इन सभी सीटों पर निगरानी बनाये हुए हैं। वहीं दूसरी ओर भाटापारा से शिवरतन शर्मा त्रिकोणीय मुकाबले में जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे। भाटापारा में भी मुकाबला त्रिकोणीय रहा चैतराम साहू छजकां से मैदान में रहे उन्हें तकरीबन 46 हजार मत मिले, कांग्रेस प्रत्यासी को 51490 मत मिले थे। इस बार भाटापारा में भी शिवरतन के लिए संकट की स्थिति बनी हुई है। वही हाल मस्तूरी विधानसभा का है, यहां पर डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी और बसपा के बीच मुकाबला रहा कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही, नतीजन डॉ. बांधी चुनाव जीत गए। अकलतरा में सौरभ सिंह महज 1854 मतों से जीत दर्ज कर सके। रजनीश सिंह, ननकीराम कंवर समेत अन्य भाजपा विधायकों की स्थिति बेहद खराब है। इन तमाम सीटों पर कांग्रेस इस बार जीत दर्ज करने की इरादे से उतरने को तैयार है। इसलिए 13 में भी सन्नाटा पसरा हुआ है।

टिकट बांटने के दौर में टिकट के लाले

भाजपा में इन दिनों सेकण्ड लाइन के नेताओं को आगे लाने की कवायत चल रही है। यही कारण है कि एक बार के सांसद अरुण साव, युवा नेता पूर्व मंत्री केदार कश्यप, ओपी चौधरी जैसे नेताओं को फ्रंट फुट में लाया जा रहा है। वहीं तीन बार के मुख्यमंत्री रहे डॉ रमन सिंह, अपराजय योद्धा बृजमोहन अग्रवाल जैसे नेता बुरे दौर से गुजर रहे हैं। जिस दौर में इन नेताओं पर टिकट बांटने की जबावदारी होनी चाहिए वहां इनके खुद के टिकट के लाले पड़े हुए हैं। बिलासपुर की सभा में मोदी ने ऐलान करके कहा हमारा एक ही नेता है “कमल का फूल” दरअसल में भाजपा छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और अन्य राज्यों में क्षेत्रीय-क्षत्रपों के कद को कम कर सेकण्ड लाइन को आगे कर रही है। यही कारण है कि राजस्थान में बसुंधरा राजे, छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन, मध्यप्रदेश में शिवराज जैसे नेता इस बार के विधानसभा चुनाव में हासिए पर जाते दिख रहे हैं।

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