हलचल… राजनेता जनता से कहेंगे सॉरी…

राजनेता जनता से कहेंगे सॉरी…

देश की राजनीति में जो ट्रेंड शुरु हो गया है, दरअसल में उसका अंत सॉरी से ही होने वाला है। इसके लिए हमारे देश और प्रदेश की जनता खुद ही जिम्मेदार है। दरअसल में राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने कुछ भी घोषणाएं कर रहे हैं, फ्री की योजनाएं इन दिनों चलन में हैं। हम यह नहीं कहते की सभी योजनाएं गलत हो सकती हैं, लेकिन यह ट्रेंड सही भी नहीं। राजनीतिक दल करें भी क्या? जनता को ही मुफ्तखोरी की आदत लग गई है। अगर कोई दल मुफ्त में देने की घोषणा नहीं करेगा तो वह दल सत्ता से बाहर हो जाएगा। खैर इस मुफ्तखोरी का अंत कुछ ऐसा होने वाला है कि जब राजनेता जनता से हाथ जोड़कर, माफी मांगकर, सॉरी के सिवाए कुछ नहीं कह पाएंगे। इसका जीता-जागता उदाहरण भूपेश सरकार के 36 वादे हैं। जिसमें सॉरी के अलावा कुछ भी नहीं कहा जा सकता। राज्य में शराबबंदी हुई क्या? राज्य में संविदा और डेली बेजेस में काम करने वाले कर्मचारी नियमित हुए क्या? सभी बेरोजगारों को भत्ता मिला क्या? ऐसे अनेकों वादे हैं जो किसी भी हाल में और कोई भी सरकार पूरा नहीं कर सकती। खैर इसके लिए हमारे देश की जनता खुद ही जिम्मेदार है। जनता की एक सोच बन गई है कि कौन जादा देगा। कैसे होगा, क्यों दिया जा रहा? इस दायित्व से हम सब परे हैं। इस मुफ्तखोरी के जनक श्रीमान अरविन्द केजरीवाल को कहा जाता है, खैर यह भी शोध का विषय है। उन्होंने देश में मुफ्तखोरी की योजनाओं को बढ़ावा दिया, आज उड़ीसा को छोड़ दिया जाए तो जादातर राज्य इस दिशा में आगे बढ़ चुके हैं। जनता अगर अब भी नहीं जागी, तो नेताओं के पास सिर्फ सॉरी कहने के अलावा कुछ नहीं बचेगा।

लीपा-पोती में जुटे अफसर

नवा रायपुर स्थिति एशिया की सबसे बड़े जंगल सफारी में 17 चौसिंगाओं और ब्लैक बग की मौत हो गई। चौसिंगा अनुसूची 1 में शामिल दुर्लभ जीव है। इस दरम्यान 5 ब्लैक बग भी मर गए, यह भी शोड्यूल 1 का प्राणी है। लेकिन वन्यजीवों को लेकर जवाबदार अफसरों का रवैया कुछ ठीक नहीं। अरण्य भवन में बैठे अफसर मामले में कार्यवाही करने के बजाए लीपापोती में जुट गए हैं। इसको लेकर इन दिनों जमकर चर्चा हो रही। कहते हैं कि जंगल सफारी में चौसिंगाओं की लासें गिरती रहीं, डॉक्टर और जिम्मेदार बिना अवकाश के स्वीकृति के बाहर घूमते रहे। यह मामला जब मीडिया में तूल पकडऩे लगा तब विभाग में भगदड़ मची। वन एवं जलवायु मंत्री केदार कश्यप ने इस मामले की जांच वन्य जीव विशेषज्ञों से कराने कही है। वहीं दूसरी ओर पूर्व केन्द्रीय मंत्री, सांसद मेनका गांधी ने भी मामले की जांच सेंट्रल जू अथॉरिटी से कराने कही है। दरअसल में मेनका गांधी का वन्य जीवों के प्रति खासा लगाव है, इसलिए उन्होंने मामले की जानकारी मांगी।

राजेश मिश्रा नए डीजीपी

  1. 88 आईएएस अफसरों की ट्रांसफर लिस्ट जारी होने के बाद अब आईपीएस अफसरों के ट्रांसफर का इंतजार है। खैर जयपुर में हुए सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी ने साफ तौर पर चेताया था कि मुख्यमंत्री और मंत्री ट्रांसफर में ध्यान न देकर गारंटी को पूरा करने में जुटें। इसके बाद ट्रांसफर की गति थोड़ी धीमी हो गई है। फिर भी यह माना जा रहा है कि राज्य के आईपीएस अफसरों की तबादला सूची जल्द आ सकती है। जिसमें 1990 बैच के अफसर राजेश मिश्रा के डीजीपी बनने की चर्चा है। खैर इसके लिए 1992 बैच के अफसर  अरुण देव गौतम के भी नाम का जिक्र है। लेकिन सत्यता तो लिस्ट आने के बाद ही सामने आ सकेगी।

शराब दुकान हटाना मुश्किल, घरौंदा सेंटर को ही हटवा देते हैं

मदिरा से मिलने वाले राजस्व की बढ़त तो यह बताती ही है कि मदिरा की डिमांड बढ़ रही है। लेकिन अफसरों को मदिरा दुकानों से भला प्रेम क्यों है? इसकी चर्चा हो रही है। दरअसल हाईकोर्ट के जीफ जस्टिस की बेंच ने 11 जिलों के घरौंदा सेंटर की जांच के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किए थे। इसको लेकर कोर्ट ने एक जिले के कलेक्टर ने कहा कि घरौंदा सेन्टर के ठीक सामने शराब दुकान है। वहीं सेंटर के नीचे चखना सेन्टर संचालित होने की बात कही गई थी। कोर्ट ने कहा इसे हटाने की जरुरत है। जिसको लेकर एक जिले के कलेक्टर ने कहा कि शराब दुकान हटाना मुश्किल होगा, घरौंदा सेंटर को ही यहां से हटवा देते हैं। कलेक्टर का शराब दुकान से प्रेम सबको हैरत में डाल दिया। कहते हैं कि इसके लिए शपथ पत्र भी प्रस्तुत किए गए हैं।

बीटीआई ग्राउंड का अब क्या?

आवास एवं पर्यावरण मंत्री ओपी चौधरी जब रायपुर कलेक्टर थे तो उन्होंने आमजनों के स्वास्थ्य एवं सुगम यातायात व्यवस्था को देखते हुए बीटीआई मैदान शंकर नगर को मेला और बड़े आयोजनों के लिए प्रतिबंधित किया था। अब वह इसी विभाग के मंत्री हैं और बीटीआई में मेला चल रहा है। इसको लेकर मंत्री ओपी चौधरी का क्या स्टैंण्ड होगा यह देखना होगा।

तो क्या भूपेश को फिर लोकसभा?

कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी राज्य के बड़े नेताओं को लोससभा चुनाव में उतार सकती है। इसके लिए कुछ जगह चर्चा है कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल को रायपुर या फिर दुर्ग से लोकसभा चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है। लेकिन अब तक भूपेश बघेल का लोकसभा चुनाव को लेकर अनुभव ठीक नहीं रहा। भूपेश इसके पहले दो बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं, जिसमें उनको नाकामयाबी हासिल हुई है। 1999 में भूपेश बघेल को ताराचंद साहू ने दुर्ग से चुनाव हराया था। वहीं 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के रमेश बैस ने भूपेश को चुनाव हरा दिया था। ऐसे में भूपेश को लोकसभा में उतारने की सिर्फ चर्चा हो रही है, कि वास्तव में वह मैदान में उतरेंगे यह तो आने वाले दिनों में ही स्पष्ट हो सकेगा।

जूदेव या जोगी?

वैसे तो जूदेव परिवार और जोगी परिवार में लंबे समय से राजनीतिक अदावत चली आ रही है। लेकिन वर्तमान परिदृश्यों में हालात बदलते दिख रहे हैं। दरअसल में छजकां प्रमुख अमित जोगी की हाल ही में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई है। कहते हैं कि अमित की मुलाकात की राज्य के नेताओं को भनक तक नहीं लगी। शाह से मुलाकात के बाद यह भी चर्चा है कि जोगी कांग्रेस का जल्द ही भाजपा में विलय हो सकता है। वहीं अमित जोगी कोरबा से भाजपा के प्रत्याशी हो सकते हैं। खैर इसको लेकर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन ऐसा हुआ तो भाजपा के लिए जूदेव परिवार और जोगी परिवार के बीच सामंजस बैठाना भी एक चुनौती होगी। दरअसल में राजा रणविजय सिंह जुदेव लंबे समय से क्षेत्र में सक्रिय हैं। इसी के चलते भाजपा ने उन्हें राज्यसभा संासद भी बनाया था। लेकिन हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान राजा रणविजय सिंह जूदेव को कहीं से अवसर नहीं दिया गया। प्रबल प्रताप और संयोगिता को पार्टी ने तवज्जों दी और देना भी चाहिए था, लेकिन दोनों चुनाव जीतने में सफल नहीं हो पाए। अब यह माना जा रहा है कि यदि अमित जोगी पर भााजपा कोरबा से विचार करती है, तो रणविजय सिंह जूदेव को बिलासपुर या फिर रायपुर से मैदान में उतारा जा सकता है।

पायलट किस दिशा में उड़ान भरेंगे

राज्य की सत्ता गंवाते ही गांधी परिवार की खास बताई जाने वाली कुमारी शैलजा की छुट्टी कर दी गई। अब राज्य कांग्रेस के नए प्रभारी की जिम्मेदारी सचिन पायलट को दी गई है। पायलट पहली बार रायपुर पहुंचे, बैठकें भी लिये। इसके पहले भी अन्य प्रभारी भी यही करते रहे हैं। जब पीएल पुनिया को हटाया गया तो शैलजा की इमेज गांधी परिवार के विश्वसनीय लोगों के रुप में बताई गई, लेकिन शैलजा राज्य के सभी नेताओं को विश्वास में लेने में नाकामयाब साबित हुई। शुरुआत में शैलजा ने अपने तेवर दिखाए, बाद में पुनिया और शैलजा में समानताएं दिखने लगीं। खैर पायलट की अपनी एक इमेज है वह जुदा किश्म के नेता है, जाट राजनीति में खासी पकड़ रखते हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ को लेकर वह किस दिशा में उड़ान भरेंगे यह तो धीरे-धीरे ही पता लग सकेगा।

editor.pioneerraipur@gmail.com

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