हलचल… राज्य में किसी भी पार्टी की लहर नहीं, हर एक सीट पर कड़ा मुकाबला

 

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राज्य में किसी भी पार्टी की लहर नहीं हर एक सीट पर कड़ा मुकाबला

छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मतदाताओं का रुख अब तक स्पष्ट नहीं हो सका है। आम मतदाता फिलहाल अभी भी खामोश है। राज्य में न ही कांग्रेस की लहर है, और न ही भाजपा पर जनता विश्वास जता पा रही है। ऐसे हालातों में हर एक सीट पर कड़ा मुकाबला देखने को मिलने वाला है। कांग्रेस के पास धान खरीदी का मुद्दा है, तो भाजपा ने भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बना दिया है। राज्य की जनता अब तक तय नहीं कर पा रही क्या किया जाए, इससे यह अनुमान लागाया जा रहा है कि यह हालात ईवीएम की बटन दबाने तक यूं ही बना रहेगा। कुल मिलाकर हर सीट पर हार और जीत कैंडिडेट पर निर्भर करेगा। ऐसे हालातों में भाजपा के पास चुनाव प्रबंधन का खासा अनुभव है। तो वहीं कांग्रेस भी राज्य में भाजपा को देख-देखकर चुनावी प्रबंधन में महारथ हासिल कर लिया है। अब दोनों ही पार्टियों के लिए एक-एक सीट का समीकरण महत्वपूर्ण है।

इनसे लें, कि उनका लिया जाए

छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनाव में कर्जमाफी और धान खरीदी बड़ा मुद्दा रहा। किसानों को डायरेक्ट लाभ की योजनाओं ने खूब आकार्षित किया। लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में किसानों को विकल्प चुनने का अवसर मिलने वाला है। दरअसल में कांग्रेस से साथ भाजपा भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में कर्जमाफी और सम्भवत 3100 रुपये प्रति क्विंटल में धान खरीदी का ऐलान कर सकती है। वहीं प्रति एकड़ 20 की जगह 22 क्विंटल किया जा सकता है। ऐसे में राज्य के किसानों के पास इस चुनाव में विकल्प मौजूद होगा। अब किसानों को तय करना है कि उन्हें धान बोनस और कर्जमाफी भाजपा से करवाना है, या फिर कांग्रेस पर भरोसा बनाए रखना है। लेकिन एक बात तो तय है कि जब देने वालों की कतार हो, तो लेने वाला अपना च्वाइस देखता है। ऐसे हालातों में राज्य का किसान यह सोचने में विवश होगा कि इनसे लें, कि उनका लिया जाए।

वो दिल्ली वाले, ये ठेठ छत्तीसगढिय़ा

पिछले कुछ चुनावों में एक अलग ट्रेंड देखने को मिल रहा है, जिसके कारण भाजपा राज्यों में दिल्ली वाली पार्टी कहलाने लगी है। वहीं ठीक इसके विपरीत कांग्रेस ने राज्य में छत्तीसगढिय़ा छाप छोडऩे में सफलता हासिल की है। कर्नाटका चुनाव के बाद अब छत्तीसगढ़ चुनाव की हैंडलिंग भी दिल्ली से हो रही है। राज्य भाजपा के नेता दिल्ली वालों के सामने लाचार और बेवस नजर आ रहे हैं। इसका दृश्य भाजपा कार्यालय में पार्टी के नेताओं के समक्ष दिख रहा है। वैसे तो भाजपा ने अघोषित रुप से संचार विभाग की जिम्मेदारी रसिक परमार को दे रखी है, वहीं इसके लिए यूपी से भाजपा नेता सिद्धार्थनाथ को भी जिम्मेदारी सौंपी गई है। लेकिन यह नेता अपने आप को लाचार और बेबस बता रहे हैं। यह बात अब कहने तक ही सीमित नहीं रही, इनकी लाचारी को इन्होंने बकायदा चस्पा भी किया है। दरअसल में भाजपा के मीडिया प्रभारी रसिक परमार राज्य के मीडिया संस्थानों को सीधा दिल्ली का रास्ता दिखा देते हैं। वह इस कदर परेशान हैं कि दिल्ली वालों का नम्बर भी उन्होंने भाजपा कार्यालय में बकायदा चस्पा करा दिया है।

कई नेताओं का राजनीतिक भविष्य दांव पर

2018 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के कई नेताओं ने अपनी जुगत और माता रानी के आशीर्वाद से टिकट तो ले लिया, लेकिन यदि वह इस बार विधानसभा चुनाव जीतने में असफल होते हैं तो उनके राजनीतिक कैरियर में ब्रेक लग सकता है। इन नेताओं में सबसे उपर पूर्व मंत्री राजेश मूणत का नाम शामिल है। वहीं दूसरा नाम अमर अग्रवाल का है। आदिवासी नेता रामविचार नेताम भी मुश्किल में दिख रहे। दरअसल में मूणत को पार्टी ने इस बार ही बहुत कश्मकश की स्थिति में टिकट दिया है। वहीं हाल अमर अग्रवाल का है। अमर पूरे पांच साल तक क्षेत्र में निकले ही नहीं। वह दुविधा में थे कि बिलासपुर से पार्टी अध्यक्ष अरुण साव को मैदान में उतार सकती है। ऐसे में अमर के सामने शैलश पांडे और मूणत के सामने विकास उपाध्याय एक बार फिर मैदान में हैं। मूणत अपने कड़क स्वाभाव के लिए जाने जाते हैं, वहीं विकास ने पांच साल तक अपनी सहजता बनाए रखा। ठीक ऐसा ही महौल बिलासपुर में अमर अग्रवाल के लिए दिखाई दे रहा है। जहां अमर बड़े नेता के रुप में जाने जाते है, वहीं शैलेश पांडे सहज उपलब्ध नेता हैं। ऐसे हालातों में अमर अग्रवाल और शैलेश पांडे के बीच कड़ी टक्कर होने के आसार है। दूसरी ओर रामविचार नेताम की राह भी अब आसान नहीं रही। दरअसल में भाजपा ने पहली सूची में ही रामविचार नेताम का नाम घोषित कर दिया था। यह माना जा रहा था कि नेताम और बृहस्पति के बीच भिड़ंत होगी ऐसे में नेताम भारी पड़ेंगे। लेकिन कांग्रेस ने इस सीट से डॉ. अजय तिर्की को मैदान में उतार दिया, जिससे नेताम की राह भी अब आसान नहीं बची। कुल मिलाकार इन नेताओं का राजनीतिक भविष्य दांव में लगा हुआ है।

उत्तर का पुत्तर कौन?

रायपुर उत्तर सीट से पुरंदर मिश्रा को समय पर टिकट मिलने से उन्होंने धुआंधार चुनाव प्रचार चालू कर दिया। वहीं कांग्रेस में इस सीट पर पेंच फंसा रहा, आखिरकर कुलदीप जुनेजा को कांग्रेस ने मैदान में उतारा। कुलदीप की टिकट फाइनल न होने तक पुरंदर ने आधा से जादा क्षेत्र का दौरा कर डाला, वहीं इस लिहाज से जुनेजा पीछे हैं। हालांकि जुनेजा वर्तमान विधायक हैं, रायपुर की हर गली-गोहल्ले से वह भली भांति अवगत हैं। लेकिन जुनेजा के खिलाफ उन्हीं के पार्टी के नेताओं ने खुला मोर्चा खोल रखा है। ऐसे में कुलदीप को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। अब 3 दिसम्बर को चुनाव परिणाम के बाद ही उत्तर के पुत्तर की सही पहचान हो सकेगी।

शैलेश ने एक तीर से दो निशाने साधे

लंबे समय तक कांग्रेस के संचार विभाग की जिम्मेदारी सम्भालने वाले शैलेश नितिन त्रिवेदी का आखिरी दांव एकदम फिट बैठ गया। नतीजन शैलेश टिकट हासिल करने में कामयाब हुए। उन्होंने न ही टिकट हासिल की बल्कि 2018 के चुनाव में छजकां से जीत हासिल करने वाले बलौदाबाजार विधायक प्रमोद शर्मा को भी कांग्रेस प्रवेश करा लिया। दरअसल में कांग्रेस बलौदाबाजार से छाया वर्मा को मैदान में उतारना चाह रही थी। लेकिन वर्तमान विधायक प्रमोद शर्मा ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि कांग्रेस यदि छाया को टिकट देती है तो वह निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे इसके लिए उन्होंने नामांकन फार्म भी खरीद लिया था। प्रमोद यदि निर्दलीय या किसी भी दल से चुनाव लड़ते तो बलौदाबाजार में फिर मुकाबला त्रिकोणीय होता। ऐसे में भाजपा को लाभ मिलने का पूरा आसार था। जिसको देखते हुए कांग्रेस ने छाया वर्मा को धरसीवाां से मैदान में उतार दिया। वहीं त्रिवेदी को बलौदाबाजार से टिकट दे गई। कुल मिलाकर शैलेश नितिन त्रिवेदी ने एक तीर से दो निशाना साध लिया।

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