हलचल… एग्जिट पोल ने बढ़ाई कांग्रेस की चिंता

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एग्जिट पोल ने बढ़ाई कांग्रेस की चिंता

जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं उनके एग्जिट पोल सामने आ चुके हैं। हालांकि यह पोल महज एक अनुमान है। रिजल्ट तो 3 तारीख को ही आपके सामने आ सकेगा। एग्जिट पोल में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को बहुमत मिलते दिख रही है, लेकिन पोल में दूसरे ओर भाजपा भी कांगेस के नजदीक खड़ी दिखाई दे रही है। इन हालातों में कांग्रेस में चिंता की लकीरें दिखाई देना स्वाभाविक है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस तो मध्यप्रदेश और राजस्थान में भाजपा को बढ़त मिलने के आसार बताए जा रहे हैं। वास्तव में यदि मध्यप्रदेश और राजस्थान में भाजपा को बहुमत मिलती है, तो छत्तीसगढ़ भी शायद ही सुरक्षित रह सके। दरअसल में इसके पीछे प्रमुख वजह है हार-जीत के फासले का नजदीकी होना। अभी तक जितने भी एग्जिट पोल सामने आये हैं उसमें यदि हार-जीत के अंतर को समझा जाए तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को औसतन 5-7 सीटें ही जादा मिलते दिख रही हैं। ऐसे में कांग्रेस अपने आप को कितना महफूज़ महशूस करेगी, यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही साफ हो सकेगा। फिलहाल एग्जिट पोल ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है।

कुर्सी की दौड़

विधानसभा चुनाव परिणाम सामने आने के पहले ही कुर्सी की दौड़ शुरु हो चुकी है। सभी दावेदार किसी न किसी बहाने दिल्ली परिक्रमा में लगे हुए हैं। एक ओर जहां कांग्रेस में आंतरिक रुप से कुर्सी की जमकर खींचतान मची हुई है। तो वहीं दूसरी ओर भाजपा में चुनाव परिणाम के पहले ही रमन सिंह की ओर राज्य के नेताओं का झुकाव बढऩे लगा है। कांग्रेस यदि सत्ता में वापस आती है तो पहले दावेदार सीएम भूपेश बघेल हैं। स्वाभाविक है यदि सत्ता वापसी होती है तो इसमें सीएम भूपेश बघेल और उनके सरकार की नीतियों का विशेष योगदान माना जाएगा। दूसरी ओर टीएस सिंहदेव उपमुख्यमंत्री से एक पायदान और उपर जाना चाहते हैं। सिंहदेव ने पिछले पांच साल में कोई बड़ा करश्मिा तो नहीं किया लेकिन 2018 में कथित ढ़ाई-ढ़ाई साल का फार्मूला अभी भी उनके लिए बड़ा आधार बना हुआ है। सिंहदेव आलाकमान को किसी न किसी बहाने बार-बार उनका किया हुआ वादा याद दिलाते रहते हैं। कहते हैं कि डॉ. चरणदास महंत ने भी इस बार अपने पांसे चल दिए हैं। यदि महंत चुनाव जीतकर आते हैं तो वह भी सीएम पद के प्रबल दावेदार होंगे। दरअसल में महंत ने 2018 के दौरान भूपेश सरकार में मंत्री बनने से इंकार कर दिया था, या यूं कहें कि भूपेश के अधीन काम करने से मना कर दिया था, जिसकी वजह से उन्हें छत्तीसगढ़ विधानसभा का अध्यक्ष बनाया गया था। ऐसे में स्वभाविक है कि भूपेश-2 में महंत फिर मंत्री नहीं बनना चाहेंगे। लेकिन वह दूसरी बार विधानसभा का अध्यक्ष भी अब नहीं बनना चाहेंगे, अध्यक्ष रहते नेता और कार्यकताओं के बीच दूरी बढ़ जाती है। इसलिए इस बार महंत अब यह जोखिम किसी भी हालत में नहीं उठाना चाहेंगे। संभवत: यही कारण है कि डॉ. महंत की भी दावेदारी इस बार खुलकर सामने आ रही है।

भारी उलटफेर

वास्तव में यदि एग्जिट पोल के अनुरुप राज्य का चुनाव परिणाम आता है, तो इस बार राजनीतिक रूप से भारी उलटफेर देखने को मिल सकता है। दरअसल में भाजपा के पास राज्य में अभी मात्र 13 विधायक ही हैं। ऐसे में यदि चुनाव परिणाम एग्जिट पोल के अनुरुप रहा तो इस बार विधानसभा में नए सदस्यों की संख्या जादा रहेगी। यानी की तकरीबन 25 से 30 विधायकों की रवानगी होने वाली है। 30 नए चेहरे आयेंगे जिसमें 2018 के दौरान चुनाव हारने वाले नेताओं की भी वापसी संभव है। कुल मिलाकर इस बार भारी उलटफेर देखने को मिल सकता है।

रायपुर में हल्ला

चुनाव परिणाम से पहले ही भाजपा नेता खासे उत्साहित हैं, या यूं कहें कि अतिउत्साहित हैं। यह नेता एग्जिट पोल के आकड़ों को मानने से इनकार कर रहे हैं। कहते हैं कि भाजपा नेता मतदान के बाद हर सम्भाग में जाकर फीडबैक ले चुके हैं। ऐसे में भाजपाइयों का अत्यधिक उत्साहित होना स्वभाविक है। इस बार हार-जीत का फासला काफी कम होने की सम्भावना भाजपा नेताओं द्वारा जताई जा रही है। नजदीकी मामला होने की वजह से खींचतान बनी रहने की भी सम्भावना है। रणनीतिकारों का मामना है कि रमन सिंह 15 साल तक राज्य में मुख्यमंत्री रहे वह राज्य के स्वीकार्य नेता है। और 2023 के इस विधानसभा चुनाव में रमन समर्थकों की बहुतायत भी है। लिहाजा रायपुर में इन दिनों हल्ला है कि 6 दिसम्बर को डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे, वहीं जातिगत समीकरण को भी साधने की बात भी कही जा रही है जिसमें दो उपमुख्यमंत्री बनाने की बात का हल्ला है। कहते है कि एक ओबीसी वर्ग से तो एक आदिवासी वर्ग से उपमुख्यमंत्री बनाने पर भाजपा विचार कर चुकी है। वास्तव में यदि भाजपा के रणनीतिकारों के अनुमान के अनुसार चुनाव परिणाम रहा तो रमन के साथ अरुण साव को डिप्टी सीएम वहीं विष्णुदेव साय या फिर रामविचार नेताम को भी डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है। हलांकि अभी तक चुनाव परिणाम सामने नहीं आये हैं। ऐसे में इस हल्ला में कितना दम है, यह तो फिलहाल 3 दिसम्बर को ही पता लग सकेगा।

टोकन की राशि

जब कोई काम पक्का करना हो तो सबसे पहले टोकन देने का रिवाज वर्षों से चला आ रहा है। यहां पर भी कुछ ऐसा ही सुनाई पड़ रहा है। दरअसल में यह प्रबंधन का हिस्सा माना जाता है। मतदान के पूर्व प्रबंधन में पीछे दिखाई देने वाली पार्टी परिणाम के दौरान प्रबंधन में आगे रहना चाहती है। इसके लिए निर्दलीय और अन्य दलों के मजबूत प्रत्याशियों को टोकन पहुंच चुका है। खैर इस बात में कितना सच्चाई है यह तो प्रबंधन करने वाले नेता और और पाने वाले उम्मीदवार ही जानेंगे। हालांकि कहते हैं कि 2018 में भी कुछ ऐसी ही सम्भावना थी, जिसको लेकर टोकन में भारी भरकम राशि खर्च की गई थी। बाद में कईयों ने टोकन की राशि लौटाई ही नहीं।

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