हलचल… खामोशी क्यों?

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छत्तीसगढ़ का कद बढ़ा, एक साल में पीएम का चौथा दौरा

छत्तीसगढ़ राज्य इन दिनों केन्द्र सरकार के लिए कई मायनों में अहम हो चुका है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक साल में किसी पीएम का यहां चौथा दौरा होने जा है। इतिहास गवाह है कि इसके पहले किसी पीएम ने इस राज्य के प्रति इतनी उदारता नहीं दिखाई, निश्चित ही छत्तीसगढ़ का कद राष्ट्रीय परिदृश्य में बढ़ा है। पीएम नरेन्द्र मोदी 30 मार्च को राज्य में कई करोड़ की लागत से विभिन्न परियोजनाओं का शिलान्यास करेंगे, निश्चित ही इसका पूरा श्रेय राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को जाता है। दरअसल सीएम साय के सरल और सहज स्वभाव को लेकर पूरा केन्दीय मंत्रीमंडल छत्तीसगढ़ राज्य के प्रति उदार दिखाई देता है। किसी राजनेता का सरल स्वभाव और कर्तव्यनिष्ठा राज्य के विकास की गति को तेज कर देता है, इसका ताजा उदाहरण सीएम विष्णुदेव साय हैं। अपने 15 माह के कार्यकाल में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बड़ी खमोसी से बड़े-बड़े कार्यों को करने में सफल हुए है। चाहे वह राजनीतिक परिपेक्ष्य में हो या राज्य के विकास की बात की जाए। साय अल्प समय में मोदी की गांरटी को पूरा करने में सफल हुए है। वहीं इस दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक विरोधियों को भी मात देने में सफलता हासिल की है। राज्य में किसानों को बकाया वोनस देने के साथ ही 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान के रिकार्ड खरीदी का कीर्तिमान विष्णु सरकार ने रचा है। प्रधानमंत्री मोदी की इच्छाशक्ति और विष्णु के सुशासन के बदौलत आज राज्य में नक्सलवाद का सफाया होने जा रहा है। निश्चित ही राष्ट्रीय परिदृश्य में छत्तीसगढ़ का कद बढ़ा है।

सट्टा ने लगाया खाकी की साख में बट्टा

जुआ-सट्टा, चोरी-डकैती, भ्रष्टाचार, शराब इन सब को हमारे समाज में बुराइयों के रुप में जाना जाता है। इन तमाम बुराइयों से निपटने के लिए देश और प्रदेश में कई नीतियां बनाई गई हैं। नीतियों के पालन और संचालन की जिम्मेदारी अफसरों की होती है, लेकिन दुर्भाग्य, जिनको इन बुराइयों के खिलाफ खड़े होना था, वह इसके खेवनहार बन गए। रुपयों की भूख ने उन्हें सट्टा-शराब जैसे कामों में ढकेल दिया। जब सट्टा ही खेलना और खेलवाना था तो इतनी मेहनत क्यों? सरकारी सेवा का चोला? सट्टा खेलवाने के लिए आईपीएस की वर्दी को बदनाम क्यों किया गया? चंद भ्रष्ट अफसरों की भूख ने पूरे कौम को गुनाहगार के रुप में समाज के सामने खड़ा कर दिया? खैर मामले की जांच सीबीआई कर रही है। लेकिन प्राथमिक रुप सेे जो तथ्य सामने आये हैं, वह पुलिस की साख में बट्टा लगाने वाले हैं। कुछ आईपीएस अफसरों ने सट्टा खेलवाने के लिए प्रतिमाह 25 से 35 लाख रुपये लिए, यह तथ्य सीबाीआई के छापेमारी के दौरान मीडिया में उजागर हुए हैं। खैर सच क्या है यह तो जांच पूरी होने के बाद ही सामने आ सकेगा, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सट्टा ने खाकी की साख पर बट्टा लगाने का काम किया है।

खामोशी क्यों?

कुछ दिन पहले तक भारतमाला परियोजना पर हुए भ्रष्टाचार की गूंज सड़क से सदन तक सुनाई दे रही थी। हालांकि यह भ्रष्टाचार कांग्रेस शासनकाल में हुआ था, लेकिन भाजपा की सरकार इसे दफन करने में क्यों जुटी है? यह एक अबूझ पहेली बनी हुई है। भले ही भ्रष्टाचार कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हुआ है, लेकिन नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण्दास महंत भारतमाला परियोजना में हुए भ्रष्टाचार को लेकर तनिक भी समझौता करने के मूड में नहीं हैं। डॉ. महंत ने विधानसभा में सरकार को चेतावनी देते हुए साफ तौर पर कहा है कि यदि राज्य सरकार इनमें कार्रवाइ नहीं करेगी तो वह केन्द्र सरकार के पास जाएंगे और यदि केन्द्र ने भी कार्रवाई करने से परहेज किया तो वह हाईकोर्ट जाएंगे और जरुरत पड़ेगी तो सुप्र्रीम कोर्ट जाएंगे, लेकिन मामले का सच उजागर करेंगे। कहते हैं कि महंत के तेवर के बाद राज्य सरकार ने भले ही कोई ठोस कार्रवाई नहीं की हो, लेकिन केन्द्र सरकार ने मामले की पड़ताल शुरु कर दी है। केन्द्र सरकार ने अपने तंत्र का उपयोग कर मामले से संबंधित सभी जानकारियां जुटा ली है। दूसरी ओर डॉ. महंत ने विधानसभा में इस मामले को तो जमकर उठाया, सदन में चेतावनी भी दी, लेकिन सत्र खत्म होते ही वह खामोश हो गये हैं? बहरहाल महंत खामोश क्यों है यह तो वहीं जानेंगे, लेकिन केन्द्रीय एजेंसियां खामोश रहेंगी या नहीं फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता।

तब रमन और बृजमोहन, अब कौन?

बृजमोहन अग्रवाल राज्य की राजनीति के एक बड़े चेहरे हैं, लेकिन उन्हें इन दिनों राज्य की राजनीति से दूर कर दिया गया है। बृजमोहन अग्रवाल की दखल वर्तमान में राज्य में न के बराबर दिख रही है। लेकिन 15 साल तक डॉ. रमन सिंह की सरकार में बृजमोहन अग्रवाल अपनी पैररल सरकार चलाते रहे। पैररल सरकार चलाने के कारण बृजमोहन अग्रवाल और डॉ. रमन सिंह के बीच 15 वर्षों तक राजनीतिक अदावत रही। सरल स्वभाव के नेता डॉ. रमन, बृजमोहन अग्रवाल को अपना प्रतिद्वंदी मानते रहे। अब न ही बृजमोहन राज्य की राजनीति में सक्रिय हैं और न ही डॉ. रमन सिंह, लेकिन यह दौर यहीं समाप्त नहीं हुआ। इन दिनों विष्णु सरकार के एक मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के पदचिन्हों पर चलते दिख रहे हैं। हालात कमोवेश पहले जैसे ही निर्मित होते जा रहे हैं। तब डॉ. रमन सिंह सरल और सहज स्वभाव के नेता थे, अब सीएम विष्णुदेव साय सरल और सहज नेता के रुप में जाने जाते हैं। कहते हंै कि अब बृजमोहन अग्रवाल की भूमिका एक मंत्री ने अदा करना शुरु कर दिया है। वह अपने आप को राज्य का भावी चेहरा के रुप में देख रहे हैं, और बृजमोहन के पदचिन्हों पर चलते हुए अपनी सेना खड़ी करने में जुट गए हैं। मंत्री जी के सेना में अफसर, पत्रकार से लेकर सभी विरादरी के लोग शामिल हैं। खैर राजनीति में यह खेल आम है, बहरहाल नेताजी इस खेल में कितना कामयाब होंगे फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता।

सीजीएमएससी का भ्रष्टाचार बनेगा गले का फांस

राज्य में रिएजेन्ट खरीदी का मामला भाजपा सरकार के लिए गले का फांस बनने जा रहा है। दरअसल इस घोटाले की परतें खोलने में कांग्रेसी विधायकों से ज्यादा भाजपा विधायकों की रुचि है। भाजपा के अजय चन्द्राकर इस मामले की लगतार परतें खोल रहे हैं। चन्द्राकर पूर्व में स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं, इसलिए उन्हें इसकी पूरी चैन मालूम है। लेकिन सवाल यह उठता है कि स्वास्थ्य मंत्री अपने ही दल के सीनियर और ज्ञानी विधायक अजय चन्द्राकर की क्यों नहीं सुनना चाहते? बीते विधानसभा सत्र के दौरान भाजपा विधायक अजय चन्द्राकर और स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायससवाल के बीच इस मामले को लेकर तीखी बहस भी हुई। आखिर चंद्राकर के निशाने पर कौन है? नियम विरुद्ध खरीदी का मामला तो पहले ही उजागर हो चुका है। भ्रष्टाचार की भी बात सामने आ चुकी है। सीजीएमएससी में हुए भ्रष्टाचार की जांच ईओडब्ल्यू कर रही है। फिर भी चंन्द्राकर असंतुष्ट हैं आखिर क्यों? क्या चंद्राकर के लिए सीजीएमएससी कुर्सी का दरवाजा खोलने का एकमात्र रास्ता है? या फिर सिर्फ अफसर निशाने पर हैं? बहरहाल इस पर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि यह भ्रष्टाचार तो कांग्रेस की सरकार में हुआ फिर स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल और अजय चंन्द्राकर आमने-सामने क्यों हैं? कहा तो यह भी जा रहा है कि नई सरकार बनने के बाद भी चोपड़ा बंधु को भुगतान किया गया है। अब सवाल यह उठता है कि जब नियम विरुद्ध खरीदी हुई तो भुगतान क्यों? सवाल तो यह भी उठता है कि किसके कहने पर चोपड़ा बंधु को भुगतान किया गया? सम्भवत: चंद्राकर यह भली-भांति जानते हैं, कि उन्हीं के पार्टी के एक बड़े पदाधिकारी के कहने पर भुगतान किया गया है। जाहिर सी बात है चन्द्राकर ज्यादा आगे बढ़ेंगे तो दबाव उन्ही के नेताओं पर बढ़ेगा। सम्भव है कि यह दबाव उन्हें कुर्सी तक का सफर तय करा दे। बहरहाल सच क्या है? यह तो अजय चंन्द्राकर, स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल और जांच एजेन्सी ही जानेंगे।

सट्टा ही नहीं शिकार के भी शौकीन

सीबाीआई इन दिनों महादेव सट्टा एप मामले में कार्रवाई कर रही है। इसी बीच एक अफसर के जंगली जानवर के शिकार करने के शौकीन होने की बात का भी राज खुलने लगा है। दरअसल यह अफसर बड़े शौकीन हैं, कहते है कि एक बार साहब जंगल शिकार करने निकले और उनकी पिस्टल वहीं छूट गई, फिर क्या तत्कालीन वन अधिकारी के हाथ-पैर जोड़कर मामले को रफा-दफा किया गया। लेकिन राज तो राज होता है, कभी न कभी खुलकर सामने आ ही जाता है। वन अफसर तो इन दिनों रिटायर हो गए हैं, लेकिन वर्दी वाले साहब के राज की परतें खुलने लगी हैं।

 

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