हलचल…टुटेजा के बाद अब किसकी बारी

ये दारी, रेत के बारी

शराब महंगी हो गई, जमीन की रजिस्ट्री में भी 30 प्रतिशत की छूट समाप्त कर दी गई है, कहते हैं कि ये दारी, रेत की बारी है। राज्य की महिलाओं को 1000 रुपये प्रतिमाह और किसानों को धान की अच्छी कीमत देनी है, तो जनता को मंहगाई की मार झेलनी ही पड़ेगी। आखिर राज्य सरकार राजस्व कहां से लाएगी? रास्ते तो खोजने ही पडेंग़े। कुछ हद तक खोज भी लिए गए हैं, इंतजार है तो सिर्फ बारिस का। शराब और जमीन के बाद अब रेत के दाम में उछाल आने की पूरी सम्भावना है। जमीन खरीदना ही नहीं, बल्कि मकान बनाना भी अब महंगा हो सकता है। महानदी को छलनी करने के लिए हाइवाओं की फौज तैयार खड़ी हैं। कहते हैं कि इसके लिए एक पूर्व मंत्री को जबाबदारी भी सौंप दी गई है। पूर्व मंत्री तेजतर्रार हैं और नियमों के जानकार भी। अब देखना यह है कि रेत को लेकर कांग्रेस सरकार की तरह यहां भी हल्ला होगा की सब शांति से निपट जाएगा।

दांव पेंच काम नहीं आया, अब किसकी बारी ?

रिटायर्ड आईएएस अनिल टुटेजा का भ्रष्टाचार से पुराना नाता रहा है। पहलेे नान घोटाले में टुटेजा सुर्खियों में आये। अब एक बार शराब घोटाले में टुटेजा सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं। हालांकि इसके पहले टुटेजा ने खूब दांव पेंच लगाया। वे हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट और न जाने कहां-कहां तक दौड़ लगाते रहे। लेकिन भला यह कैसे हो सकता है कि दांव-पेंच सिर्फ टुटेजा ही लगाना जानते हों? मैदान में और भी प्लेयर हैं जिन्हें दांव-पेंच में महारथ हासिल है। पॉवर का दांव तो तब तक चलता है जब तक सत्ता साथ हो, वरना दांव-पेंच का खेल काम नहीं आता। हुआ भी कुछ ऐसा ही, इस बार टुटेजा का नहीं बल्कि दूसरे साइड का दांव कारगर साबित होते दिख रहा है। फिलहाल टूटेजा ईओडब्ल्यू और ईडी की गिरफ्त में फंसते दिख रहे हैं। कहते हैं कि जब टुटेजा और अन्य के यहां ईओडब्ल्यू और एसीबी ने दबिश दी, तब एक और रिटायर्ड आईएएस ने वाट्सएप के एक खास ग्रुप में जमकर खिल्ली उड़ाई। यहां एसीबी की दबिश और वहां साहब रिलैक्स मोड में चैन की नींद फरमा रहे थे। छापे के बीच में रिलैक्स का मूड हो तो सभी का दिमाग घूमना तय है। खैर टुटेजा के बाद अब किसकी बारी है? इस पर इन दिनों जमकर चर्चा हो रही है।

उत्साही विकास और राजनीतिक जोखिम…

अब तक पूर्व विधायक विकास उपाध्याय की छवि एक लडऩे और जूझने वाले नेता के रुप में रही। विकास उपाध्याय 2018 के विधानसभा चुनाव के पूर्व लड़ते और जूझते नजर आते थे। शायद इसी वजह से विकास को पीसीसी ही नहीं बल्कि एआईसीसी ने भी हांथों-हांथ लिया। विकास उपाध्याय की भूपेश सरकार में भले ही पूछ-परख न रही हो, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें खूब तवज्जो मिली। अब तक विकास उपाध्याय को कांग्रेस ने तीन बार रायपुर पश्चिम से विधायक का प्रत्याशी बनाया। जिसमें विकास का स्कोर 03-01 रहा। यानि की विकास मूणत के सामने दो चुनाव हारे, तो वहीं एक चुनाव में उन्हें सफलता हासिल हुई। अब कांग्रेस ने विकास को एक बार फिर रायपुर से लोकसभा का प्रत्याशी घोषित कर दिया है। किन समीकरणों और हालातों को देखकर विकास को प्रत्याशी बनाया गया है, यह तो कांग्रेस के रणनीतिकार ही जानेंगे। लेकिन विकास उपाध्याय ने बड़ा राजनीतिक जोखिम ले लिया है। रायपुर लोकसभा का मूड देखेंगे तो ज्यादातर यहां का वोटर भााजपा के पक्ष में खड़ा दिखाई देता रहा है। पहले 7 बार के सांसद रमेश बैस फिर सुनील सोनी जैसा नेता यहां से रिकार्ड मतों से चुनाव जीतने में सफल हुए। अब इस बार सुनील सोनी नहीं बल्कि उनके राजनीतिक गुरु कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल चुनावी मैदान में हैं। भाजपा पांच लाख से अधिक वोटों से बृजमोहन की जीत के दावे कर रही है। वास्तव में यदि यह सच हुआ तो विकास का राजनीतिक भविष्य संकट में पड़ जाएगा। मामला 04-01 का हो जाएगा। मतलब चार बार प्रत्याशी बनाने पर सिर्फ एक बार जीत और रिकार्ड मतों से हार का दाग भी। 75 प्रतिशत चुनाव हारने का दाग विकास के माथे पर लगा तो राजनीतिक संकट खड़ा होना स्वाभाविक है। कुल मिलकार विकास उपाध्याय ने उत्साह में बड़ा राजनीतिक जोखिम मोल ले लिया है।

भ्रष्टाचार पर निकला विष्णुदेव का सुदर्शन

विधानसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद इस लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने भ्रष्टाचार को बड़ा हथियार बनाया है। अरविंद केजरीवाल जैसा नेता लोकसभा चुनाव के दौरान सलाखों के पीछे हैं। तो भला बांकी नेताओं की खैर कैसे हो सकती है। भ्रष्टाचार पर सिर्फ मोदी और अमित शाह ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ राज्य के सीएम विष्णुदेव भी काफी आक्रामक दिख रहे हैं। सीएम साय भ्रष्टाचार को लेकर भूपेश बघेल तथा उनकी सरकार में मंत्री रहे नेताओं पर जमकर बरस रहे हैं। साय ने कांग्रेस सरकार में ताकतवर मंत्री रहे डॉ. शिव डहरिया को सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी बताया। वहीं विष्णुदेव साय शराब, महोदव एप, और कोल घोटाले में भी कांग्रेसियों को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। सीएम विष्णुदेव साय यह भली-भांति जानते हैं कि भ्रष्टाचार पर पलटवार करने के लिए फिलहाल कांग्रेसियों के पास कोई मुद्दा नहीें है। इसलिए इन्हें घेरने में कोई कोताही नहीं करनी है। दरअसल में इसके पूर्व जैसे ही भाजपा भ्रष्टाचार के विषयों को सामने लाती थी, तो भूपेश बघेल और कांग्रेसी नेता रमन सिंह पर हमला बोलना चालू कर देते थे। लेकिन अब भूपेश बघेल समेत बाकी नेता भ्रष्टाचार पर पलटवार करने में मजबूर दिखाई दे रहे हैं। इसकी प्रमुख वजह यह मानी जा रही है कि डॉ. रमन सिंह वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष हैं। संवैधानिक पद पर होने के नाते कांग्रेसी चाहकर भी अब रमन पर उंगली नहीं उठा सकते। और विष्णु सरकार ने अपने तीन माह के कार्यकाल में कांग्रेस को ऐसा कोई मौका ही नहीं दिया, जिससे कांग्रेसी नेता पलटवार कर सकें। शायद इसीलिए विष्णुदेव ने भ्रष्टाचार पर अपना सुदर्शन निकाल लिए हैं।

दाग अच्छे हैं

यदि आपका राजनीतिक कैरियर दागदार हो गया है। और जमीन के कारोबार में आप फंस सकते हैं, तो दल बदल लीजिए, दाग अच्छे हो जाएंगे। कहते हैं कि नेताओं को इन दिनों दाग धोने से बेहतर दल बदलना दिख रहा है। आप किसी भी दल के नेता हों, कोयले का काला दाग भी हो, सब धुल जाएगा। जमीन का दाग तो आसानी से उड़ जाएगा। राजनीतिक गलियों में इन दिनों चर्चा छिड़ी हुई है कि एक पूर्व मंत्री जमीन और कोयले का दाग धोने के लिए दल बदलने की तैयारी में हैं। नेताजी भली-भांति जानते हैं कि कपड़ों की धुलाई के लिए तो कई ब्रांन्ड की मशीने मार्केट में मौजूद हैं, लेकिन नेताओं के दाग धोना हो तो फिलहाल देश में एक ही पार्टी मौजूद है। जहां जाने से दाग अच्छे हो जाएंगे। कहते हैं कि नेता जी अपने क्षेत्र में चुनावी प्रचार से भी दूरी बनाए हुए हैं। जिसको देखकर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि देश के किसी बड़े नेता की सभा यहां हुई, तो इसी दरम्यान दाग धुलाई हो सकती है।

चंदा मामा

आप और हम बचपन से ही चंदा मामा की कहानियां सुनते आये हैं। लेकिन चंदे की कहानियां कम ही सुने होंगे। यह कहानी चंदा मामा की नहीं बल्कि चंदे की है। कहते हैं कि एक नेता ने अपने क्षेत्र के व्यापारियों से चुनाव के नाम पर जमकर चंदा वसूली कर लिया। उनको मालूम है की देश तो गांरटी से चल रहा है। यह मौसम बार-बार कहां आयेगा, वसूली कर लिया जाए। चुनावी मौसम में नेता जी ने अपने क्षेत्र के एक-एक पेट्रोल पंप तक को नहीं बख्सा। अब कुछ दिन बाद फिर उनके क्षेत्र में एक बड़ा आयोजन होना था, आयोजन में बड़े-बड़े नेता शामिल होने वाले थे। जाहिर सी बात है फिर से चंदामामा के दरवाजे जाना पड़ेगा। जब आयोजन के लिए लोग चंदामामा के पास गए तो खबर चली कि नेताजी ने तो पहले ही जमकर वसूली कर ली है। यह खबर उपर तक गई, वहीं पार्टी के लिए भी यह निर्वाचन क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है। मामला जातीय समीकरण का जो ठहरा, चुनाव कहीं जातीय समीकरण में फंस न जाए इसलिए उपर से भी खूब धन वर्षा की चर्चा है। नेताजी यह जानते हैं कि गांरटी के दौर में तो नइयां वैसे भी पार लग जाएगी। इसलिए वह चंदामामा की तो दूर पार्टी फंड को भी हांथ नहीं लगाना चाह रहे।

अगड़ा और पिछड़ा में फंस गया राजनांदगांव

राजनांदगांव राज्य की सबसे हाईप्रोफाईल सीट मानी जा रही है। इसके लिए मतदान भी सम्पन्न हो चुके हैं। यहां से पूर्व सीएम भूपेश बघेल और संतोष पांडे के बीच कड़ी टक्कर बताई जा रही है। मतदान के बाद भी इस क्षेत्र के मतदाता खामोश हैं, इसलिए चुनाव परिणाम फिलहाल क्या होंगे कहा नहीं जा सकता। लेकिन मतदान के बाद जो बातें सामने आई हैं, उससे यह कहा जा सकता है कि राजनांदगांव का चुनाव अगड़ा वर्सेस पिछड़ा हो गया है। दरअसल में भूपेश बघेल को राहुल गांधी ने पहले ही कह दिया था कि आपको लोकसभा चुनाव लडऩा है। भूपेश ने मुख्यमंत्री रहते हुए राजनांदगांव में अपनी संभावनाएं टटोलना शुरु कर दिया था। खैरागढ़ को जिला बनाना दरअसल में लोकसभा चुनाव का हिस्सा था। राजनांदगाव में भूपेश को ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़त मिलने के आसार दिख रहे हैं। वहीं शहरी क्षेत्र राजनांदगांव और कवर्धा में संतोष पांडे का पलड़ा मजबूत बताया जा रहा है। भूपेश इस चुनाव में बड़ी ही प्लानिंग के साथ मैदान में उतरे, वह पूरे चुनाव में अकेले ही डटे रहे। अकबर, रविन्द्र चौबे जेसे नेताओं से चुनाव प्रचार तो दूर राजनांदगांव और कवर्धा में घुसने तक नहीं दिया। दरअसल में भूपेश का दांव पिछड़ों और आदिवासियों पर था। संतोष पांडे सवर्ण हैं। इसलिए यह माना जा रहा है कि अगड़ा-और पिछड़ा में राजनांदगांव लोकसभा फंस चुका है।

वोट प्रतिशत बढ़े तब भी भाजपा, घटे तब भी?

लोकसभा चुनाव के दौरान वास्तव में मोदी मैजिक दिखता है। दरअसल में हम यह इसलिए कहना चाहते हैं कि बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों का राजनीतिक मंथन मोदी मैजिक के सामने झूठा साबित हो जाता है। इस बार मोदी और भाजपा 400 पार का नारा दे रहे हैं, सम्भव है पार भी हो जाएं, जमाना मोदी मैजिक का जो है। चुनाव परिणाम तक यह राजनीतिक मंथन चलते रहेगा। चुनावी पंडित भी बड़े अचरज में हैं कि 2014 में रिकार्ड वोटिंग हुई, तब पीएम मोदी का राजतिलक हुआ। 2019 का लोकसभा चुनाव आया पीएम मोदी को जिताने एक बार फिर रिकार्ड वोटिंग हुई। लेकिन 2024 में वैसा उत्साह नहीं दिख रहा? चुनाव आयोग से लेकर निजी संस्थान वोटरों को रिझाने के लिए नए-नए स्कीम नये ऑफर ला रहे, फिर भी वोट प्रतिशत नहीं बढ़ रहा। बढऩा तो दूर, कई जगह वोट प्रतिशत में कमी आना चिंता का विषय है। बहरहाल अब दो चरणों का मतदान सम्पन्न हो चुका है। इस बार 2014 और 2019 जैसा उत्साह वोटरों पर नहीं दिख रहा, लोग घर से नहीं निकल रहे। शायद इसी कारण वोट प्रतिशत में कमी आंकी जा रही है। लेकिन भाजपा और मोदी 400 पार का दावा कर रहे हैं। राजनीतिक पंडित बड़े दुविधा में हैं, वोट प्रतिशत बढ़े तब भी भाजपा और घटे तब भी भाजपा? खैर यह मोदी मैजिक का जमाना हैं, यहां कोई आंकलन और पूर्वानुमान काम नहीं आता।

editor.pioneerraipur@gmail.com

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