हलचल… किसने खोया, किसने पाया ?

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किसने खोया, किसने पाया ?

सुशासन वाली विष्णु सरकार ने एक बार फिर 11 जिले के कलेक्टरों सहित 41 आईएएस अफसरों के प्रभार बदले है। राज्य में भाजपा सरकार बनने के बाद यह दूसरी बड़ी प्रशासनिक सर्जरी है। इसके पहले राज्य में भाजपा की सरकार बनने के ठीक बाद लंबी चौड़ी लिस्ट निकाली गई थी। उस विवादित लिस्ट की गूंज दिल्ली तक पहुँच गई थी। बहरहाल इस लिस्ट में ज़्यादातर नाम निगम मंडलों के अध्यक्षों की पसंद के दिख रहे है। पर इस लिस्ट में किसने खोया और किसने पाया ? पर नजऱ डालेंगे। लंबे समय से लूप लाइन में रहे सर्वेश्वर भूरे को राजनांदगाँव का कलेक्टर बनाकर स्ट्रीम लाइन में लाया गया है। बहुत ही कम समय में किरण कौशल के प्रभार बदल दिये गये हैं। जनक पाठक का साल के भीतर यह तीसरा ट्रांसफर है। अवनीश शरण की जिले से अब राजधानी की ओर वापसी हो चुकी है, उन्हें सरकार ने कोई खास जिम्मेदारी नहीं सौंपी है। शरण को हाउसिंग बोर्ड की कमान सौंपी गई है, बोर्ड के वित्तीय हालात इन दिनों बहुत ठीक नहीं है। मयंक का दबदबा कायम है, दंतेवाड़ा में कलेक्टरी करने के बाद मयंक चतुर्वेदी को रायगढ़ की जिम्मेदारी सौंपी गई है। चंद्रकांत वर्मा, दीपक अग्रवाल, आकाश छिकारा के पर काटे गये हैं। वहीं इंद्रजीत चंद्रवाल को बालोद जिले से हटाकर खैरागढ़ जिले की कमान सौंपी गई है, कुल मिलाकर बड़े जिले से इन्हें छोटे जिले में भेजा गया है। दिव्या मिश्रा और कुणाल दुदावत का कद बढ़ा है। संजय अग्रवाल ने अपने क्रम को बरकरार रखा है। राजनंदगॉव के बाद बिलासपुर का ही क्रम आता है, इसके बाद संभव है संजय अग्रवाल राजधानी कूच करेंगे। कुंदन कुमार और महोबे की एक बार फिर जिला में वापसी हुई है। तारन सिन्हा और उनके अनुभव को देखते हुए उन्हें घर बनाने पर लगाया गया है। इसके साथ ही हाल ही में आईएएस प्रमोट हुए अजय अग्रवाल ने ऊँची छलांग लगाई है, वह बीज निगम के एमडी बनाये गये हैं। वहीं पूर्व मंत्री वरिष्ठ भाजपा नेता ननकीराम कँवर की शिकायत को तवज्जो ना देते हुए सरकार ने कोरबा कलेक्टर अजीत बसंत को अभयदान दिया है।

छत्तीसगढ़ में कौन-कौन नेता बीजेपी से मिले हैं?

कांग्रेस के नेता राहुल गांधी इन दिनों अपनी पार्टी के अन्दर भी सर्जीकल स्ट्राइक करने के मूड में दिख रहे हैं। शायद इसीलिए गुजरात अधिवेशन के दौरान उन्होंने अपने ही पार्टी के नेताओं पर हमला बोला। राहुल गांधी ने साफ शब्दों में कह दिया कि जो भी लोग बीजेपी के साथ मिले हुए है, उनको हमें आईडेन्टीफाई करना है और प्यार से परे करना है। राहुल ने यह भी कहा कि हिंसा से नहीं, नफरत से नहीं, प्यार से साइड करना है और दूसरों को आगे जाने का अवसर देना है। अब सवाल यह उठता है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कौन-कौन से नेता बीजेपी से मिले हुए हैं? इसको कौन आईडेन्टीफाई करेगा? इसका मापदंड क्या होगा? खैर यहां की दास्तां ही कुछ और रही है। स्व. अजीत जोगी छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री रहे, सत्ता गंवाने के बाद वह भाजपा नेताओं के बिलकुल नजदीक नहीं रहे, यहां कोई टेपकांड नहीं हुआ, यहां अंतागढ़ कांड भी नहीं हुआ। पूर्व की भाजपा सरकार के दौरान यहां नेता प्रतिपक्ष भाजपा के खिलाफ सदन से सड़क तक मुखर थे। राहुल जी यहां आपकी पार्टी के नेता प्रतिपक्षों को कभी 13वां मंत्री भी नहीं कहा गया। आपके पार्टी के प्रदेश प्रभारियों ने राजीव भवन से ज्यादा सीएम हाउस में बैठकें भी नहीं लीं। आपके पार्टी के नेताओं और भाजपा नेताओं के बीच यहां कोई व्यापारिक संबंध भी नहीं हैं। तो फिर आप कैसे आईडेन्टीफाई करेंगें? आखिर इसका मापदंड क्या होगाा? प्यार से कैसे परे करेंगें? राहुल जी इसका जबाब भी अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को आपको देना चाहिए।

काश आम जनता के प्रति भी ऐसी तत्परता देखने को मिले

वैसे तो कलेक्टर-एसपी की जोड़ी के चर्चे हमेशा से होते रहे हैं। लेकिन अभी तक यह जोड़ी जिलों में प्रशासनिक कसावट और जनता के प्रति जवाबदेही के लिए चर्चित हुआ करती थी। किसी जिले के पुलिस कप्तान और डीएम मिलकर क्या नहीं कर सकते? कलेक्टर साहब का फरमान हो और कप्तान साहब चुप बैठ जाएं भला ऐसे कैसे हो सकता है। ऐसा ही एक वाक्या हाल ही में सामने आया है, जिसके चलते काफी पुराने मामले में प्रोफेसर साहब को सलाखों के पीछे डाल दिया गया है। कहा जा रहा है कि कलेक्टर साहब और प्रोफेसर साहब के बीच किसी बात को लेकर तनातनी हो गई। फिर क्या इसे वीआईपी कार्यक्रम का चोला पहना दिया गया। कलेक्टर साहब ने जिले के कप्तान को दो टूक कह दिया कि प्रोफेसर को कैसे भी करके अंदर डालो। कप्तान भी दबंग स्टाइल में मूंछों पर ताव देते हुए एक पुराने मामले की फाइल फटाफट खोलवाई और प्रोफेसर साहब को सलाखों के पीछे भेजने का बंदोबस्त कर दिया। कहने का मतलब यह है कि जिले के डीएम और पुलिस कप्तान ने जितनी तत्परता प्रोफेसर साहब को सलाखों के पीछे भेजने में दिखाई, उतनी ही जवाबदेही यदि आम जनता के हितों के प्रति दिखाई जाए तो विष्णु के सुशासन में चार चांद लग जाए। खैर कलेक्टर साहब को रवाना कर दिया गया है, अब कप्तान साहब की बारी है।

बृजमोहन के दांव से फंस गए चौधरी

बृजमोहन अग्रवाल को समझना और उनकी राजनीति को दफन करना इतना आसान नहीं है। बृजमोहन के महज एक दांव से वित्त मंत्री ओपी चौधरी इन दिनों उलझ गए हैं। राजनीति के इस दांव ने मंत्री ओपी चौधरी को राज्य के युवाओं के बीच बेनकाब कर दिया है। युवाओं के बीच ओपी चौधरी के खिलाफ बगावत के बीज बृजमोहन अग्रवाल ने पहले ही डाल दिए थे, जो अब आकार लेने लगा है। शायद इसीलिए राज्य के एक युवा ने सुशासन तिहार में मंत्री ओपी चौधरी को वित्त विभाग से हटाने की मांग की है। युवक का कहना है कि सरकार ने 33000 शिक्षकों की भर्ती का ऐलान किया है। लेकिन वित्त मंत्री ओपी चौधरी इसकी फाइल रोक रखे हैं। इसलिए उन्हें वित्त विभाग से हटा देना चाहिए। बेराजगार युवा की बात में गहराई तो है और सच्चाई भी। दरअसल तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने विधानसभा सत्र के दौरान शिक्षकों की भर्ती का सदन में ऐलान किया था। अब यह प्रक्रिया कहां तक पहुंची, इसका जवाब राज्य के युवाओं को देना ही पड़ेगा। इस मामले को कुछ दिनों तक के लिए टाला तो जा सकता है, लेकिन भूलाया नहीं जा सकता। आज नहीं तो कल शिक्षकों की भर्ती पर जवाब तो देना पड़ेगा, जवाबदेही भी तय करनी पड़ेगी। दरअसल शिक्षकों की भर्ती का ऐलान किसी राजनीतिक रैली में या राजनीतिक सभा में नहीं किया गया है। यह घोषणा विधानसभा में की गई है, वो भी तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अगवाल ने की है। बृजमोहन तो अब मंत्री नहीं है, लेकिन उनके इस दांव ने वित्त मंत्री ओपी चौधरी को उलझा दिया है। वित्त मंत्री ओपी चौधरी इन दिनों 33 हजार शिक्षकों की भर्ती पर जवाब देने की स्थिति में नहीं हैं। उनके खिलाफ बेरोजगार युवा मोर्चा खोलने को तैयार बैठे हंै। सुशासन तिहार में वित्त मंत्री चौधरी को हटाने की मांग यह चीख-चीख कर बयां कर रही है कि बृजमोहन जो चाहतेे थे उस पर वह कामयाब हो गए हैं। यह बात दूर-दूर तक पहुंच चुकी है कि ओपी चौधरी ने ही शिक्षकों की भर्ती को रोक रखा है। खैर सरकार इस मामले पर क्या फैसला लेती है यह तो निकट भविष्य में स्पष्ट होगा। लेकिन बृजमोहन अग्रवाल के दांव से मंत्री ओपी चौधरी बाहर निकल पायेंगे इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता।

पदभार ग्रहण नहीं, पदभार ग्रहण समारोह

हाल ही में भाजपा सरकार ने 36 निगम मण्डलों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष की नियुक्तियां की है। इस बार निगम मंडल में मंत्री और सांसद रहे नेताओं को भी जगह दी गई है। अब कद बड़ा तो पदभार भी बड़ा, तरकीब निकाली गई। सम्भवत: इसीलिए नवनियुक्त अध्यक्षों ने कार्यालय में होने वाले औपचारिक पदभार ग्रहण को पदभार ग्रहण समारोह बना दिया गया है। अब नव नियुक्त अध्यक्ष अपने-अपने कार्यालय में पदभार ग्रहण करने के बजाय बड़े-बड़े मैदानों, फाइव स्टार होटलों, आडिटोरियम में पदभार ग्रहण समारोह करते नजर आ रहे हैं। खैर कार्यकर्ताओं के बीच उत्सव मनाने का यह दिन है, पंडालों, मैदानों, होटलों ऑडिटोरियम में पदभार ग्रहण समारोह से किसी को आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए। लेकिन हद तो तब हो गई जब एक नेता जी ने पुलिस परेड ग्राउंड में पदभार ग्रहण करने की इच्छा जता दी। इच्छाओं का क्या वह तो अनंत है। नेता जी के सलाहकार ने समझाया कि अभी तक यहां मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह होते रहे हैं। ऐसे में कार्यालय में पदभार ग्रहण करने के बजाय, पुलिस परेड ग्राउंड में पदभार ग्रहण समारोह करना कितना उचित होगा? सलाहकार के सलाह पर नेता जी ने फौरन अपना फैसला बदल दिया।

विधेयकों को लेकर हलचल

राज्यपाल के पास लंबित विधेयक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद छत्तीसगढ़ में भी इसकी हलचल दिख रही है। यहां भी तकरीबन आधा दर्जन से अधिक विधेयक राजभवन में लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद छत्तीसगढ़ के राजभवन में दबाव बढऩा स्वाभाविक है। कहा जा रहा है कि राज्यपाल लगातार इस मामले में अपने विधिक सलाहकार से चर्चा कर रहे हैं। राज्यपाल ने इसके लिए अंतिम अभिमत भी मांगा है। वहीं इस पर अगली कार्रवाई 20 अप्रैल के बाद होने के संकेत हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यहां लंबित विधेयकों पर लगातार मंथन किया जा रहा है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने बीते सप्ताह तमिलनाडू सरकार की याचिका में वहां के राजभवन में रोके गए विधेयकों को मंजूर कर कानून मान लिए जाने का फैसला सुनाया है। इस फैसले के बाद कांग्रेस छत्तीसगढ़ में भी रुके हुए विधेयकों पर फैसला लेने की लगातार मांग कर रही है। संभव है इस मामले में राज्य कांग्रेस अलग से भी कोर्ट जाने का रुख अख्तियार कर ले। जिसको देखते हुए छत्तीसगढ़ राजभवन में लंबित विधेयकों पर राज्यपाल द्वारा जल्द फैसला लिया जा सकता है। लंबित विधेयकों में से भूपेश सरकार द्वारा पारित ओबीसी आरक्षण संशोधन विधेयक, तीन कृषि कानून संशोधन विधेयक वहीं इसके साथ ही रमन सरकार में पारित कुछ विधेयक शामिल हैं।

तेंन्दुपत्ता घोटाले की आंच मुख्यालय तक

तेन्दूपत्ता बोनस घोटाले की जांच में ईओडब्ल्यू परतें खोलना शुरु कर दी हैं। ईओडब्ल्यू एसीबी ने डीएफओ अशोक पटेल को तेन्दूपत्ता बोनस घोटाले में गिरफ्तार किया है। अब अशोक पटेल से ईओडब्ल्यू पूछताछ कर घोटाले से पर्दा उठाएगी। इस बीच मनीष कुंजाम ने वन विभाग के बड़े अफसरों की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं। कुंजाम ने अरोप लगाया है कि वन विभाग के एक बड़े अफसर ने जिला पंचायत चुनाव के दौरान भाजपा के पक्ष में वोट डालने और मामले को दबाने का दबाव बना रहे थे। खैेर आरोपों में कितना सच्चाई है? यह तो ईओडब्ल्यू की जांच में सामने आ ही जाएगा। लेकिन इस बीच तेन्दुपत्ता घोटाले की आंच वन मुख्यालय तक पहुंच चुकी है।

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