हलचल… असली खिलाड़ी कौन?

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एक तीर से कई निशाने

राजनीति में हर एक चाल बहुत सोच-समझकर चली जाती है। वैसे तो भाजपा अपने निर्णय से हमेशा लोगों को चौंकाते रही है। लेकिन हर निर्णय के पीछे बीजेपी की एक बड़ी चाल रहती है। सरोज पांडे के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। दरअसल में सरोज पर आरोप है कि उनसे साहू समाज के लोग काफी रुष्ठ रहते हैं। दुर्ग लोकसभा में इस वर्ग का काफी प्रभाव है। यदि सरोज को दुर्ग से टिकट दिया गया तो साहू समाज उन्हें हरा देगा, वहीं यदि कहीं से उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो सरोज दुर्ग प्रत्याशी विजय बघेल के लिए मुसीबत खड़ी कर देंगी। ऐसे में भाजपा ने एक तीर से दो नहीं बल्कि कई निशाने साधते हुए सरोज पांडे को कोरबा से लोकसभा प्रत्याशी घोषित कर दिया है। सरोज पांडे को कांग्रेस की कब्जे वाली सीट से प्रत्याशी घोषित किया गया है। अब भाजपा को खोना कुछ नहीं है सिर्फ पाना है। दरअसल में कोरबा सीट से डॉ. चरणदास की धर्मपत्नि ज्योत्सना महंत सांसद हैं। इसके पूर्व महंत भी यहां से चुनाव जीतते रहे हैं। कुल मिलाकर कोरबा सीट कांग्रेस के खाते में रही है। यदि ऐसे में सरोज चुनाव जीतने में कामयाब होती हैं तो उनका केन्द्रीय मंत्री बनना तय है। वहीं यदि हारती हैं, तो यह सीट तो वैसे भी कांग्रेस की प्रभाव वाली सीट है।

बृजमोहन सांसद, मूणत मंत्री ?

कहते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद रायपुर पश्चिम विधायक राजेश मूणत के दिन लौटने वाले हैं। दरअसल में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को भाजपा ने रायपुर से लोकसभा प्रत्याशी घोषित कर दिया है। लोकसभा में बृजमोहन को उतारना मतलब अब राज्य की राजनीति के बाद बृजमोहन केंन्द्र की ओर रुख करने जा रहे हैं। वहीं बृजमोहन के लोकसभा जाते ही मूणत का रास्ता साफ हो जाएगा। मूणत को मंत्रीमंडल में जगह मिल सकती है। दूसरी ओर लोकसभा चुनाव के दौरान राजेश मूणत को जांजगीर-चांपा की जिम्मेदारी सौंपी गई है। मूणत लगातार जांजगीर में पसीने बहा रहे हैं। यह भी डॉ. चरणदास महंत की प्रभाव वाली सीट है। विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस सिर्फ इसी बेल्ट में मजबूत होकर उभरी है। ऐसे में मूणत के सामने भी चुनौती कम नहीं है, इस सीट को जीताकर वह अपना मंत्री पद सुनिश्चित करना चाहेंगे।

‘बी’ टीम के एहसान में दबे मंत्री

कहतेे हैं राज्य के एक मंत्री टीम ‘बी’ के एहसानों के बोझ तले दबे हुए हैं। शायद इसीलिए उनके गृह जिले के एसपी और कलेक्टर तक को नहीं बदला गया है। यह भी कहा जा रहा है कि पूर्व की सरकार में काम किये हुए एक कांग्रेसी नेता के बिल क्लियर न हो जाने तक यहां पर अफसरों को डिस्टर्ब न करने का मौखिक आदेश है। एक जमाने में धुर विरोधी रहे इन दोनों नेताओं की मिली-जुली कुश्ती को जनता बहुत करीब से देख रही है। विधानसभा चुनाव के दौरान यहां से कांग्रेसी विधायक की टिकट काट दी गई। क्षेत्र के एक प्रभावी नेता के समर्थक को टिकट दे दी गई, टिकट कटने से कोंग्रेसी विधायक ‘बी’ टीम के रूप में भाजपा प्रत्याशी का भरपूर सहयोग किया। नेता जी चुनाव जीतने में सफल हो गए, आज वह मंत्री हैं। लेकिन एहसान इतना है कि उसे तो चुकाना ही पड़ेगा। ‘बी’ टीम का एहसान उतारने वह बेहद व्यस्त हैं। मंत्री जी चुनाव जीतने के बाद सिर्फ एक-दो बार ही क्षेत्र पहुंच सके। स्वागत, अभिनंदन के बाद उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र से जो दूरी बनाई कि वह आज दो माह उपरांत तक अपने निर्वाचन क्षेत्र में पांव नहीं रखे। इस बीच जनता फिर उनके स्वभाव के मूल्यांकन में जुट गई है। अन्दरखाने से आवाज आने लगी है कि सत्ता से बाहर रहने के बाद भी सुधार नहीं हुआ। ऐसा ही चलता रहा तो आगे राम ही मालिक हैं।

वो जल्दी में थे, चले गए

15 साल बाद राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी, मंत्री पद पाते ही नेता अपने काम-धाम में जुट गए। उनके विभागों में खुला भ्रष्टाचार तो हुआ ही, सरकारी जमीनों, मकानों और भवनों को भी मंत्रियों ने नहीं छोड़ा। सत्ता का नशा ऐसा चढ़ा कि सरकार मानो पांच साल के लिए नहीं, पचास साल के लिए बनी है। एक मंत्री की पत्नी ने निगम क्षेत्र के सामुदायिक भवन को कब्जा कर आलीशान रहवास व अफिस बना दिया। वहीं एक कांग्रसी मंत्री ने चारागाह की जमीन पर कब्जा कर कुटीर बना दिया। पांच साल पूरा हुआ कि मंत्री के परिवार को कब्जे वाले भवन से बोरिया बिस्तर समेटकर भागना पड़ा। वहीं दूसरे कांग्रेसी मंत्री इतने जवाबदार हैं कि उन्होंने मीडिया में पूरी जवाबदारीपूर्वक बयान दिया कि हमने सरकारी उपयोग के लिए कुटीर बनाया है। उनकी ईमानदारी तो देखिए उन्होंने यह भी कहा कि इस पर न ता अवैध कब्जा है, न हमने पट्टा लिया है। सरकार चाहे तो निर्माण तोड़कर जमीन वापस ले सकती है। हालांकि इस भवन का नाम बस कुटीर है, यह करोड़ों की लागत से बनाया गया आलीशान निर्माण है। सवाल यह उठता है कि राज्य के मंत्री संविधान के दायरे से बाहर हैं क्या? वह सरकारी जमीनों का मनमानी उपयोग व कब्जा कर सकते हैं? निर्माण करा सकते हैं क्या? शायद नहीं। खैर वो जल्दी में थे, इसलिए चले गए। अब भाजपा सरकार को तय करना है कि कब्जे वाले कुटीर को तोडऩा है, कि आगे भी अन्य मंत्री ऐसे ही नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए सरकारी जमीनों, भवनों को हथियाने का काम करेंगे।

शराब घोटाले का सच क्या?

राज्य में कई करोड़ रुपये का शराब घोटाला हो गया, कई लोग इस मामले में जेल में बंद हैं। एक राष्ट्रीय एजेन्सी मामले की जांच कर रही है। लेकिन शराब मामले में सरकार के वक्तव्य को पढेंग़े या सुनेंगे तो ऐसा लगता है कि आबकारी विभाग से साफ-सुथरा कोई सिस्टम नहीं हैं। दरअसल में विधानसभा सत्र के दौरान एक भाजपा सदस्य के ध्यानाकर्षण में जो जवाब सरकार की ओर से आया है, उससे यह लगता ही नहीं कि यहां पर कोई शराब घोटाला हो सकता है, या किसी घोटाले की कोई गुजांइस है। हालांकि भाजपा सदस्य का ध्यानाकर्षण कुछ स्पेसिफिक विषय को लेकर था। लेकिन सरकार के जवाब के कुछ बिंदुओं को पढेंग़े, तो यहां घोटाले की कोई गुजांइस दूर-दूर तक नहीं दिखती । पूरा सिस्टम पारदर्शी है, फिर अवैध शराब कहां से दुकानों में पहुंच गई। और करोड़ों का घोटाला कैसे हो गया? खैर सच क्या है? यह तो जांच एजेन्सी और राज्य सरकार ही जानेगी।

असली खिलाड़ी कौन?

छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल में वसूली के आरोपों के चलते ईडी ने नवा रायपुर स्थित मुख्यालय में दबिश दिया था। कहते हैं यह बोर्ड वसूली का केन्द्र बना हुआ है। आरोप कितना सच, कितना झूठ यह तो जांच का विषय है। लेकिन इस बीच कुछ दस्तावेज सामने आये हैं जिसमें इंड्रस्ट्रियों को हर एक-दो माह के अंतराल नोटिस जारी किया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक माह के भीतर प्रदूषण की स्थिति सुधर भी जाती है। और एक माह बाद फिर बिगड़ जाती है। यह खेल खुले रुप से चल रहा है। एक इंड्रस्ट्री को तकरीबन एक साल में तीन बार नोटिस दी गई है। यह सिलसिला लगातार चलते रहा। इस इंड्रस्ट्री में 06.06.2022 को वायु प्रदूषण की स्थिति पाई गई, विभाग ने नोटिस जारी किया। 05.07.2022 को नोटिस के बाद सुधारात्मक कार्यवाही की गई, अब स्थिति साामान्य हो गई। फिर उसी इंड्रस्ट्री में 26.12.2022 को पुन: प्रदूषण की स्थिति पाई गई। 10.01.2023 को इंड्रस्ट्री की स्थिति फिर सुधर गई। अब 26.12.2023 को एक बार फिर उसी इंड्रस्ट्री में वायु प्रदूषण की स्थिति पाई गई, फिर नोटिस जारी हुआ। 12.01.2024 को फिर स्थिति सुधर गई। हर माह नोटिस और तुरंत सुधारात्मक कार्यवाही को देख लोग आश्चर्यचकित हैं। बहरहाल इस खेल का असली खिलाड़ी कौन है?

बेजुबानों को न्याय कब

पूरे विधानसभा सत्र के दौरान वन्य जीवों की मौत का मामला गूंजता रहा। सत्र के आखिरी दिन भी चौसिंगाओं की मौत का मामला सदन में गूंजा। नेता प्रतिपक्ष ने सदन में यह भी कह दिया कि मेरी वन मंत्री के प्रति कोई दुर्भावना नहीं। लेकिन इस मामले पर कार्रवाई अध्यक्ष जी के उपर छोड़ता हूं। सत्र के आखिरी दिन स्वयं विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कह दिया कि 3-3 साल तक सस्पेंड रहे डाक्टर को जंगल सफारी में रखे क्यों हैं? किसी अच्छे को भेजिए। इतना सब कुछ होने के बाद भी विभाग के अफसर कह रहे हैं कि यह सब होता रहता है। जाओ घूमकर आओ। कहते हैं कि डाक्टर साहब को साउथ अफ्रीका भेजने की तैयारी है। खैर यह कब तक, बेजुवान जानवरों को न्याय कब मिलेगा। मामले में कब कार्रवाई होगी। तीन-चार माह बाद फिर विधानसभा का मानसून सत्र होगा। सवाल फिर खड़े होंगे? नेता प्रतिपक्ष अपनी अर्जी पर फिर अध्यक्ष से गुहार लगाएंगे। कोई वन्य जीव प्रेमी फिर बेजुबान जानवरों के लिए आवाज बुलंद करेगा।

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