हलचल…मंत्री पद के लिए माथापच्ची

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अलग-थलग पड़े अनिल साहू
और आलोक कटियार

राज्य सरकार ने आचार संहिता लगने से एक दिन पहले 36 आईएफएस अफसरों की तबादला सूची जारी की है। जिसमें कई वनमंडलाधिारियों के साथ-साथ सीनियर अफसरों के विभाग में भी फेरबदल किया गया है। तबादला सूची देखकर यह कहा जा सकता है कि पीसीसीएफ व्ही. श्रीनिवास राव के विरोधी खेमा को नई सरकार में भी कोई खास तवज्जों नहीं दी गई। सीनियर आईएफएस अनिल साहू वनबल प्रमुख बनने के लिए जुगत में थे, लेकिन उन्हें किनारे कर दिया गया है। वहीं आलोक कटियार को भी कोई खास जगह नहीं मिल पाई है। ट्रांसफर लिस्ट देखकर यह कहा जा सकता है कि व्ही श्रीनिवास राव ने इस सरकार में भी अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। इससे पहले अनिल राय के वनबल प्रमुख बनने की खबरें सुर्खियां में थीं, लेकिन इस लिस्ट ने तामाम अटकलों पर विराम लगा दी है। अनिल राय अब मई में रिटायर हो जाएंगे।

छवि गढ़ेंगे

हाल ही में हुए कलेक्टर और पुलिस अधीक्षकों की मीटिंग में सीएम साय ने साफ तौर पर कहा कि कलेक्टर और एसपी सरकार की छवि गढ़ते हैं। सीएम ने दो टूक कहा लटकाने, भटकाने का काम छोड़ दें। हालांकि इससे पहले भूपेश सरकार पर आरोप लगते रहे कि जिलों के रेट फिक्स हैं, भाजपा के तमाम बड़े नेता यह कहते नजर आते थे कि कलेक्टर का इतना रेट और एसपी का इतना रेट फिक्स है। खैर सत्यता क्या है यह तो भाजपाई नेता और पुरानी सरकार के नेता ही जानेेंगे। लेकिन कांग्रेस सरकार के करीबी रहे कई अफसर अब सुशासन वाली विष्णुदेव सरकार में भी बड़े-बड़े जिलों की कमान सम्भाल रहे हैं। यह अफसर विष्णु सरकार की छवि कैसी गढ़ते हैं, यह तो कुछ माह बीतने से ही स्पष्ट हो सकेगा।

मंत्री पद के लिए माथापच्ची

बृजमोहन अग्रवाल को लोकसभा का प्रत्याशी घोषित करते ही, मंत्री पद के लिए जमकर माथापच्ची चल रही है। यह माना जा रहा है रिक्त पदों में जाति के साथ-साथ क्षेत्र के संतुलन का भी ख्याल रखा जाएगा। वर्तमान में रायपुर सम्भाग से दो मंत्री है, जिसमें रायपुर दक्षिण से बृजमोहन अग्रवाल और बलौदाबाजार से टंकराम वर्मा के नाम शामिल हैं। बृजमोहन के केन्द्र में जाने से रायपुर संभाग में से सिर्फ एक मंत्री और राजधानी रायपुर में यह संख्या शून्य हो जाएगी। ऐसे में राजधानी रायपुर के समुचित विकास के लिए रायपुर के चार में से किसी एक विधायक को मंत्री पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है। जातीय और क्षेत्रीय संतुलन की दृष्टि से राजेश मूणत फिलहाल फिट बैठ रहे हैं। हालांकि जनसंख्या की दृष्टि से राज्य में साहू समाज दूसरा बड़ा वर्ग है। इस वर्ग से वर्तमान में सिर्फ उपमुख्यमंत्री अरुण साव को मौका मिल पाया है। वहीं रिक्त मंत्रीपद के लिए अजय चंन्द्राकर के नाम पर भी विचार किया जा रहा है, लेकिन ओबीसी कोटे से पहले ही ओपी चौधरी, टंकराम वर्मा, श्यामबिहारी जायसवाल, लखनलाल देवांगन, और अरुण साव के नाम शामिल हैं। ऐसे में अजय चंन्द्राकर का शायद ही नम्बर लग पाये। वहीं अमर अग्रवाल के नाम पर भी मंथन में यह बात सामने आ रही है कि उपमुख्यमंत्री अरुण साव लोरमी से हैं और बिलासपुर से अमर को मंत्री बानाया जाएगा तो भाजपा में खेमेबाजी हो जाएगी। खैर राजनीति में सब संभव है। इसके साथ ही दुर्ग सम्भाग से सिर्फ एक मंत्री उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा है, चूंकि विजय सामान्य वर्ग से आते हैं, ऐसे में संघ पृष्ठभूमि से गजेन्द्र यादव का नाम भी सामने आ रहा है। बहरहाल मंत्री पद जिसे भी मिले लेकिन पार्टी के अन्दर इसके लिए जमकर माथापच्ची चल रही है।

रमन 3 की यादें संजोए रखिए

छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की विदाई को लेकर विभिन्न कारणों में से एक सबसे महत्वपूर्ण कारण था, बेलगाम अफसरशाही। रमन 2 तक सब ठीक चला, 3 आते ही अफसरशाही बेलगाम हो गई, नतीजन राज्य में भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी। भूपेश सरकार में भी कमोवेश यही चला, अफसरों ने पांच साल में अंधेरगर्दी मचा दी, नतीजन आईएएस अफसरों का नया ठिकाना जेल बन गया। भ्रष्टाचार के आरोप में कई अफसर सलाखों के पीछे हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में भाजपा से बढ़चढ़ कर घोषणाएं की थीं, लेकिन जनता ने कांग्रेस से करोड़ों का लाभ लेना उचित नहीं समझा और भाजपा को फिर यहां मौका दिया। इसलिए छत्तीसगढ़ की राजनीतिक तासीर को देखते हुए, रमन 3 की यादों को संजोए रखने की जरुरत है।

निराशा और हतासा की ओर कांग्रेस

कांग्रेस में कभी अजीत जोगी और विद्याचरण शुक्ल जैसे कद्दावर नेता हुआ करते थे। उनके बाद नंदकुमार पटेल के नेतृत्व में कांग्रेस एकजुट होकर उठ खड़ी हुई। झीरम की घटना में कांग्रेस की पूरी लीडरशिप खत्म हो गई। कुछ महीनों के लिए डॉ. चरणदास महंत को राज्य की कमान मिली, फिर भूपेश बघेल को पीसीसी चीफ बना दिया गया। भूपेश का पीसीसी चीफ के रुप में कार्यकाल बेहद सफल रहा। भूपेश के नेतृत्व में राज्य में कांग्रेस की सरकार बन गई। दरअसल में भूपेश विपक्ष के लीडर के लिए एकदम फिट रहे, सत्ता और सरकार में वह अपने आप को उसके अनुरुप ढाल नहीें पाये। अब एक बार फिर कांग्रेस लीडर विहीन होते दिख रही है, कांग्रेस के सभी नेता हासिए में जाते दिख रहे हैं। भूपेश सरकार के मंत्रियों में गंभीरता नहीं दिखी, नतीजन 80 प्रतिशत मंत्री चुनाव हार गए। सिर्फ दो आदिवासी मंत्री जिसमें कवासी लखमा और अनिला भेडिय़ा ही चुनाव जीत सकीं। अब लोकसभा चुनाव में पूर्व सीएम भूपेश बघेल स्वयं प्रत्याशी हैं, वह पहले अपनी सीट देखेंगे उसके बाद अन्य सीटों पर ध्यान दे सकेंगे, वहीं हाल महंत का है, नेताप्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत कोरबा से बाहर का सोच नहीं सकते। ताम्रध्वज साहू प्रदेश की राजनीति तो दूर, साहू समाज की अपेक्षाओं में भी खरे नहीं उतर सके। शिव डहरिया और अमरजीत भगत का जमीन प्रेम जगजाहिर है। ऐसे में कांग्रेस एकबार फिर निराशा और हतासा की ओर आगे बढ़ रही है।

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