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निशाने पर साव ?
विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव भी सम्पन्न हो चुके हैं। दोनों चुनाव सम्पन्न होने के बाद अब राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का दौर शुरु हो चुका है। कांग्रेस के सत्ता में रहते हुए भाजपा ने अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। साव के अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान राज्य में भाजपा की सत्ता में वापसी हुई। शायद इसीलिए कहीं न कही अरुण साव अपने आप को प्रथम पंक्ति में उपर दर्जे का नेता मानते हैं। राज्य का उपमुख्यमंत्री होने के नाते वह स्वाभाविक रुप से उपर दर्जे के नेता हैं भी। लेकिन हर जगह यह दर्जा दिखाना उनको भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। दरअसल में साव ने इसकी शुरुआत शपथ ग्रहण समारोह से ही कर दी थी। 1३ दिसम्बर 2023 को मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उपमुख्यमंत्री द्वय को जब मोदी ने मंच में जनता के सामने अभिवादन के लिए खड़ा किया, तब साव ने बराबरी का दर्जा होने के बावजूद भी उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा की कमर पकड़कर उन्हें किनारे खिसका दिया और वह स्वयं विजय शर्मा के स्थान पर, यानि कि पीएम मोदी के बगल में खड़े हो गए। साव और विजय दोनों ने एक ही साथ, एक ही पद की शपथ ली, दोनों एक ही पंक्ति के नेता हैं, लेकिन अरुण साव ने विजय शर्मा को मोदी से दूर खिसकाकर यह मैसेज देने की कोशिश कि वह प्रथम पंक्ति में उपर दर्जे के नेता हैं। कहते हैं कि तब से यह सिलसिला कई दफा देखने को मिलता रहा। लेकिन तोखन साहू की ताजपोशी कहीं न कहीं अरुण साव पर नियंत्रण करने की राजनीतिक कोशिश दिखाई दे रही है। दरअसल में मोदी मंत्रीमंडल में जिन तोखन साहू को जगह दी गई है, वह अरुण साव के क्षेत्र से ही आते हैं, इसी समाज का तोखन भी प्रतिनिधित्व करते हैं। जाहिर सी बात है तोखन का कद बढऩे से इस क्षेत्र में राजनीति के दो पॉवर सेंटर तैयार हो जाएंगे। यही नहीं इस बीच पूर्व सांसद लखनलाल साहू भी काफी सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। इसका उदाहरण लखनलाल साहू के गांव फरहदा में दिखाई दिया। सामाजिक कार्यक्रम के बहाने ही लखनलाल साहू ने पूरी सरकार को मुंगेली के ग्राम फरहदा में उतार दिया। लखनलाल भी यह दिखाने की कोशिश में लगे हैं कि उनकी राजनीतिक और सामाजिक पकड़ आज भी किसी से कम नहीं हैं। लखन, तोखन और अरुण तीनों नेताओं का क्षेत्र एक ही है। इसके साथ ही पुन्नुलाल मोहिले की अरुण साव से दूरी जग जाहिर है। यह तमाम राजनीतिक समीकरण कहीं न कहीं यह बयां कर रहे हैं, कि साव राजनीतिक रुप से निशाने पर हैं।
बृजमोहन का क्या?
बृजमोहन अग्रवाल को राज्य का कद्दावर नेता माना जाता है, कई दफे उन्होंने यह साबित भी किया कि वे वास्तव में कद्दावर नेता हैं। विधानसभा चुनाव में बृजमोहन अग्रवाल ने रिकार्ड मतों से चुनाव जीता। लोकसभा चुनाव में देशभर में उनकी सातवीं सबसे बड़ी जीत हुई। लेकिन मोदी और शाह को भी यह पता है कि कद्दावर का कद कैसे कम किया जाता है। शायद इसीलिए उन्होंने बृजमोहन को सांसद बनाकर छोड़ दिया। लेकिन बृजमोहन जैसे जीवट नेता राजनीति में विरले मिलते हैं। कद रहे, या न रहे, पद रहे या न रहे, बृजमोहन हर मोर्चे पर डटे दिखाई देते हैं। बृजमोहन अपने वर्तमान हालातों से भली-भांति वाकिफ हैं लेकिन वह अपने कार्यकर्ताओं का जोश कम नहीं होने देना चाहते, वह सांसद बनने के बाद भी पब्लिक के बीच एक सस्पेंस बनाए हुए हैं। लोगों के बीच चर्चा छिड़ी हुई है कि बृजमोहन सांसदी से इस्तीफा देंगे कि विधायकी से। देश के कई सीटों पर उपचुनाव के ऐलान हो चुके हैं। लेकिन बृजमोहन ने अभी तक विधायकी से इस्तीफा न देकर अपने आप को चर्चा में बनाकर रखा है। बहरहाल बृजमोहन का क्या होगा इसका खुलासा 17 या 18 जून को हो जाएगा।
बलौदाबाजार का दाग
यह बात बिलकुल सही है कि छत्तीसगढ़ जैैसे शांत प्रदेश में बलौदाबाजार जैसी घटना का अंदाजा किसी को नहीं था। शायद इसीलिए जिले के एसपी और कलेक्टर इसमें समय पर एक्शन लेने से चूक गए। पर दाग तो दाग होता है। बलौदाबाजार की घटना अब तक के इतिहास की सबसे बड़ी घटना साबित हुई। इससे पहले यहां ऐसा कभी नहीं हुआ था। सबको सुरक्षा देने वाला प्रशासन (कलेक्टर, एसपी कार्यालय) यदि खुद जलकर खाक हो जाए, तो सवाल तो उठेंगे ही। घटना किन कारणों से हुई? हालात क्या थे? यह अलग बात है, लेकिन घटना तो घटित हुई, इसको झुठलाया नहीं जा सकता। बलौदाबाजार की घटना ने कभी कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करने वाली भाजपा सरकार को खुद कटघरे पर खड़ा कर दिया है। किसी भी सरकार का औरा काम करता है, वरना तो हर कलेक्टर और एसपी कार्यालयों में 2-4 गार्ड ही तैनात रहते हैं। यदि सरकार इस घटना के लिए उपद्रवियों को जिम्मेदार मानती है तो, उनमें इतना साहस कहां से आ रहा। क्या पुलिस और प्रशासन का भय समाप्त हो रहा है? क्या मुख्यालय में बैठे अफसरों से लेकर फील्ड तक के अफसर जनता से दूरी बनाकर रखे हुए हैं? घटना की खबर तब लगती है जब वारदात हो जाती है। इस चूक ने सिर्फ एसपी- कलेक्टर ही नहीं बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा कर दिया है।
रेत से तेल निकालना नहीं, रुपया निकालना
रेत से तेल निकालना तो सभी ने सुना होगा, लेकिन रेत से रुपया निकालना किसी ने नहीं सुना होगा। इस समय रेत से जमकर रुपया निकाला जा रहा है। दरअसल में बारिश के मौसम में एनजीटी के गाइड लाइन के तहत 15 अक्टूबर तक के लिए रेत घाट बंद कर दिए गए हैं। लेकिन यह बंद सिर्फ कागजों पर हुआ है, चारों ओर अवैध रेत खनन तो चल ही रहा है। इस दौरान रेत का जमकर भंडारण भी कर दिया गया है। रेत का भंडारण कर मनमौजी रेट बढ़ा दिया गया है। इसलिए रेत से तेल निकालना अब सिर्फ मुहावरा नहीं बचा, अब रेत से जमकर रुपया भी निकाला जा रहा है।
ट्रेजर आईलैड का विवादों से नाता
राजधानी के जोरा में कई करोड़ों की लागत से बने ट्रेजर आइलैड मॉल का विवादों से नाता छूटने का नाम नहीं ले रहा। कई वर्षों तक खंडहर की भांति पड़े ट्रेजर आईलैड को फिर मूर्त रुप दिया जा रहा है। कोरोनाकाल से ही इसके अन्दर-अन्दर दबे- छिपे काम चालू था। कहते हैं कि खंडहर में तब्दील हो रहे इस मॉल को एक रिटायर्ड आईएएस ने खरीद लिया है। पिछली सरकार में यह काफी प्रभावशील अफसर माने जाते थे। कापी रुपया खर्च करने के बाद यह बात सामने आ रही है कि ट्रेजर आईलैड का 2013 से लेकर 2023 तक का कुल टैक्स 15 करोड़ बकाया है। लेकिन इसे 2.39 करोड़ में शैटेल कर लिया गया। खैर एक बार फिर शुरु होने से पहले ट्रेजर आईलैण्ड विवादों से घिरता नजर आ रहा है। विवाद सामने आने के बाद यह कहा जा रहा है कि कौन वह प्रभावशील अफसर थे? जिनके भय से टैक्स की राशि 15 करोड़ को 2.39 करोड़ में शैटेल कर दिया गया।
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