हलचल… रमन मंत्रिमंडल के सिर्फ 3 मंत्री जीते थे चुनाव, भूपेश मंत्रिमंडल का क्या ?

thethinkmedia@raipur

चक्रव्यूह में फंस गए अरुण साव?

भाजपा में जिस तरह से अरुण साव को जिम्मेदारी दी गई वह सबको आश्चर्यचकित करने वाली थी। एक बार के संासद रहे साव को राज्य भाजपा का अध्यक्ष बना दिया गया। साव अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में कुछ खास तो नहीं कर पाये, वह विधानसभा चुनाव में भी बुरी तरह फंसते नजर आ रहे हैं। दरअसल में साव को जिस तरह से पार्टी के केन्द्रीय नेताओं ने तवज्जो देना चालू कर दिया था उससे यह संकेत हो चुका था कि यदि राज्य में भाजपा की सरकार आई तो वह सीएम पद के दोवदार हो सकते हैं। कहते हैं कि साव बिलासपुर विधानसभा सीट से चुनाव लडऩा चाहते थे, लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों ने उन्हें लोरमी से उतार दिया। लोरमी में उनके सामने कांग्रेस ने भी पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष थानेश्वर साहू को मैदान में उतारा है। दोनों दल के प्रत्याशी एक ही समाज से आते हैं इसलिए लोरमी में साहूओं के वोट बंटने के पूरे आसार हैं। वहीं इस क्षेत्र में एससी वोटरों की संख्या अच्छी खासी है। राज्य में एससी वोटरों का झुकाव जादातर कांग्रेस की ओर देखा जाता रहा है, ऐसे में अरुण साव राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रहे हैं।

विजय बघेल का क्या?

दुर्ग लोकसभा सीट से रिकार्ड मतों से चुनाव जीतने वाले विजय बघेल को पाटन विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा गया है। विजय बघेल ओबीसी वर्ग से आते हैं, वह कुर्मी समाज के नेता भी हैं। वहीं कांग्रेस की ओर से पाटन में सीएम भूपेश बघेल स्वयं मैदान में उतर चुके हैं। ऐसे में दोनों नेताओं के बीच कड़ी टक्कर होने की प्रबल सम्भावना है, लेकिन विजय बघेल की राह आसान नहीं होगी। हालांकि इस सीट से यदि छजकां सुप्रीमों अमित जोगी मैदान में उतरते हैं तो जातीय समीकरण के ध्रुवीकरण होने की सम्भावना को इनकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में देखा जाए तो सीएम भूपेश बघेल को चुनौती देने वाला प्रत्याशी अपने आप में भाजपा की ओर से सीएम पद का स्वाभाविक दावेदार है। लेकिन वर्तमान राजनीतिक हालातों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि विजय बघेल भी चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं।

ओपी पर रायगढ़ की जनता का कितना भरोसा?

पूर्व आईएएस ओपी चौधरी को भाजपा ने रायगढ़ से प्रत्याशी बनाया है। इससे पहले 2018 का विधानसभा चुनाव ओपी खरसिया से हार चुके हैं। इस बार उनका क्षेत्र बदला गया है। वहीं कांग्रेस ने वर्तमान विधायक प्रकाश शक्रजीत नायक पर फिर से भरोसा जाताया है। प्रकाश और ओपी एक ही समाज से आते हैं। इससे पहले 2018 के विधानसभा चुनाव में रायगढ़ सीट से भाजपा ने अग्रवाल सामज से प्रत्याशी मैदान में उतारा था। रायगढ़ में व्यापारी वर्ग का अच्छा खासा वोट है। देखना यह है कि यहां के भाजपा कार्यकर्ता और स्थानीय नेता ओपी पर कितना भरोसा करते हैं। वहीं प्रकाश नायक के लिए क्षेत्र का हर राजनीतिक समीकरण समझा हुआ है। ऐसे में ओपी और प्रकाश के बीच कांटे की टक्कर होने की सम्भावना है। ओपी चौधरी ने आईएएस की नौकरी छोड़कर भाजपा ज्वाइन किया है। भाजपा ने 2018 का चुनाव हारने के बाद भी ओपी को फ्रंट फुट पर रखा है, साथ ही वह ओबीसी वर्ग से आते हैं। भाजपा के केन्द्रीय नेता जिस तरह से ओपी को तवज्जो दे रहे रहे हैं, उससे ओपी की सीएम पद की दोवदारी को खारिज नहीं किया जा सकता है। अब देखना है कि रायगढ़ की जनता ओपी चौधरी पर कितना भरोसा करती है।

रमन सुरक्षित

पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह राज्य में 15 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहे। वह हर सियासी दांव चलना जानते हैं। शायद यहीं कारण है कि वह चुप रहकर सर्वाधिक समय तक राज्य के मुख्यमंत्री बने रहे। ऐसा नहीं था कि रमन के सामने चुनौतियां नहीं थी, विभिन्न चुनौतियों के बाद भी वह 15 साल तक राज करते रहे। इतना लंबा राजनीतिक अनुभव होने के बदौलत सीएम पद पर उनकी पुन: दावेदारी को नकारा नहीं जा सकता। राज्य में यदि भाजपा की सरकार बनती है तो रमन सिंह की दावेदारी सर्वाधिक मजबूत होने की सम्भावना है। चुनावी लिहाज से भी रमन सिंह फिलहाल राजनांदगांव से मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं। दूसरी ओर राजनांदगांव से कांग्रेस ने गिरीश देवांगन को प्रत्याशी बनाया है, हांलाकि गिरीश भी एक कुशल रणनीतिकार हैं। वह सीएम भूपेश बघेल के करीबी होने के साथ ही एक जुझाारु नेता के रुप में जाने जाते हैं। ऐसे में रमन कितना सुरक्षित हैं यह तो निकट भविष्य में पता लग सकेगा।

सबसे धनवान

भारतीय जनता पार्टी की पंडरिया प्रत्याशी भावना बोहरा सबसे धनवान प्रत्याशी हैं। उनकी सम्पत्ति रमन सिंह से भी जादा है। भावना इस बार के भाजपा प्रत्याशियों में से सबसे अमीर हैं। उनके पास 21 करोड़ रुपये से अधिक की अचल सम्पत्ति है। वहीं तकरीबन 30 एकड़ जमीन है। 15 लाख रुपये के जेवरात हैं। वहीं उनके पति भी करोड़पति हैं उनके नाम पर 6 करोड़ से अधिक की सम्पत्ति है।

वहां ज्यादा उपेक्षित की यहां

नन्दकुमार साय की पीड़ा शायद कोई दल और नेता नहीं समझ सकता। नन्दकुमार साय भाजपा में रहते हुए अपने आप को उपेक्षित महसूस करते रहे। कांग्रेस ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। साय विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते थे, उन्होंने कई सीटों से दावेदारी भी की, लेकिन उनकी किसी ने एक न सुनी। टिकट तो दूर कांग्रेस ने उन्हें पूरा चुनाव से ही दूर रखा है। हालांकि हमने पूर्व के कॉलम में लिखा था चौथेपन में ठग लिए गए साय, वह चरितार्थ होते दिख रहा है। भाजपा में रहते हुए नंन्दकुमार साय को प्रथम नेता प्रतिपक्ष बनने का गौरव मिला, लोकसभा, राज्यसभा सदस्य बने। अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान हुए। उसके बाद भी वह अपने आप को क्यों उपेक्षित समझते रहे यह तो स्वयं साय ही जानेंगे। राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में साय की धमक थी। लेकिन वह अपने आप को उपेक्षित समझते रहे? कांग्रेस में उन्हें किसी सीट से प्रत्याशी नहीं बनाया गया, वह सिर्फ एक आयोग के अध्यक्ष बनकर रह गए। अब लोग चुटकी ले रहे कि साय वहां ज्यादा उपेक्षित थे कि यहां ज्यादा उपेक्षित हैं।

रमन मंत्रिमंडल के सिर्फ 3 मंत्री जीते थे चुनाव, भूपेश मंत्रिमंडल का क्या ?

2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने रमशीला साहू को छोड़कर रमन मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों को टिकट दिया था, नतीजन सिर्फ 3 मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर और पुन्नूलाल मोहिले ही चुनाव जीत सके, बांकी सभी मंत्रियों को जनता ने नकार दिया था। 2023 के विधानसभा चुनाव की बात किया जाए तो भूपेश मंत्रिमंडल के लगभग सभी सदस्यों को फिर टिकट दी गई है। सिर्फ प्रेमसाय सिंह टेकाम का टिकट काटा गया है, हालांकि टेकाम को चुनाव के ठीक तीन महीने पहले ही मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया था। वहीं मंत्री रुद्रकुमार गुरु का विधानसभा क्षेत्र चेंज किया गया है, उन्हें अहिवारा की जगह नवागढ़ से प्रत्याशी बनाया गया है। अब 3 दिसंबर को जनता जनार्दन सरकार के कामों के साथ-साथ मंत्रियों के काम-काज की स्थिति को स्पष्ट करेगी। कांग्रेस ने किसी भी मंत्री का टिकट काटने का साहस नहीं दिखाया। अब देखना यह है कि मंत्रियों के लिए चुनाव परिणाम 2018 से कितना भिन्न होता है।

चुनाव प्रचार में पिछड़ी कांग्रेस

भारतीय जनता पार्टी टिकट वितरण के साथ ही चुनावी प्रचार-प्रसार में भी कांग्रेस से आगे निकल चुकी है। होर्डिंग से लेकर सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया में इलेक्शन के प्रचार-प्रसार के विज्ञापन दिखाई देने लगे हैं। वहीं कांग्रेस इस लिहाज से पीछे चल रही है। टिकट वितरण की बात की जाए, तो भाजपा ने सिर्फ 4 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम घोषित नहीं किए हैं। वहीं कांग्रेस अभी तक 7 सीटों में प्रत्याशियों को लेकर कश्मकश की स्थिति में है।

editor.pioneerraipur@gmail.com

शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *