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मिशन 2026 का लक्ष्य और साय के तेवर
आम तौर पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरल और सहज व्यक्तित्व के राजनेता हैं। विष्णदेव साय आम जनता के लिए जितना ही सरल हैं, नक्सलियों के लिए वह उतना ही सख्त नजर आ रहे हैं। उनके एक वर्ष के कार्यकाल में रिकार्ड नक्सली मारे गए हैं, वहीं सरकार की योजना और कार्यशैली को देखते हुए आत्मसमर्पण के आकड़ों ने भी कीर्तिमान रचा है। साय नक्सलियों के लिए एकदम क्लियर विजन पर काम कर रहे हैं उनका लक्ष्य मिशन 2026 है। राजनीतिक जीवन में सरल छवि के मुख्यमंत्री ने दो टूक कहा कि बोली का जवाब बोली से और गोली का जवाब गोली से दिया जाएगा। साय ने साफ तौर पर कहा कि सरकार की नीति स्पष्ट है जो भी नक्सली आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में आना चाहते हैं उनका स्वागत है। अब तक के आकड़ों की बात करें तो 1120 नक्सली मारे गए हैं, वहीं 941 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया हैं, जो सुशासन वाली विष्णु सरकार की बड़ी उपलब्धि है।
निकाय चुनाव में भाजपा की बल्ले-बल्ले
निकाय चुनाव के मौजूदा हालातों को देखकर यह कहा जा सकता है कि चुनाव परिणाम के पहले ही भाजपा की बल्ले-बल्ले हो गई है। बिना मतदान के ही कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ रही है। धमतरी नगर निगम में कांग्रेस अपने महापौर प्रत्याशी को नहीं बचा पाई, उनका नामांकन निरस्त हो गया। वहीं बसना नगर पंचायत में कांग्रेस प्रत्याशी ने अपना नाम वापस ले लिया। कुल मिलाकर बसना और धमतरी में भाजपा की विजयश्री सुनिश्चित है। इसके साथ ही प्रदेशभर में बिना मतदान के ही तकरीबन तीन दर्जन भाजपा पार्षदों की जीत पक्की मानी जा रही है। दरअसल नाम वापसी के बाद भाजपा पार्षदों के सामने कोई प्रतिद्वंदी बचा ही नहीं, इसलिए इनकी जीत पक्की है। लेकिन सवाल यह उठता है कि सत्ता जाते ही कांग्रेस के अन्दर इतनी भगदड़ क्यों है? पांच साल पहले सत्ता में काबिज रहते हुए कांग्रेस ने नगर निगमों के साथ-साथ ज्यादातर पालिकाओं में कब्जा किया था। एक साल के भीतर हालात इतने बद्तर क्यों? कांग्रेस की वर्तमान हालत को देखकर यह कहने में कोई संकोच नहीं कि निकाय चुनाव में सत्ता का सीधा प्रभाव दिखता है। सम्भवत: इसीलिए भूपेश बघेल की सरकार में ज्यादातर निगमों और पालिकाओं में कांग्रेस का कब्जा रहा। तो अब बारी सुशासन की है…..?
रीएजेंट घोटाले की जांच सीबीआई या ईडी से क्यों नहीं?
छत्तीसगढ़ में इन दिनों रीएजेंट खरीदी घोटाला सुर्खियों में है। राज्य की जांच एजेन्सी ईअेाडब्ल्यू मामले की पड़ताल कर रही है। माना जा रहा है कि रीएजेंन्ट की खरीदी में तकरीबन 900 करोड़ रुपये का घोटला कर जनता के रुपयों की बंदरबांट की गई है। इस घोटाले में बड़े-बड़े अफसरों से लेकर नेताओं तक के संलिप्तता की आशंका जताई जा रही है। लेकिन सवाल यह उठता है कि 500 करोड़ रुपये के कोल घोटाले की जांच केन्दीय एजेसी से, तो फिर 900 करोड़ रुपये के रीएजेन्ट घोटाले की जांच राज्य की एजेन्सी से क्यों? शायद इसीलिए पड़ताल शुरु होने से पहले ही रीएजेन्ट घोटाले की जांच को लेकर सवाल उठने लगे हैं? आखिर किसे बचाने का प्रयास किया जा रहा है? ऐसे तमाम सवाल इन दिनों मामले की समझ रखने वालों के बीच घूम रहे हैं। बहरहाल इस घोटाले में अब ईओडब्ल्यू सच की तलास में आईएएस भीम सिंह, आईएएस चंद्रकांत वर्मा समेत अन्य से पूछताछ करेगी। दरअसल आईएएस भीम सिंह खरीदी के दरम्यान संचालक स्वास्थ्य सेवाएं के पद पर पदस्थ थे। भीम सिंह पर आरोप है कि उन्होंने जिलों से बिना डिमांड के ही रीएजेन्ट खरीदी का आर्डर दिया था। वहीं आईएएस चंद्रकात वर्मा उस दरम्यान सीजीएमएससी के एमडी थे। इनके कार्यकाल में ही खरीदी का टेंडर किया गया। आकड़ों की बात करें तो रीएजेन्ट खरीदी घोटाला शराब घोटाले के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा घोटाला है। सम्भवत: इसीलिए आम जनता राज्य की जांच एजेन्सी ईओडब्ल्यू की कार्रवाई का बेसब्री से इंतजार कर रही है।
रायपुर की राजनीति का सुंदर दृश्य
रायपुर की राजनीति का एक सुंदर दृश्य महापौर का नामांकन दाखिल करने के दौरान देखा गया। इसीलिए कहा जाता है कि राजनीति में कब कौन किस मोड़ पर खड़ा मिल कुछ कहा नहीं जा सकता। वैसे तो रायपुर से भाजपा की महापौर प्रत्याशी मीनल चौबे को पूर्व मंत्री, रायपुर पश्चिम विधायक राजेश मूणत का समर्थक कहा जाता है। राजेश मूणत और सांसद बृजमोहन अग्रवाल की राजनीतिक प्रतिद्वंदता जगजाहिर है। लेकिन मीनल को चुनाव जिताने का जिम्मा बृजमोहन को सौंपा गया है। शायद इसीलिए बृजमोहन अग्रवाल नामांकन रैली से लेकर कलेक्टर कार्यालय में नामांकन दाखिल करते तक मीनल के साथ खड़े दिखे। वहीं कांग्रेस की ओर से पूर्व महापौर प्रमोद दुबे की पत्नी दीप्ती दुबे वर्तमान महापौर प्रत्याशी हैं। प्रमोद दुबे और पूर्व सीएम भूपेश बघेल की राजनीतिक अदावत जगजाहिर है। इसके बावजूद भूपेश बघेल प्रमोद और दीप्ति के साथ खड़े दिखे। हालांकि अलग-अलग दल से होने के बावजूद बृजमोहन और प्रमोद की दोस्ती के भी चर्चे सुनने और देखने को मिलते रहते हैं। बहरहाल जीत मीनल की हो या दीप्ती की लेकिन नामांकन दाखिल करने के दौरान राजनीति का यह सुंदर दृश्य देखने को मिला।
नए डीजीपी पर मुहर
वर्तमान डीजीपी अशोक जुनेजा की संविदा अवधि 3 फरवरी को समाप्त हो रही है। माना यह जा रहा है कि जुनेजा की संविदा अवधि और आगे नहीं बढ़ाई जाएगी। ऐसे में नए डीजीपी की कमान किसे मिलने जा रही है? इसको लेकर जमकर कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि जल्दी ही इन अटकलों पर विराम लग जाएगा। सूत्रों की माने तो नए डीजीपी के पद पर अरुणदेव गौतम की ताजपोशी हो सकती है। दरअसल केन्द्र को भेजे गए पैनल में तीन आईपीएस अफसरों के नाम शामिल हैं। जिसमें आईपीएस अरुणदेव गौतम, पवन देव और हिमांशु गुप्ता शामिल हैं। वैसे तो वरिष्ठता के आधार पर जीपी सिंह हिमांशु गप्ुता से सीनियर हैं। लेकिन केन्द्र को भेजे गए पैनल में जीपी सिंह का नाम नहीं है। ऐसे में जीपी का क्या होगा? फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। दरअसल पैनल में भेजे गए तीन नामों में से किसी एक को डीजीपी बनाया जाता है। लेकिन बहाली के बाद आईपीएस जीपी सिंह भी डीजीपी पद के दावेदार हैं।
बृजमोहन का टाइगर प्रेम, मायने क्या?
राजनीति के टाइगर रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल का अचानक टाइगर प्रेम जाग उठा है। उन्होंने केन्द्रीय वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव को पत्र लिखकर भोरमदेव अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व बनाने की मांग की है। वास्तव में बृजमोहन का यह टाइगर प्रेम है या फिर परदे के पीछे कुछ और खिचड़ी पक रही है? बहरहाल यह तो राजनीति के टाइगर बृजमोहन अग्रवाल ही जानेंगे। भोरमदेव अम्यारण्य कवर्धा जिले में आता है, यह उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा का निर्वाचन क्षेत्र है। सम्भव है इस क्षेत्र के विधायक उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा और क्षेत्रीय सांसद संतोष पांडे भी भोरमदेव अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व बनाने के इच्छुक होंगे। लेकिन सवाल यह उठता है कि भोरमदेव अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व घोषित करने की मांग क्षेत्रीय सांसद संतोष पांडे और क्षेत्रीय विधायक उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने क्यों नहीं की? जबकि इसकी बुनियाद डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में रखी गई थी। दरअसल वर्ष 2014 में एनटीसीए ने इस क्षेत्र को टाइगर रिजर्व घोषित करने की सलाह दी थी, न कि अनुशंसा की थी। इसके बाद वर्ष 2017 में वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक आयोजित की गई, जिसमें इस क्षेत्र को टाइगर रिजर्व घोषित करने का प्रस्ताव लाया गया। लेकिन वर्ष 2018 में सत्ता परिवर्तन हो गया और राज्य में कांग्रेस की सरकार आ गई। जिसके बाद जुलाई 2019 को इसे खारिज कर दिया गया। अब सवाल यह उठता है कि भूपेश सरकार को भोरमदेव अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व घोषित करने में क्या समस्या थी? इस क्षेत्र को टाइगर रिजर्व क्यों घोषित नहीं किया गया? क्या कांग्रेस सरकार को विस्थापित होने वाले 17 हजार वोट प्रभावित होने की आशंका थी? बहरहाल कारण जो भी हो लेकिन राजनीति के टाइगर बृजमोहन अग्रवाल के टाइगर प्रेम की चर्चा इन दिनों चारों ओर हो रही है।
ओपी का विजन और कुंदन की पहल
किसी भी काम को पूरा करने के लिए विजन और पहल की नितांत आवश्यकता होती है। दरअसल छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड ने पूरे राज्य में काफी तादात में मकानों, दुकानों और फ्लैटों का निर्माण किया है। बोर्ड प्रतिवर्ष निर्माण तो करते गया, लेकिन बिक्री अपेक्षानुरुप नहीं हो पाई। नतीजन हाउसिंग बोर्ड के ज्यादातर मकान, दुकान, फ्लैट खंडहर में तब्दील होने लगे हैं। सम्भवत: इसी कारण बोर्ड की वित्तीय स्थिति बेहद खराब हो गई है। लेकिन इस दिशा में आवास एवं पर्यावरण मंत्री ओपी चौधरी का विजन और हाउसिंग बोर्ड के आयुक्त कुंदन कुमार की पहल अब रंग लाने वाली है। इसके लिए कुंदन कुमार ने एक-एक प्रापर्टी की मैपिंग कर वैल्यू का आकलन कराया है। निश्चित ही मैन्टेन्स के अभाव में कुछ दिनों बाद मण्डल की प्रापर्टी की वैल्यू और डाउन हो जाती। जिसको देखते हुए मंत्री ओपी चौधरी ने केबिनेट में 30 प्रतिशत तक प्रापर्टी रेट कम करने के प्रस्ताव को पारित कराने में अहम भूमिका निभाई। निश्चित ही इस निर्णय से मण्डल की प्रापर्टी बिक्री में वृद्धि होगी साथ ही आमजन को राहत की छत नसीब होगी। कुल मिलाकर वित्त मंत्री ओपी चौधरी के विजन और आयुक्त कुंदन कुमार की पहल से दम तोड़ रहे हाउसिंग बोर्ड में एक बार फिर उर्जा का संचार होने जा रहा है।
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