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खामोशी क्यों?
भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाते हुए भाजपा ने कांग्रेस के जबड़े से जीत छीनकर छत्तीसगढ़ में पुन: वापसी की। लेकिन विपक्ष में रहते हुए जिस भाजपा ने भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था को अहम मुद्दा बनाया, आश्चर्य उस विषय में सात माह बीत जाने के बाद भी कोई बड़ा निर्णय नहीं लिया गया। आमतौर पर कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राजनीतिक रुप से गृह मंत्री की होती है, प्रशासनिक रुप से डीजीपी पुलिस विभाग के प्रमुख होते हैं। कानून व्यवस्था में फेलियर साबित हुए तत्कालीन गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू को तो जनता अपना फैसला सुना चुकी है। कानून व्यवस्था में बुरी तरह से घिरे ताम्रध्वज साहू चुनाव हार गए। उस दौरान अशोक जुनेजा डीजीपी थे और अब भी हैं। खैर जुनेजा का रिटायरमेन्ट नजदीक है, इसको लेकर वर्तमान की भाजपा सरकार ने बदलाव का निर्णय नहीं लिया। अब दूसरे प्रमुख की बात की जाए तो भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे वनबल प्रमुख व्ही श्रीनिवास राव आज भी कुर्सी में विराजमान हैं? कैम्पा सीइओ रहते हुए श्रीनिवास राव पर जमकर भ्रष्टाचार करने के आरोप लगे। उस दरम्यान सात अफसरों को सुपरसीट करके अकबर ने राव को वनबल प्रमुख की कुर्सी सौंपी थी? एहसान उतारने विधानसभा चुनाव के दौरान व्ही श्रीनिवास राव पर अकबर को भारी भरकम मदद करने के आरोप भी लगे, खैर सत्यता क्या है? यह तो राव ही जानेंगे। वहीं वर्तमान में उपमुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सम्भाल रहे विजय शर्मा ने विधानसभा चुनाव के दौरान कवर्धा में किन कठियानइयों और शक्तियों का सामना कर यहां पहुंचे हंै वह भली-भांति जानते हैं। उसके बाद भी खामोशी क्यों हैं? इसको लेकर सवाल तो उठेंगे ही।
अडानी की बल्ले-बल्ले
बीते पांच वर्षों में हसदेव अरण्य और कोल खनन को लेकर राजस्थान की तत्कालीन गहलोत सरकार और छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार पूरे पांच साल एकमत नहीं हो पाई। यहां तक की राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भूपेश बघेल से खनन की स्वीकृति के लिए व्यक्तिगत अनुरोध करने रायपुर भी पहुंचे, लेकिन गहलोत के लाख कोशिशों के बाद भी बात नहीं बनी। पर वह काम भाजपा की भजनलाल सरकार ने कुछ ही महीनों में कर दिखाया। दरअसल में हसदेव अरण्य कोल फील्ड में संचालित परसा ईस्ट एवं कांता बासन (पीईकेबी) कोल ब्लाक की 91.21 हेक्टेयर वनभूमि के उपयोग की स्वीकृति दे दी गई है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में 18 एमटीपीए की उत्पादन क्षमता के लिए 108 हेक्टेयर भूमि पर वृक्षों की कटाई की जाएगी। और वित्तीय वर्ष 2025-26 से अगले 6 वर्षों में खनन कार्यों के लिए 411 हेक्टेयर भूमि पर वृक्षों की कटाई के पश्चात भूमि को आरवीयूएन को हस्तांतरित करने की व्यवस्था को सुनिचित करने का कहा गया है। कुल मिलाकर विष्णु और भजन सरकार के निर्णय से अडानी की बल्ले-बल्ले होने जा रही है।
ताकतवर जामवाल
वैसे तो भाजपा में संगठन हमेशा से ही ताकतवर रहा है। संगठन के ताकत की तस्वीरें बीच-बीच में कैमरे में कैद हो जाती है। दरअसल में क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल ने उस कार्य को मुमकिन कर दिखाया जिसकी कल्पना स्वयं मोदी और शाह ने नहीं की थी। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सत्ता वापसी में अजय जामवाल का विशेष योगदान रहा। जाहिर सी बात है परिणाम के बदौलत जामवाल केन्द्रीय नेतृत्व के बड़े जनदीक आ चुके हैं। हालांकि इसी तरह कभी सौदान सिंह की भी धमक छत्तीसगढ़ की राजनीति में हुआ करती थी। यह दृश्य रामलला के दर्शन के रवानगी के समय की है, जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और पूरा मंत्रीमंडल क्षेत्रीय संगठन प्रभारी अजय जामवाल के साथ रामलला के दर्शन करने अयोध्या पहुंचे। कुल मिलाकर इस तस्वीर से समझा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ के राजनीतिक नियुक्तियों में जामवाल की अहम भूमिका रहेगी।
हंगामा के आसार
अगामी दिनों में होने वाला विधानसभा सत्र काफी हंगामेदार हो सकता है। विपक्षी दल कांग्रेस को 6 माह में पहली बार बड़ा प्रदर्शन करने का मौका मिला है। कांग्रेस इस मौके को गंवाना नहीं चाहती। बलौदाबाजार कांड को लेकर कांग्रेस बड़ा प्रदर्शन करने की रणनीति बना रही है। हालांकि सत्र काफी छोटा है पर हंगामेदार होने के आसार है। भाजपा की तर्ज में कांग्रेस भी कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार को ही टारगेट करने की रणनीति पर काम कर रही है। दरअसल में संख्या की दृष्टि से राज्य में विपक्ष काफी मजबूत है, लेकिन हार के बाद से विपक्ष संगठित नहीं दिख रहा। यह बात कांगे्रस के केन्द्रीय नेतृत्व को भी भलि-भांति पता है, सम्भवत: इसीलिए राहुल गांधी ने पार्टी के तामाम नेताओं को यह संदेश दे दिया है कि अब बारात वाले घोड़े नहीं चलेंगे, आपको दौडऩे वाला घोड़ा बनना ही पड़ेगा। राहुल के इस मैसेज के बाद से कांग्रेसी नेता काफी एक्टिव दिख रहे हैं।
पीसीसीएफ स्केल
राज्य के सीनियर आईएफएस अफसरों को पीसीसीएफ स्तर का स्केल देने विष्णु सरकार ने हरी झंडी दे दी है। छत्तीसगढ़ कैडर के भरतीय वन सेवा में 1992 से 1994 तक के पदस्त 6 अधिकारियों को यह स्केल दिया जाएगा। हालांकि इसमें नियमों का हवाला भी दिया गया है। पीपीसीएफ स्तर के समतुल्य वेतनमान 1 जनवरी 2024 से प्रदान करने की सहमति प्रदान की गई है। जिसमें आईएफएस आलोक कटियार, अरुण कुमार पाण्डेय, सुनील मिश्रा समेत अन्य के नाम शामिल हैं।
पेन की चर्चा
इन दिनों एक पेन की बड़ी चर्चा है। कोई कहता है कि सिल्वर का पेन है, कोई गोल्डन बताता है, तो कोई प्लैटिनम बता रहा है। कहते हैं कि यह खास पेन इस्तीफा लिखने के लिए है। कंपनी का नाम माउंट ब्लांक और पार्कर बताया जा रहा है। बहरहाल कौन सी कम्पनी का पेन है यह खुलासा नहीं हो पाया है। माउंट ब्लांक कंपनी जो कि 20 हजार रुपये से 2 लाख 50 हजार रुपये तक की कीमत का पेन बनाती है। इस दौरान जो भी साहब से मिल रहा उनकी जेब की तरफ ही नजर ठहर रही । अब पेन तो पेन है प्लेटिनम हो या गोल्डन, लिखना तो इस्तीफा ही है। पर इस बीच यह समझ नहीं आ रहा है कि इस्तीफा लिखने के लिए कौन शुभचिंतक इतना महंगा पेन भेंट कर सकता है। यह बात अलग है कि वास्तव में इस्तीफा ही लिखना है तो 2 रुपये के लिखो-फेंको पेन से भी लिखा जा सकता है।
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