हलचल…महंत, गौरीशंकर, कौशिक से रमन 20

thethinkmedia@raipur

महंत, गौरीशंकर, कौशिक से रमन 20

15 साल राज्य के मुख्यमंत्री रहे डॉ. रमन सिंह को जब विधानसभा अध्यक्ष बनाने का फैसला लिया गया, तो लोगों के मन में एक जिज्ञासा थी कि रमन यदि अपने स्वाभाव अनुरुप इस जिम्मेदारी में भी शांत रहे, तो षष्ठम् विधानसभा का अनुभव कैसा रहेगा। इतिहास के पन्नों में रमन किस तरह उकेरे जांएगे? लेकिन 5 दिन के संचालन में ही रमन ने प्रदर्शित कर दिया कि वह महंत, कौशिक और गौरीशंकर से 20 हैं। पहली बार राज्य की जनता रमन के संसदीय अनुभवों को सुन और देख रही। सदन में रमन का व्यवहार सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष के सदस्यों को भी बराबर संरक्षण दे रहा। कई बार तो विधायक क्या कहना चाह रहे हैं, विभागीय मंत्री को नहीं समझ आता, तो रमन ही कह देते हैं कि माननीय सदस्य का अमुक प्रश्न है, जवाब दे दीजिए। 71 वर्षीय रमन विधानसभा की हर कार्रवाई पर खरे उतर रहे हैं। इतिहास के पन्नों को देखें तो अविभाजित मध्यप्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष रहे श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी, छत्तीसगढ़ विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष पंडित राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल ने विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए एक अलग छाप छोड़ी थी, इसके पीछे प्रमुख कारण नियमों और संसदीय कार्यों की जानकारी और उनके अनुभव थे। पंडित राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल और श्रीनिवास तिवारी के अध्यक्षीय कार्यकाल को लोग आज भी याद करते हैं। अब रमन को लोग किस तरह याद रखेंगे यह तो उनके संचालन पर ही निर्भर है।

टैक्स का संकलन प्रतिदिन, तो खजाना खाली कैसे?

विष्णुदेव सरकार का पहला वित्तीय बजट पेश किया जा चुका है। यह बजट भले ही एक वित्तीय वर्ष 2024-25 का है, लेकिन इसमें बात 2047 की है। और करना भी चाहिए, बिना विजन के बड़े प्लान नहीं हो सकते। विकसित भारत की कल्पना और विकसित छत्तीसगढ़ की कल्पना निश्चित ही सराहनीय है। यह वजट कई मायनो में खास माना जा रहा है, दरअसल में यह सरकार के साथ वित्त मंत्री ओपी चौधरी का भी पहला बजट रहा। वास्तव में बजट को देखा जाए तो मोदी के गारंटी के इर्द-गिर्द ही यह बजट दिखाई दिया। राजनीति में इन दिनों एक ऐसा ट्रेंड चल चुका है कि बजट कैसा होगा उसका ट्रेलर चुनावी घोषणाओं में ही रिलीज हो जाता है। अब कुछ नया सोचने और करने जैसा बहुत कम ही रहा। हालांकि परिकल्पना की जा सकती है, लेकिन प्राथमिकता तो चुनावी घोषणाएं ही रहेंगी। भाजपा सरकार के बजट में भी वही दिखाई दिया। मोदी की गांरटी को पूरा करने के साथ ही जनता की अपेक्षाओं में विष्णुदेव सरकार को खरा उतरना एक बड़ी चुनौती है। बजट भाषण के दौरान ओपी यह कहते नजर आये कि हमें खजाना खाली मिला, हालांकि यह एक राजनीतिक भाषण मात्र है। खजाना कैसे खाली हो सकता है? दरअसल में आर्थिक गतिविधियां प्रतिदिन होती हैं, टैक्सों का संकलन प्रतिदिन होता है, व्यापार प्रतिदिन होता है, यात्राएं प्रतिदिन होती हैं, ऐसी अनेकों गतिविधियां प्रतिदिन होती हैं, जिससे राज्य के कोष में राशि का संकलन होता है, तो खजाना खाली कैसे हो सकता है? इसलिए न ही खजाना एक दिन में भरा जा सकता है और न ही इसे खाली किया जा सकता है।

अफसरों का कद बढ़ा, जनप्रतिनिधियों का घटा

महज 5 साल सत्ता सम्भालने वाली भूपेश सरकार कई मायनों में चर्चा का विषय बनी हुई है। आरोप-प्रत्यारोप से घिरी भूपेश सरकार का मत कुछ मामलों में एकदम स्पष्ट रहा। भूपेश सरकार में क्या मजाल थी कि अफसर आगे की पंक्ति में बैठ जाएं और विधायक पीछे रहें। खैर निजाम बदल चुका है, अब यह सम्भव है। भूपेश सरकार ही नहीं 15 साल तक रमन सरकार भी जनप्रतिनिधियों को सम्मान देने के मामले में पीछे नहीं रही। अब यह सब बदला-बदला सा दिख रहा है। एक सत्ताधारी दल का विधायक बजट प्रेस कांफ्रेस के दौरान पीछे बैठा रहा, अफसर आगे बैठे रहे। न अफसरों ने सुध ली और न ही उनके नेताओं की दृष्टि अपने विधायक पर पड़ी। यह देख अब लोग कह रहे जनप्रतिनिधियों का कद घट रहा है, अफसरों का बढ़ रहा है।

सोनमणि बोरा की वापसी

आईएएस सोनमणि बोरा की राज्य में वापसी हो रही है। सोनमणि अब पीएस बनकर छत्तीसगढ़ लौट रहे। सोनमणि बोरा की छवि एक काम करने वाले अफसर के रुप में रही है। पिछली कांग्रेस सरकार में बोरा उपेक्षित रहे, अब बोरा को भाजपा सरकार में कुछ बड़ी जिम्मेदारी देने की बात कही जा रही है। 1999 बैच के अफसर बोरा केन्द्र से लौंटेगें। इसके लिए आदेश भी जारी कर दिए गए हैं।

बघवा, चौसिंगा, हाथी की मौत पर खामोशी क्यों ?

छत्तीसगढ़ राज्य में आपने हाथियों की करंट से मौत होते सुनी होगी, लेकिन बघवा की मौत पहली बार सुना होगा। जी हां यहां के इतिहास में बघवा के भी करंट लगने से मौत हो चुकी है। बघवा की संख्या भले ही निरंतर घट रही, लेकिन उस पर विभाग को चिंता नहीं है। छत्तीसगढ़ में 17 बेजुबान जानवर चौंसिंगा तड़प-तड़पकर मर गए। जांच रिपोर्ट भी आ गयी, लापरवाही भी उजागर हो गई, फिर भी कार्रवाई के नाम पर लीपा-पोती जारी है। राज्य में हाथी जैसे विशाल जानवर को टुकड़े-टुकड़े काट दिया गया, तब भी यहां का वाइल्ड लाइफ सिस्टम ध्वस्त पड़ा रहा। मीडिया रिपोर्ट की माने तो कई दिन बीत जाने के बाद हाथी को टुकड़े-टुकड़े काटने की जानकारी विभाग के अफसरों को मुखबिर के माध्यम से मिली। इन तामाम घटनाओं से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वन्यजीवों के प्रति हमारा सिस्टम कितना जवाबदेह है।

सरोज का क्या?

राज्यसभा सांसद सरोज पांडे का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। राज्यसभा सदस्यों के चुनाव के लिए प्रक्रिया भी शुरु कर दी गई है। अब सवाल यह उठता है कि विधानसभा चुनाव में टिकट मांग रही सरोज पांडे का क्या होगा? क्या सरोज को पुन: राज्यसभा भेजा जाएगा कि भाजपा नया चेहरा मैदान में उतारेगी? फिलहाल इसके लिए अंदरखाने में एक्सरसाइज की जा रही है। कहा यह जा रहा है कि सरोज को लोकसभा का आश्वासन दिया जा सकता है। लेकिन सरोज का थप्पड़ कांड आज भी पीछा नहीं छोड़ रहा। यदि उन्हें लोकसभा दिया गया तो साहू समाज भाजपा से किनारा कर सकता है। ऐसे में एक सीट पर भाजपा को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। लिहाजा सरोज पांडे का लोकसभा प्रत्याशी बनाने को जोखिम भाजपा शायद ही ले।

जनसंपर्क विभाग के अफसर असहाय

जनसंपर्क विभाग वैसे तो सरकार का मुखौटा होता है। छत्तीसगढ़ में अभी तक मुख्यमंत्रियों ने ही जनसंपर्क को अपने पास रखा। जनसंपर्क विभाग में कमिश्नर और संचालक आईएएस और आईपीएस होते रहे हैं। भूपेश सरकार में राज्य सेवा के अफसरों के प्रति कुछ ज्यादा ही लगाव देखा गया। नतीजन संचालक जनसंपर्क और अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पद पर राज्य सेवा के अफसरों को बिठाया जाने लगा। दिनभर सरकार की योजनाओं को आमजन तक पहुंचाने के लिए समर्पित रहने वाले विभाग के अफसर इस व्यवस्था के बाद से खुद को असहाय महसूस करने लगे हैं। भूपेश सरकार के पहले संचालक पद पर आईएएस अफसर ही विराजमान हुआ करते थे। वहीं अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी का दायित्व विभाग के सीनियर अफसर को दिया जाता था। अब यह पद राज्य सेवा के अफसरों को सौंप दिया गया है। पिछली सरकार में भी जनसंपर्क के अधिकारियों ने अपनी बात सरकार तक पहुंचाई थी, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ईर्द-गिर्द राज्य सेवा के अफसरों का बोलबाला रहा, जिसके कारण जनसंपर्क के अधिकारी, कर्मचारियों की बात को अनसुना कर दिया गया। अब सरकार बदल चुकी है, व्यवस्था भी बदल चुकी है, लेकिन भूपेश सरकार की परंपरा अभी भी बरकरार है। जनसंपर्क विभाग में पुन: संचालक के रूप में राज्य प्रशासनिक सेवा के 2008 बैच के अफसर अजय कुमार अग्रवाल को संचालक के साथ-साथ अतिरिक्त सीईओ छत्तीसगढ़ संवाद की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जिसको लेकर विभाग में धुआं उठ रहा है।

editor.pioneerraipur@gmail.com

शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *