हलचल… अरूण साव और बृजमोहन के बीच दूरी तो नहीं?

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पहली सलाह और टेबल छोटा

सीएम बनने के बाद पहली बार मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय राजधानी के पत्रकारों से रुबरु हुए। उन्होंने शुक्रवार की सुबह नास्ते के साथ राजधानी के पत्रकारों से मुलाकात कर खास चर्चा की। आम तौर पर राजा का दरबार बड़ा होता है, लेकिन साय का दरबार बहुत सिकुड़ा हुआ दिखाई दिया। पहली सलाह में राजधानी के चुनिंदा पत्रकारों को ही न्योता दिया गया। कहते हैं कि टेबल छोटा था, इसलिए संख्या भी टेबल अनुरुप तय की गई। टेबल का मेंजरमेन्ट किसने लिया, यह अभी भी राज है। सीएम नये हैं, स्वभाव भी सरल, लेकिन यह सिस्टम पुराना है। राजधानी के पत्रकारों, संपादकों, मालिकों से पूर्व के सीएम भी मुलाकात करते रहे हैं। लेकिन पहुना रेस्ट हाउस का टेबल छोटा है, इसलिए पत्रकारों, संपादकों की संख्या कम कर दी गई यह बात अन्य पत्रकारों को हजम नहीं हो रही। खास बात यह है कि विष्णुदेव सरकार के शपथ लेते ही एक बात की हवा उड़ाई जा रही है, कि सब कुछ ऊपर से तय हो रहा, संघ तय कर रहा। यह बात अफसरों के ट्रांसफर लिस्ट के बाद अब पत्रकारों के लिए भी झूठी निकली। क्योंकि विचारधारा से जुडे कुछ खास समाचार पत्र के संपादकों को भी सीएम हाउस (पहुनां) के टेबल में जगह नहीं मिल पाई।

अरूण साव और बृजमोहन के बीच दूरी तो नहीं?

उपमुख्यमंत्री अरूण साव और कद्दावर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने एक-दूसरे से दूरी बना ली है। दरअसल में यह दूरी निर्माण कार्य को लेकर बनाई गई है। बृजमोहन और अरूण साव के राजनीतिक संबंध कैसे हैं यह तो वह दोनों ही जानेंगे। लेकिन बृजमोहन ने साव के पास ना जाने का फैसला लिया है, वह भी कानूनी रूप से। अब स्कूल शिक्षा विभाग और उच्च शिक्षा विभाग स्वयं निर्माण कार्य कराएंगे। अभी तक स्कूल शिक्षा और उच्च शिक्षा विभाग के निर्माण कार्यों की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी और आरईएस विभाग के माध्यम से होते थे, जो वर्तमान में अरूण साव के पास है। बृजमोहन अग्रवाल ने यह काम साव के विभाग से छीनकर खुद करने का फैसला लिया है। मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने विधान सभा में बताया कि अब उनके विभाग में इंजीनियरिंग शाखा का गठन किया जाएगा। उच्च शिक्षा विभाग और स्कूल शिक्षा विभाग के निर्माण कार्य इसी के माध्यम से किये जाएगें।

पर्सनल बाडीगार्ड

दर्द जब होता है तो चीख बाहर आ ही जाती है। सत्ताधारी दल के एक विधायक ने अपनी ही सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत की पराकाष्टा है। इस विभाग के अफसर इतना अफोर्ड कर सकते है, उनकी आय इतनी है कि वह पर्सनल बाडीगार्ड लेकर चल सकते हैं। विधायक जी ने कहा कि प्रदूषण का स्तर ऐसा है कि जो बच्चा गोरा पैदा होता है, वह सांवला हो जाता है। प्रदूषण का प्रकोप अब इतना है कि पक्षियां भी दिखाई नहीं देते। दुल्हन गोरी ब्याह के आती है, लेकिन उसका रंग काला पड़ जाता है। यहां तक कि सत्ताधारी दल के सदस्य ने इन्हें मानवता का दुश्मन भी कह डाला। दरअसल में पूर्व की सरकार में यह विभाग वसूली का एक केन्द्र बना हुआ था। इस विभाग को मलाईदार विभाग माना जाता है। पहले यहां पर आरजी का सीधा दखल था, आरजी के जाने के बाद उद्योग से नाता रखने वाले एक रिटायर्ट आईएएस अफसर के चेहते को जिम्मेदारी सांैप दी गई। सरकार बदली लेकिन व्यवस्था नहीं बदली, जिससे सत्ताधारी दल की पीड़ा चीख-चीखकर बाहर आ ही जाती हैै।

माया मिली न राम

वाइल्ड लाइफ की जिम्मेदारी सम्भाल रहे पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल का हेड ऑफ फारेस्ट बनने का सपना अब सपना ही रह जाएगा। दरअसल में अग्रवाल ने सरकार बदलते ही इसके लिए लाङ्क्षबग शुरु कर दी थी। वह सबसे पहले अपने एक चहेते अधिकारी को वन मंत्री का ओएसडी बनवाने के जुगाड़ में थे। ओएसडी बनते ही सुधीर की पकड़ मजूबत हो जाती। कहते हैं सुधीर के इस चहेते अधिकारी की फाइल ओएसडी के लिए मंत्रालय तक पहुंच चुकी थी, लेकिन विवादों से नाता देख मंत्री केदार कश्यप ने मना कर दिया। इस दरम्यान सुधीर अग्रवाल की भद्द पिट गई, विधानसभा से लेकर हर जगह वन्यजीवों की मौत का मामला गूंजता रहा, पहली दफा विधानसभा में पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ पर कार्रवाई की मांग की गई। यहीं नहीं बाघ की मौत के मामले में वन मंत्री केदार को अधिकरियों द्वारा झूठी जानकारी दी गई, जिसके कारण मंत्री भी सदन में घिरते नजर आए। बजट सत्र में वन विभाग वन्य जीवों की मौत को लेकर सुर्खियों में रहा। ऐसे में उनका हेड ऑफ फारेस्ट बनने का सपना शायद ही पूरा हो पाये। कुल मिलाकर सुधीर के लिए कहा जा सकता है माया मिली न राम।

भरोसेमंद सिसोदिया

विक्रम सिसोदिया को विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह का सचिव नियुक्त किया गया है। सिसोदिया का कार्यकाल रमन के अध्यक्षीय कार्यकाल तक रहेगा। विक्रम सिसोदिया रमन सिंह के साथ उस दौर से है जब रमन केन्द्र का हिस्सा हुआ करते थे। रमन के 15 साल मुख्यमंत्री रहते हुए भी सिसोदिया के पास अहम जिम्मेदारी रही। अब एक बार फिर डॉ. रमन सिंह ने विक्रम सिसोदिया पर भरोसा जताया है। सिसोदिया को सचिव बनाने के बाद यह माना जा रहा है कि वह आज भी रमन के सबसे भरोसेमंद हैं। हालांकि इसके लिए अरुण बिसेन का नाम भी प्रमुखता से उभर कर सामने आया था।

पीछे छूटा कवर्धा

उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा कवर्धा से जीतकर राजधानी पहुंच चुके हैं। शायद जिम्मेदारी बड़ी है, इसलिए कवर्धा पीछे छूटता जा रहा है। वह भाजपा कार्यकताओं के साथ कितना न्याय कर पा रहे हैं, इसका मूल्याकंन उन्हें स्वयं करना है। कवर्धा कभी अकबर का गढ़ रहा। 2018 का विधानसभा चुनाव अकबर ने तकरीबन 60,000 मतों से जीता। कुछ आईएएस, आईपीएस अफसर तो अकबर के मुरीद थे ही। जो विभाग अकबर के पास था, उस विभाग से खास अफसरों को चुनकर कवर्धा भेजा जाता था, चुनाव दरम्यान अफसर कितना निष्पक्ष रहे यह भला विजय शर्मा और उनके कार्यकताओं से जादा कौन जानेगा। भाजपा कार्यकर्ताओं ने किन कठिनाइयों से कवर्धा में चुनाव लड़ा और जीता यह जगजाहिर है। अकबर दरबार के खास अफसर कवर्धा डीएफओ आईएफएस चूड़ामणि की शिकायत भी चुनाव आयोग से हुई। दिलराज प्रभाकर जिन्हें अकबर दरबार का मैनेजर कहा जाता रहा वह आज भी प्रमुख पदों में काबिज हैं। भाजपा का अपने कार्यकर्ताओं के साथ यह कैसा न्याय है? यह तो विजय शर्मा ही जानेंगे।

कैसे रुकेगा लीकेज?

हम उस देश में रहते हैं जहां गरीबों को पूरा मकान बनाने के लिए अधिकतम डेढ़ लाख रुपये दिये जाते हैं। जरा सोचिए के डेढ़ लाख में मकान कैसे बनाया जा सकता है? यहीं नहीं यह डेढ़ लाख हॉसिल करने के लिए गरीब के जूते घिस जाते हैं। सरकारी सिस्टम और आखिरी किश्त पाने तक गरीब के हाथ एक लाख रुपये ही लगते हैं। उसी देश में उन्हीं के राज्य में उनके प्रतिनिधियों, मंत्रियों के लिए एक कमरा बनाने में तकरीबन डेढ़ करोड रुपये खर्च किए जाते हैं। भला इस व्यवस्था में लीकेज कैसे रुकेगा?

 

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