खैरागढ़ उप चुनाव के हीरो लापता?
कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता। आज से 6 माह पहले तक जिन्हें कद्दावर नेता कहा जाता था, वह महज 6 माह में लापता होने की स्थिति में आ गये हैं। अब उन्हें न ही पार्टी पूछ रही और न ही उनके चहेते नेता सुध लेना चाहते हैं। दरअसल में हम बात कर रहे हैं खैरागढ़ उप चुनाव के हीरो रविन्द्र चौबे और मोहम्मद अकबर की। भूपेश सरकार ही नहीं बल्कि कुछ दिन पहले तक यह दोनों नेता पार्टी के खास रणनीतिकार थे। रविन्द्र चौबे ने तो खैरागढ़ उपचुनाव की पूरी कमान सम्भाला था। सत्ता में रहते हुए अकबर ने भी खूब पांसे चले थे। लेकिन अब ऐसा क्या हो गया है कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने इन्हें लोकसभा चुनाव में सीधा खारिज कर दिया। खैरागढ़ उपचुनाव में हीरो की भूमिका निभाने वाले रविन्द्र चौबे के साथ भूपेश कंधा मिलाकर नहीं चलना चाहते? वहीं कद्दावर नेता कहलाने वाले मोहम्मद अकबर के साथ भी भूपेश कवर्धा नहीं घुसना चाहते? ऐसा क्यों हो रहा भाई? कुछ माह पहले तक तो भूपेश का कोई भी कार्यक्रम बिना चौबे और अकबर के पूरा नहीं होता था। अब जब भूपेश बघेल राजनांदगांव से लोकसभा के लिए प्रत्याशी है, तब तो अकबर और चौबे की भूपेश को खास जरुरत है। तब भी ये दूरी क्यों है? सन्नाटा क्यों है?। खैर कहते हैं कि भूपेश को यह बात समझ आ गई है कि अकबर और चौबे जैसे नेताओं के कारण राज्य में कांग्रेस को सत्ता गवांनी पड़ी। शायद इसीलिए भूपेश बघेल लोकसभा चुनाव में इन दोनों नेताओं से दूरी बनाते दिख रहे हैं।
कमजोर सीट में मजबूत दांव
भारतीय जनता पार्टी जब चुनाव लड़ती है, तो जीत के हर मार्ग को खोजने इनके सिपाही निकल पड़ते हैं। अब तक भाजपा कांकेर लोकसभा में कमजोर आंकी जा रही थी, मामला बराबरी का बताया जा रहा था। शायद इसीलिए स्वयं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इस सीट पर विशेष फोकस कर रहे है। विष्णुदेव साय लगातार दौरा कर रहे, सभाएं ले रहे। लेकिन इस बीच भाजपा ने कांकेर में मजबूत दांव चलने में सफलता हासिल कर ली है। मतदान के 5 दिन पहले कांग्रेस के पूर्व विधायक शिशुपाल शोरी भाजपा में शामिल हो गए। कांकेर लोकसभा में पिछली बार भी काफी कम मतों से भाजपा की जीत हुई थी। इसी वजह से कांग्रेस ने प्रत्याशी को इस बार भी रिपीट कर दिया। अब तक की स्थिति में यहां कांटे की टक्कर बतायी जा रही है। अब चुनाव परिणाम क्या होंगे फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। कहते हैं कि यह दांव विष्णुदेव सरकार में केबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे कद्दावर आदिवासी नेता रामविचार नेताम ने चला है। रामविचार के कारण भाजपा मतदान के एक सप्ताह पहले कांकेर में फिर मजबूत हो गई है। रामविचार नेताम जब गृहमंत्री हुआ करते थे, शिशुपाल तब से उनके करीबी रहे, मौका देख नेताम बड़ा दांव चलने में सफल हो गए।
खौलने लगी मूणत की चाय
राजधानी रायपुर से बृजमोहन अग्रवाल विष्णुदेव सरकार में केबिनेट मंत्री हैं। और वह रायपुर लोकसभा के लिए भाजपा के प्रत्याशी भी हैं। भाजपा रायपुर से बृजमोहन के 5 लाख से अधिक मतों के जीत का दावा कर रही है। वहीं बृजमोहन की जीत पक्की होते सुनकर मूणत की चाय खौलने लगी है। भले ही गर्मी की कहर में शरबत की डिमांड हो, लेकिन मूणत चाय खौलाते दिख रहे हैं। मूणत जानते हैं कि यह चाय जितनी खौलेगी, स्वाद उतना ही सुंदर रहेगा। खौलती हुई चाय के साथ- जब चर्चा हो, तो वह बात और ही निराली होती है। बृजमोहन की जीत के लिए मूणत पूरी रायपुर की जनता को खौलती हुई चाय पिलाने के लिए तैयार दिख रहे हैं। मूणत यह भली-भांति जानते है कि यह खौलती हुई चाय ही कुर्सी का मार्ग प्रशस्त करेगी।
शराब घोटाले का दर्द
जब शराब घोटाला हो रहा था, नोटों की महक और रुपयों की खनक में कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। अब उनकी चीख भी कोई सुनने को तैयार नहीं है। दरअसल में शराब घोटाले के आरोपी अरविन्द सिंह ने जज साहब से इच्छा मृत्यु की मांग की। अरविन्द सिंह ने कोर्ट में कहा कि हम प्रतिदिन के इस झंझट से तंग आ गए हैं, हमें इच्छा मृत्यु दे दी जाए। जज साहब भी जानते हैं, उन्हें भी ऐसे ही ये कुर्सी नहीं मिली है कि कोई अपराधी आये और इमोशनल ड्रामा करके न्यायालय से चला जाए। फिर क्या अरविन्द के इच्छा मृत्यु वाली मांग पर जज साहब ने कहा कि विधिवत आवेदन दे दीजिए। यह सुनकर पूरा कोर्ट सन्न रह गया। दरअसल में सामान्य आदमी फ्राड करने में हिचकता है, अपराध करने से डरता है। फिर इतना बड़ा घोटाला करने वाले अरविन्द का कलेजा इतना कमजोर कैसे हो सकता है? कि वह महज छह माह में इच्छा मृत्यु की मांग करने लगे। यह बात किसी को हजम नहीं होती, शायद जज साहब को भी नहीं हुई। इसीलिए जज साहब ने उन्हें तुरंत जबाब दे दिया। वैसे भी शराब का कारोबार करने वाले पूरे भारत देश में खास लोग ही होते हैं, यह आम लोगों का व्यापार नहीं है। उसमें भी जो घोटाला कर जाए, तो वह तो बेहद ही खास इंसान होगा। खैर अरविन्द का आगे क्या होगा यह तो अब न्यायालय को ही तय करना है।
चुनावी समर में वोरा पहुंचे महानदी
1991 बैच के तेजतर्रार अफसर आईएएस सोनमणि वोरा की चुनावी समर के बीच छत्तीसगढ़ वापसी हो गई है। वोरा तपती गर्मी में सीधा महानदी पहुंचे, उन्होंने मंत्रालय में ज्वाइनिंग भी दे दी है। वहीं 2021 बैच के एक और आईएएस ने तेलांगाना ज्वाइन कर लिया है। हालांकि अभी वोरा को कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है। लोकसभा चुनाव परिणाम तक वोरा को इंतजार करना पड़ सकता है। रमन सरकार में वोरा ने कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सम्भाला था। कांग्रेस की सरकार आने के बाद वोरा अगल-थलग पड़े रहे। बाद में वह राज्यपाल के सचिव बनाये गए। कुछ ही दिनों बाद वहां से मुक्त कर दिए गए थे। अब एक बार फिर वोरा केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस आ चुके हैं।
अब भरोसा नहीं
कभी भूपेश है, तो भरोसा है के नारा लगाने वाले कांग्रेसी नेताओं का अब किसी पर भरोसा नहीं रहा। राजधानी में राजनीति करने के बाद लोकसभा के लिए प्रत्याशी बनाए गए एक कांग्रेसी नेता का अपने ही विधायकों पर भरोसा नहीं दिख रहा। वह राजधानी से अपने खास लोगों को लेकर अपने नए निर्वाचन क्षेत्र में डेरा डाले हुए है। राजधानी से पहुंचे यह खास लोग कांग्रेसी विधायकों से प्रतिदिन शाम को हिसाब मांग लेते हैं। कहते हैं कि नेता जी मेहनत तो खूब कर रहे, इनके निर्वाचन क्षेत्र में विधायकों की संख्या भी भाजपा से ज्यादा है। लेकिन उनके ही विधायकों पर विश्वास का संकट दिख रहा है। ऐसे में कंाग्रेसी विधायक अन्दर ही अन्दर कहते नजर आ रहे हैं, अभी इतना खर्च करके विधायक बने हैं। नेताजी ने पांच साल जमकर कमाया अब रुपया नहीं ढीलेंगे तो क्या हम लोग घर बेचकर प्रचार-प्रसार करेंगे?
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